Rajasthan News: राजस्थान का जैसलमेर शहर, जिसका रियासत कालीन नाम जैसाण की कुलदेवी स्वांगिया मां है. मां स्वांगिया भी आवड़ माता का ही रूप हैं. आवड़ माता ने यहां कई चमत्कार बताए और यही वजह है कि जैसलमेर चारों दिशाओं से शक्तिपीठों से घिरा है. यहां के लोग व इनके पुरखे भी प्राचीन काल से शक्ति (देवी) भक्त हैं.
बताया जाता है कि एक चारण जाति के मामड़जी ने संतान प्राप्ति के लिए मां हिंगलाज देवी की पूजा, अर्चना व उपासना की और मां की आराधना करते हुए 7 दिन की पैदल यात्राएं कर मां को प्रसन्न करने के प्रयास किया. जिसे माता ने प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा तो मामड़जी ने मां हिंगलाज जैसी संतान मांगी. इस पर माता ने सात पुत्रियों के रूप में स्वयं के आने व एक पुत्र होने का वचन दिया. मामड़जी के घर सबसे पहले आवड़ माता ने जन्म लिया और उसके बाद छह बहनें व एक भाई महिरख ने जन्म लिया. यही सातों बहने आजीवन शक्ति अवतार के रूप में पूजनीय हुईं. जैसलमेर में स्थित सभी देवी मंदिर आवड़ माता के ही रूप हैं.
इतिहासकारों के अनुसार आवड़ माता ने प्राचीन समय के कुख्यात 52 हूण राक्षसों को मारकर आमजन को असुरों के आतंक से मुक्ति दिलाई थी. इसलिए इनके 52 पवाड़े, 52 मंदिर, 52 ओरण व 52 नाम विख्यात हैं. प्रत्येक देवी मंदिर के आसपास की जमीन को ओरण घोषित कर दिया, ताकि वहां मानवीय दखल नहीं के बराबर रहे और ओरण में खेजड़ी, जाल व अन्य पेड़ों को काटना सख्त मना है. आज भी जैसलमेर में तकरीबन 85 ओरण हैं.
आवड मां के यह 52 नाम है विख्यात
श्री आई मां, उब्बटदे, आयल, माड़ेच्यां, गिरवरराय, सऊआणियां, अहियाणियां, पनोधराय, चाळराय, जाळराय,बिंझासणी, झूमरकेराय, मामड़ियासधु, आशापुरा, श्री आवड़, बाइयां, आईनाथ, मानसरिया, नागणेची, कतियाणी, भोजासरी, उपरल्या, धणियाणियां, मामड़याई, माढराय, पिनोतणिया, मोतियांळी, डूंगरेच्या, सहाग्याची, घंटियाली, पारेवरियां, तनोटियां, तनोटराय, भादरियाराय, कालेडूंगरराय, देगराय, साबड़ामढराय, चेलकराय, माड़ेची, चकरेसी,अनड़ेची, आरंबाराय, सप्तमातृका, डूंगरराय, छछुन्दरे, तेमड़ाराय, मनरंगथळ राय, चालक नाराय चाळकनेची, जूनी जाळ री धणियाणी, बींझणोटी तथा थळराय प्रमुख हैं.
गुजरात में है आशापुरा का मुख्य मंदिर
काले डूंगर राय, भादरिया राय, तनोट राय, तनोटिया राय (मेघा) तनोटिया राय (दिधू), देगराय, तेमड़े राय, जूनी जाळ (देग राय मन्दिर), साबड़ामड़ राय (देग राय ओरण में), पनोधर राय, घण्टयाली, आशापुरा, (देवीकोट), आशापुरा (पोकरण), वहीं आशापुरा का मुख्य मंदिर कच्छ गुजरात में है.
चील-बाज को माना जाता है शुभ
इतिहासकारों के अनुसार मां आवड़ और उनकी बहनों ने सिंध से कच्छ और मारवाड़ आने के लिए चीलों का रूप धारण किया था. इसलिए चीलों को देवी भक्तों द्वारा शुभ माना जाता है. चील और बाज को मारवाड़ी में देवी के सम्मान में सांवली बोला जाता है और इनका दिखना शुभ होता है. चील और बाज, घास मैदानों व वनों के शिकारी पक्षी है, इसलिए देवी मंदिरों के आसपास ओरण छोड़ने से इनका संरक्षण भी होता आया है.
देवी के हर मंदिर में जाल का पेड़
देवी के प्रत्येक मंदिर में पुरानी जाल का पेड़ अवश्य होता है. मान्यता है कि भक्तों को देवी ने जाल के पेड़ के नीचे प्रकट होकर दर्शन दिए थे, इसलिए उनका एक नाम जूनी जाल भी है. देवी मंदिरों के अंदर व आसपास ओरणों में जाल के पेड़ों को सुरक्षित रखने की प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही है. लगभग सभी ओरणों में जाल के पेड़ के नीचे देवी की मूर्तियां या ठाले बने हुए दिख जाते हैं.
52 नाम पर 52 ओरण बने
इतिहासकार पार्थ जगाणी ने बताया कि यहां मौजूद सारे मंदिर आवड़ माता के ही स्वरूप हैं. जैसलमेर के लोगों की आराध्य देवी आवड़ माता ही हैं. आवड़ माता के प्रति श्रद्धा व आस्था को देखते हुए ही प्राचीन समय में ओरण बनाए गए ताकि पर्यावरण व वन्यजीवों का संरक्षण आसानी से किया जा सके. वहीं शोधार्थी गौरव पुरोहित ने बताया कि जिस तरह देवी के 51 शक्तिपीठ हैं, ठीक उसी तरह आवड़ माता ने 52 हूण राक्षसों का वध किया तो उनके भी 52 मंदिर, 52 नाम और 52 ओरण बने. इन मंदिरों में से अधिकांश जैसलमेर में है और कुछ कच्छ व पाकिस्तान में मौजूद है.