Ramadhan 2024: कल से शुरू हो रहा है पवित्र रमजान का महीना, भारत में आज दिखेगा रमजान का चांद

रोजे के दौरान लोग पूरी तरह अनुशासन का पालन करते हैं और बिना कुछ खाए-पिए रहते हैं. रमजान का महीना इस्लमी साल शाबान के महीने के बाद आता है. ये इस्लामी साल का नौवां महीना है. रोज़ सुबह सूरज निकलने से पहले कुछ खा कर शुरू किया जाता है, जिसे सेहरी कहते हैं.

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Ramadhan Begins From Tommorow: रमजान या रमदान का इस्लामी साल हिजरी का नौवां महीना है. मुस्लिम समुदाय इस महीने को बेहद मुकद्दस यानी परम पवित्र मानता है. मुस्लिम लोगों के लिए रमजान का महीना बेहद खास होता है. ये मुकद्दस महीना आज शाम चाँद नजर आने के बाद मग़रिब के वक़्त से शुरू हो जाएगा.

रमजान शब्द रम्ज से बना है, जिसका मतलब होता है झुलसा देना. इस माह में रोज़ेदार रोज़ा रख कर आने अन्दर की बुराइयों को झुलसा देता है और पाक हो जाता है. यही वजह है कि अल्लाह के करीब लेकर जाने वाले इस पाक व मुकद्दस महीने रमजान का इंतजार मुस्लिम मज़हब के हर मानने वालों को बेसब्री से रहता है. 

सऊदी अरब में जिस दिन रमजान का चांद नज़र आता है, आम तौर पर उसके अगले दिन भारत में चांद का दीदार होता है और यहाँ पहला रोजा रखा जाता है. इस पूरे महीने में 29 या 30 रोजे होते हैं और इनके पूरा होने पर ईद-उल-फ़ित्र का त्यौंहार मनाया जाता है. इस्लाम में ये मान्यता है कि सन् 610 ई में पवित्र ग्रंथ कुरआन मुकम्मल हुआ था, इसलिए ये महीना मुस्लिमों के लिए बेहद एहम होता है.

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बिना खाये-पाए रखते हैं रोजा

रोजे के दौरान लोग पूरी तरह अनुशासन का पालन करते हैं और बिना कुछ खाए-पिए रहते हैं. रमजान का महीना इस्लमी साल शाबान के महीने के बाद आता है. ये इस्लामी साल का नौवां महीना है. रोज़ सुबह सूरज निकलने से पहले कुछ खा कर शुरू किया जाता है, जिसे सेहरी कहते हैं. उसके बाद दिन भर खाने और पीने पर बन्दिश रहती है. उसके बाद शाम को सूरज डूबने के बाद इफ़्तार किया जाता है. जिसे रोज़ा खोलना भी कहते हैं.

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रमज़ान महीने के 30 दिन के रोज़ों को तीन अशरों यानी हिस्सों में बांटा गया है. रमज़ान के पहले 10 दिन रेहमत के, दूसरे 10 दिन बरकत के और आख़िरी 10 दिन मग़फ़िरत के कहे जाते हैं. 

इस महीने में होती है खास इबादतें 

रमजान माह में रात के वक़्त इशा की नमाज़ के बाद एक ख़ास नमाज़ और अदा की जाती है जिसे तरावीह कहा जाता है. ये नमाज़ रमज़ान का चांद नज़र आने की रात से शुरू होती है और आख़िरी रोज़े से एक दिन पहले तक अदा की जाती है. तरावीह की नमाज़ में क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत यानी पाठ किया जाता है और पूरे माह में एक या एक से ज़्यादा बार पूरे क़ुरआन की तिलावत मुकम्मल की जाती है. ये ज़िम्मेदारी हाफ़िज़ निभाते हैं, जिन्हें पूरा क़ुरआन-ए-करीम कंठस्थ होता है.

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हर मुसलमान को देनी पड़ती है जकात (दान) 

रमज़ान के महीने में ग़रीबों और ज़रूरतमंदों की मदद के लिए ज़कात का सिस्टम रखा गया है. इस महीने में हर वो मुस्लिम मर्द और औरत, जो साहिब-ए-निसाब है, यानी जिनके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोले चांदी है, या इतनी या इससे ज़्यादा मात्रा में किसी भी तरह की दौलत है, तो उन पर अपनी उस प्रोपर्टी की ढाई फ़ीसद रक़म ज़कात के तौर पर निकालना ज़रूरी है. ये सिस्टम समाज मे बराबरी और बेहतरी लाने के लिए रखा गया है.

दरअसल, रोज़ा एक प्रैक्टिस है इन्सान से जुड़ी हर बुराई को छोड़ देने की. चाहे वो बुराई जिस्मानी हो, ज़ेहनी हो या रूहानी हो. रोज़ा तभी कहलाएगा जब सारी बुराइयों से इन्सान दूर होगा.

बुराइयों से दूर रहने की सीख देता है रमजान 

रमज़ान में सभी मुस्लिम लोगों को रोज़ा रखना ज़रूरी माना जाता है. हालांकि बच्चों और शारीरिक रूप से अस्वस्थ लोगों को रोज़ा रखने के लिए छूट दी गई है, लेकिन रोज़ा सिर्फ़ खाना और पीना छोड़ देने का नाम नहीं है. रोज़ा सिर्फ़ खाना-पीना छोड़ना नहीं है बल्कि इन्सान के जिस्म के हर हिस्से का रोज़ा होता है. अगर इसका ख़याल ना रखा जाए तो रोज़ा नहीं होगा.

इस बार हल्की सर्दी में आ रहा रमजान 

इस बार ऐसा 34 सालों बाद ऐसा होगा कि रमज़ान का महीना फ़रवरी-मार्च के महीने में हल्की सर्दी के बीच आ रहा है. ये वक़्त बसन्त ऋतु का होता है. जबकि पिछले कई सालों सालों से रमज़ान महीने की शुरुआत लगभग गर्मी के मौसम में हो रही थी. हालांकि रमज़ान किसी भी माह में आये, रोज़ेदार को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता. वो अल्लाह की ख़ुशी हासिल करने के लिए  शिद्दत की गर्मी में भी रोज़ा रखता है और यही जज़्बा उसे अल्लाह के नज़दीक कर देता है.

ऐसा 34 सालों बाद ऐसा होगा कि रमज़ान का महीना फ़रवरी-मार्च के महीने में हल्की सर्दी के बीच आ रहा है. ये वक़्त बसन्त ऋतु का होता है. जबकि पिछले कई सालों सालों से रमज़ान महीने की शुरुआत लगभग गर्मी के मौसम में हो रही थी.

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