अरावली की पहाड़ी में विराजित देवी करती हैं अग्निस्नान, राजस्थान के इस मंदिर की अद्भुत कहानी

अरावली की विस्तृत पहाड़ियों के बीच स्थित इस मंदिर को धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. यहां अग्निस्नान इतना विशालकाय होता है कि कई बार नजदीक के बरगद के पेड़ को भी नुकसान पहुंचता है. बावजूद इसके देवी की प्रतिमा पर इसका कोई असर नहीं हुआ.

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Idana Mata Temple in Udaipur: देशभर में 7 अक्टूबर सोमवार को शारदीय नवरात्रि की पंचमी पर मां स्कंदमाता की पूजा की जा रही है. नवरात्रि के मौके पर हम आपको बता रहे हैं एक ऐसे शक्तिपीठ के बारे में, जहां मंदिर में विराजित माता अग्निस्नान करती हैं. ईडाना माता का यह मंदिर (Idana Mata Temple) राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है. अरावली की विस्तृत पहाड़ियों के बीच स्थित इस मंदिर को धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. यहां अग्निस्नान इतना विशालकाय होता है कि कई बार नजदीक के बरगद के पेड़ को भी नुकसान पहुंचता है. बावजूद इसके देवी की प्रतिमा पर इसका कोई असर नहीं हुआ.

मन्नत पूरी होने पर माताजी को त्रिशूल चढ़ाने आते हैं भक्त 

मां की प्रतिमा के पीछे अगणित त्रिशूल लगे हुए हैं. दरअसल, हर साल हजारों की संख्या में भक्त दूर-दराज से उदयपुर के ईडाणा माता मंदिर पहुंचते हैं. यहां भक्त अपनी मन्नत पूर्ण होने पर त्रिशूल चढ़ाने आते हैं. यहां देवी की प्रतिमा महीने में 2-3 बार अग्नि से स्नान करती है. इस अग्निस्नान में मां को चढ़ाई चुनरी, धागे आदि भस्म हो जाते हैं. इसी अग्निस्नान के कारण यहां मां का मंदिर नहीं बन पाया.

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जानिए क्या है मंदिर का इतिहास?

शहर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर कुराबड़-बम्बोरा मार्ग पर स्थित ईडाणा माता का मंदिर बेहद खास है. मेवाड़ के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर में प्रतिमा की स्थापना का कोई इतिहास यहां के पुजारियों को ज्ञात नहीं है. प्रचलित मान्यता के मुताबिक वर्षों पूर्व यहां कोई तपस्वी बाबा तपस्या किया करते थे. बाद में स्थानीय क्षेत्रवासी और पास के गांव के लोग यहां आने लगे. मां का दरबार बिलकुल खुले एक चौक में स्थित है. स्थानीय लोगों का ऐसा दावा है कि लकवा से ग्रसित रोगी यहां मां के दरबार में आकर ठीक होकर जाते हैं. ऐसा होने पर रोगियों के परिजन यहां चांदी या काष्ठ के अंग बनाकर चढ़ाए जाते हैं.

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अग्निस्नान की वजह नहीं ढूंढ पाए विशेषज्ञ

वैज्ञानिक तौर पर इस मंदिर में माता रानी के अग्नि स्नान की पुष्टि अब तक नहीं की गई है और ना ही आज तक कोई विशेषज्ञ इसके पीछे की वजह का पता लगा पाए हैं. लेकिन मान्यताओं के अनुसार यहां पर देवी खुद ही अग्नि स्नान करती है. शारदीय और चेत्र, दोनों ही नवरात्र में यहां भक्तों की काफी भीड़ रहती है. इसके अतिरिक्त सभी प्रमुख त्यौहार यहां धूमधाम से मनाए जाते हैं.

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