Rajasthan: भरतपुर के आरबीएम अस्पताल में सिलिकोसिस से ग्रसित तीन मरीजों की मौत हो गई. ये मरीज लंबे समय से इस लाइलाज बीमारी से जूझ रहे थे. मरने वाले घनश्याम खेड़ा ठाकुर गांव के, रामलाल और नरेश सिंह निभेरा गांव के रहने वाले थे. इलाज के दौरान तीनों ने दम तोड़ दिया. खेड़ा ठाकुर और निभेरा गांव में करीब 70% लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं. यह एक लइलाज बीमारी है.
क्या है सिलिकोसिस बीमारी?
सिलिकोसिस एक लाइलाज बीमारी है, जो क्रिस्टलीय सिलिका की धूल के कणों को सांस के माध्यम से अंदर लेने से होती है. यह धूल फेफड़ों में जाकर जम जाती है, जिससे सूजन, फाइब्रोसिस और फेफड़ों की कार्यक्षमता में धीरे-धीरे कमी आने लगती है. यह बीमारी मुख्य रूप से निर्माण, खनन और पत्थर प्रसंस्करण क्षेत्रों में कार्यरत मजदूरों को होती है. इसके लक्षणों में लगातार खांसी, सांस लेने में तकलीफ और अत्यधिक थकान शामिल हैं.
बचाव के उपाय और प्रशासन की लापरवाही
सिलिकोसिस का फिलहाल कोई इलाज नहीं है, लेकिन यह उचित सुरक्षा उपायों से रोकी जा सकती है. मजदूरों को काम करते समय मास्क पहनना अनिवार्य है. अफसोस की बात है कि खनिज विभाग और संबंधित ठेकेदारों की लापरवाही के चलते मजदूर बिना किसी सुरक्षा उपकरण के काम करने को मजबूर हैं. पत्थर कटाई के दौरान निकलने वाली धूल सीधे फेफड़ों में जाकर जानलेवा साबित हो रही है.
अब तक 650 लोगों की हो चुकी मौत
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. अविरल सिंह ने बताया कि वर्ष 2018 से सिलिकोसिस के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सुविधा शुरू हुई थी. 2022 से अब तक 4400 से अधिक रजिस्ट्रेशन हुए हैं. जिनमें से 225 लोगों को सिलिकोसिस बीमारी घोषित हो चुकी है, और अब तक 650 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. खेड़ा ठाकुर और निभेरा गांव के लोग पहाड़ों पर मजदूरी करते हैं जहां पत्थर का काम करते समय सिलिका जाने से यह बीमारी जन्म लेती है, और इन गांवों के करीब 70% के आसपास लोग इस बीमारी से ग्रसित हैं. सरकार के द्वारा यह बीमारी घोषित होने पर तीन लाख रुपए की आर्थिक मदद और उसके बाद मौत होने पर दो लाख रुपए एवं 10 हजार रुपए अंतिम संस्कार के लिए दिए जाते हैं.
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