Rajasthan News: अस्पताल ने बच्चे के हाथ पर चढ़ा दिया था ग़लत प्लास्टर, अब देना होगा 2 लाख रुपए का हर्जाना

आयोग ने फैसला सुनाते हुए अस्पताल को इलाज में खर्च हुए 1,56,350 रुपये, परिवाद खर्च के 10,000 रुपये और 2 लाख रुपये हर्जाने के रूप में पीड़ित को देने के आदेश दिए हैं.

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Barmer News: उपभोक्ता आयोग ने बाड़मेर शहर के एक निजी अस्पताल पर मासूम बच्चे के इलाज में लापरवाही बरतने के दर्ज मामले में फैसला सुनाया है. आयोग ने अस्पताल पर इलाज में खर्च हुई राशि के साथ-साथ परिवादी को हर्जाना देने का आदेश दिया है. बाड़मेर शहर निवासी परिवादी ने अपने बच्चे के हाथ में फ्रैक्चर होने पर निजी अस्पताल में भर्ती कराया था. इस दौरान डॉक्टर ने लापरवाही बरतते हुए गलत तरीके से प्लास्टर कर दिया, जिससे बच्चे का हाथ गलत जुड़ गया.

जब परिवादी ने इस संबंध में डॉक्टर से बातचीत करनी चाही, तो डॉक्टर ने पांच लाख रुपये की मांग करते हुए बड़े ऑपरेशन की आवश्यकता बताई. पैसे देने से इनकार करने पर डॉक्टर ने बच्चे का इलाज करने से मना कर दिया, जिससे आहत होकर परिवादी ने उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करवाई.

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बच्चे के हाथ पर चढ़ा दिया था ग़लत प्लास्टर 

दरअसल, यह मामला साल 2021 का है. बाड़मेर निवासी सवाईलाल सोनी अपने बच्चे को हाथ में फ्रैक्चर होने पर बाड़मेर ज्वाइंट ट्रॉमा एंड डेंटल केयर हॉस्पिटल लेकर गए थे. अस्पताल में कार्यरत चिकित्सक डॉ. सुरेंद्र चौधरी ने बिना आवश्यक जांच किए ही मासूम के हाथ पर कच्चा प्लास्टर कर दिया. गलत प्लास्टर के कारण बच्चे के हाथ की हालत बिगड़ गई. जब परिवादी ने अस्पताल प्रबंधन से शिकायत की, तो कोई जवाब नहीं मिला. इसके बाद, पीड़ित ने किसी अन्य अस्पताल में बच्चे का इलाज करवाया, जहां लापरवाही की पुष्टि हुई.

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2 लाख रुपए भी लगाया हर्जाना 

इस घटना के बाद परिवादी ने जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज करवाई. आयोग के अध्यक्ष शंकरलाल पुरोहित, सदस्य स्वरूप सिंह राठौड़ और सरिता पारीक ने मामले की सुनवाई के बाद अस्पताल और डॉक्टर को दोषी ठहराया. आयोग ने फैसला सुनाते हुए अस्पताल को इलाज में खर्च हुए 1,56,350 रुपये, परिवाद खर्च के 10,000 रुपये और 2 लाख रुपये हर्जाने के रूप में पीड़ित को देने के आदेश दिए हैं.

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आयोग ने स्पष्ट किया कि यदि अस्पताल तय समय में यह राशि परिवादी को नहीं देता है, तो 8% वार्षिक ब्याज के साथ रकम वसूली जाएगी. इस फैसले से निजी अस्पतालों की लापरवाह कार्यशैली पर सवाल खड़ा हो गया है और यह मामला चिकित्सा संस्थानों की जवाबदेही पर एक महत्वपूर्ण मिसाल बना है.

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