Swami Vivekananda Scholarship for Academic Excellence Scheme: राजस्थान के विद्यार्थियों को देश - विदेश की सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में निःशुल्क शिक्षा दिलाने की योजना अब उन्हीं विद्यार्थियों के लिए सिर दर्द बन चुकी है. आवेदन से लेकर स्कॉलरशिप की राशि लेने तक की प्रक्रिया में विद्यार्थी जूझ रहे हैं. स्वामी विवेकानंद स्कॉलरशिप फॉर एकेडमिक एक्सीलेंस योजना के तहत 300 विद्यार्थियों को दुनिया के टॉप 150 यूनिवर्सिटी और 200 विद्यार्थियों को देश के टॉप 50 विश्वविद्यालयों में निःशुल्क पढ़ाई उपलब्ध कराई जाती. विद्यार्थियों के रहने का खर्च भी सरकार उठाती. लेकिन इस साल हजारों विद्यार्थी अंतिम सूची का इंतजार कर रहे हैं. बच्चे और परिजन दोनों परेशान हैं.
नाम न उजागर करने की शर्त पर एक आवेदक के पिता ने हमें बताया, "जुलाई में हमने फॉर्म फिलअप किया था लेकिन अभी तक लिस्ट नहीं आई है. हमारे बच्चों का एक साल बर्बाद हो चुका है. विद्यार्थियों के साथ-साथ हमने भी कई बार शिक्षा विभाग के अधिकारियों और मंत्री से मुलाकात की लेकिन अब तक बात नहीं बनी. हमारे बच्चे का पूरा एक साल बर्बाद हो गया है. सरकार ने यह स्कीम शुरू नहीं की होती तो हम नहीं सोचते कि हमारे बच्चे विदेश में पढ़ सकते हैं लेकिन स्कीम है तो हम कोशिश कर रहे हैं. अगर इस स्कीम से हमें लाभ नहीं मिलता है तो हमारे बच्चे विदेश नहीं जा पाएंगे."
पहले यह योजना राजीव गांधी के नाम पर थी. मौजूदा सरकार ने इसके नियम बदले. नाम भी बदला. कई आवेदक बताते हैं कि इसमें आवेदन की प्रक्रिया भी काफी जटिल है. कैंडिडेट को बार-बार नए दस्तावेज अपलोड करने को कहा जाता है. अभ्यर्थियों का आरोप है कि कई बार ऐसे दस्तावेज भी मांगे गए जो लिस्टेड नहीं थे. परिजन भी अधिकारियों के रवैये पर सवाल उठाते हैं.
इन समस्याओं को लेकर विद्यार्थी कई बार डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा से मिल चुके हैं. वे जल्द ही पूरी सूची निकालने की बात कहते हैं. उन्होंने बताया कि हमने 169 विद्यार्थियों का चयन किया है, बाकी लिस्ट भी जल्द जारी होगी. साथ ही डेफर का इंतजार कर रहे विद्यार्थियों की समस्या का भी जल्द ही समाधान होगा.हालांकि समस्या सिर्फ इस साल आवेदकों के लिस्ट जारी होने की नहीं है. बल्कि पिछले साल चयनित हुए कैंडिडेट भी डेफर के इंतजार में फंसे हुए हैं. उन विद्यार्थियों का एक साल तो बर्बाद हो ही चुका, डर इस बात का भी है कि अगर लेट लतीफी बरकरार रही तो एक और साल चला जाएगा.
''मेरे दो साल बर्बाद हो जाएंगे''
जयपुर की श्रुति (बदला हुआ नाम) ने बताया कि उन्होंने पिछले साल आवेदन किया था, इस साल फरवरी में उनका कोर्स शुरू होना था. लेकिन विभाग की देरी के कारण वे एडमिशन नहीं ले पाईं. वीजा बनाने ने उनके लाखों खर्च हुए, वह राशि भी बर्बाद हुई. अगर इस महीने यह लिस्ट जारी नहीं हुई तो अगले फरवरी में भी एडमिशन नहीं होगा. मेरे दो साल बर्बाद हो जाएंगे.
जिनका एडमिशन हुआ, उनको नहीं मिल रहा लिविंग एक्सपेंस
विद्यार्थियों की चुनौती सिर्फ सिलेक्शन तक खत्म नहीं होती. जिन विद्यार्थियों ने विदेशों में एडमिशन लिया है, उनमें से भी कइयों की राशि विभाग ने रोक दी है. कैंडिडेट का कहना है कि उनसे ऐसे दस्तावेज मांगे जा रहे, जो देना संभव नहीं है. ऐसे में विद्यार्थी पढ़ाई करें या हमेशा दस्तावेज जुटाने में लगे रहें. एक विदेशी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले विद्यार्थी ने हमें बताया कि उन्हें लिविंग एक्सपेंस भी नहीं दिया जा रहा. मार्च के बाद से उन्हें कोई राशि नहीं मिली है. ऐसे में उनके लिए बाहर रह कर पढ़ाई करना बड़ी चुनौती बन गई है.
क्या थी पूरी योजना ?
इस योजना की शुरुआत तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने की थी. तब राजीव गांधी के नाम पर शुरू की गई इस स्कीम के तहत 500 विद्यार्थियों के दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों में निःशुल्क शिक्षा दिलाने की बात की गई थी. अब मौजूदा सरकार ने योजना का नाम और नियम दोनों बदले.
इसके तहत तीन अलग अलग आय वर्ग के विद्यार्थियों को दुनिया के टॉप 150 और भारत के टॉप 50 विश्वविद्यालयों में निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध कराई जाती है. 8 लाख तक की आमदनी वाले परिवार को E1, 25 लाख तक वाले परिवार को E2 और 50 लाख तक की आमदनी वाले परिवार को E3 कैटेगरी में रखा गया.
E1 कैटेगरी में पूरी फीस (50 लाख अधिकतम) सरकार देती, साथ ही लिविंग एक्सपेंस के रूप में 75 हजार रुपए प्रति माह दिए जाते हैं. E2 कैटेगरी में पूरी फीस का 85 फीसदी (42.5 लाख तक) और लिविंग एक्सपेंस के रूप में 50 हजार रुपए और E3 कैटेगरी में फीस का 70 फीसदी (34 लाख तक) सरकार वहन करती है.