Blackbuck Sanctuary: राजस्थान में बढ़ रहा काले हिरण का कुनबा, भीषण गर्मी से बचाने के लिए तालछापर में किए गए ये इंतजाम

Rajasthan Heatwave Alert: आईएमडी ने आगामी 5 दिन राजस्थान समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में हीटवेव चलने के आदेश जारी किए हैं.

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Rajasthan News: काले हिरणों की सबसे बड़ी आबादी के तौर पर एशिया में पहचान रखने वाले तालछापर कृष्ण मृग अभयारण्य (Tal Chappar Blackbuck Sanctuary) में हिरणों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है. वहीं गर्मियां शुरू होने के साथ ही यहां पर वन्यजीवों को भी परेशानी हो रही है. राजस्थान के चूरू जिले में इस समय प्रचंड गर्मी पड़ रही है. इस गर्मी से जानवरों को बचाने के लिए वन विभाग की ओर से भी विशेष व्यवस्था की जा रही है. 

गर्मी से बचाने के लिए किए गए इंतजाम

तालछापर कृष्ण मृग अभयारण्य में हिरणों के हलक तर करने के लिए वन विभाग द्वारा यहां बने तालाबों, टंकियों और होदियों में पानी की व्यवस्था की जा रही है. इसके अलावा शेल्टर व्यवस्था भी विभाग कर रहा है. इसके साथ ही जो घायल वन्य जीव हैं, उनका रेस्क्यू कर समुचित इलाज करने का कार्य किया जा रहा है. डीएफओ महावीर सिंह ने बताया कि काले हिरणों के लिए तालछापर कृष्ण मृग अभयारण्य विश्वविख्यात है. यहां काले हिरणों की संख्या 4 हजार के करीब है. यहां हर वर्ष बड़ी संख्या में देश-विदेश के पर्यटक परिवार के साथ पहुंचते हैं. हिरणों को गर्मी से बचाने के लिए खास एहतिहात बरती जा रही है. विभाग की ओर से पानी के तालाबों को भरा जा रहा है. इसके अलावा हिरणों पर लगातार निगरानी की जा रही है.

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Photo Credit: NDTV Reporter

अफ्रीका-यूरोप से आए पक्षियों का ठिकाना

क्षेत्रीय वन अधिकारी उमेश बागोतिया ने बताया कि प्रतिवर्ष विदेशी पक्षी यहां आते हैं. यहां अफ्रीकी व मध्य यूरोप में पाए जाने वाले पक्षी ग्रेटर फ्लेमिंगो ने अभयारण्य में पड़ाव डालते हैं. ग्रेटर फ्लेमिंगो खूबसूरती के कारण हंस प्रजाति के जीवों में राजहंस के नाम से भी जाना जाता है. बेहद सुंदर दिखने वाला यह पक्षी 3 से 4 घंटे तक एक टांग पर खड़ा रह सकता है. यहां तक की एक टांग पर इतने ही समय तक नींद भी ले सकता है. इसकी गर्दन लंबी, लाल चोंच वाले इस राजहंस की लंबाई 120 से 130 सेंमी होती है. पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि तालछापर कृष्णमृग अभयारण्य का सपाट भूभाग मोथीया घास की प्रचुरता के लिए मशहूर है. यहां का हैबिटेट प्रवासी पक्षियों के अनुकूल होने व अभयारण्य का भौगोलिक परिवेश सुरक्षित होने के कारण प्रवासी पक्षियों की संख्या का ग्राफ प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है.

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