Govardhan Puja: बूंदी जिले के देवपुरा क्षेत्र में ग्रामीण परिवेश की महिलाओं ने दीपावली पर धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना के बाद दूसरे दिन यानी की पड़वा तिथि को गोवर्धन पूजा का विधान भी सदियों से चला आ रहा है, लेकिन बूंदी जिले में अब यह अनुष्ठान धीरे-धीरे लुप्त होता दिखाई दे रहा है. ऐसा माना जा रहा है कि आने वाले समय में बूंदी जिले में गोवर्धन पूजा का अनुष्ठान शायद ही देखने को मिले.
रिपोर्ट के मुताबिक गोवर्धन पूजा के अनुष्ठान के लिए गायों को पालना जरूरी है. क्योंकि गोवर्धन जी की प्रतिमा गाय के गोबर से बनाई जाती है. मान्यता है कि धन की देवी लक्ष्मी गाय के गोबर में वास करती है. इसलिए गोवर्धन पूजा की जाती है, लेकिन अब जिले में गौ पालन धीरे-धीरे कम हो गया है.
गोवर्धन पूजा करने वाली स्थानीय निवासी ममता गुर्जर बताती हैं कि यह परंपरा बहुत पुरानी है. हम लोग पूरे परिवार के साथ इसको दीपावली के दूसरे दिन मनाते हैं. इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा होती है और गोबर से श्री कृष्ण की मूर्ति बनाते हैं. साथ ही, उनके चितौली अंगुली पर गोवर्धन पर्वत का भी चित्र बनाते हैं, क्योंकि कृष्ण भगवान को गायों से बहुत प्रेम था.
स्थानीय निवासी ममता गुर्जर बताया कि अब गांव में भी पढ़ी-लिखी लड़कियां जो शादी करके गांव में आती है, तो वह गोबर से काम ही नहीं करना चाहती है. इन परंपराओं के बारे में भी उन्हें कुछ विशेष मालूम नहीं है. जब तक हमारे बुजुर्ग जिंदा है. तब तक हमनें इस परंपरा को जीवित रख रखा है.
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