जंजीरों में कैद 2 भाइयों की जिंदगी, सदमे से हुई मां की मौत, हालात जान कांप जाएगी आपकी रूह 

वैसे तो सरकारी योजनाएं अक्सर गरीबों के लिए ही बनाई जाती है. लेकिन इस परिवार को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया है. इसी वजह से इन मानसिक रोगियों का इलाज कराने के बजाए परिजन उन्हें जंजीरों से बांधकर रखने को मजबूर है. परिवार का एक मात्र सदस्य मजदूरी करके इतना पैसा नहीं कमा पाता है जिससे वह अपने भाइयों का अच्छा इलाज करा पाए.

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जंजीरों में कैद दो भाइयों के कच्चे मकान की तस्वीर.

Sardarshahar Mentally ill Brother: आज हम आपको एक ऐसे परिवार के बारे में बताएंगे जिसके हालात जानकर आपको बहुत तकलीफ होगी. लेकिन यह परिवार इस दर्द को हर रोज जीता है. राजस्थान के सरदारशहर तहसील से 40 किलोमीटर दूर गांव लोडसर में तुलसीराम नायक का परिवार है. तुलसीराम के 2 भाइयों की मानसिक स्थिति ठीक नहीं होने के चलते वह पिछले 10-12 वर्षों से जंजीरों में कैद हैं. हालांकि इनकी ऐसी स्थिति जन्म से नहीं है पहले यह बिल्कुल ठीक और मेहनती हुआ करते थे. अपने बच्चों की ऐसी स्थिति देखरन इनकी मां भी गुजर गई. 

साथ ही तुलाराम का सबसे छोटा भाई भी अपने दोनों भाइयों की यह दशा देख नहीं पाया और उसकी भी मौत हो गई. अब परिवार में तुलसाराम ही कमाने वाला बचा है, उसी के सहारे पूरे परिवार का गुर्जर बसर होता है तुलसीराम के पिता 75 वर्षीय नानूराम भी अपने दो बेटों की इस हालत को देखकर बीमार रहते हैं वह भी चारपाई से उठ नहीं पाते हैं.

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पिछले 10 वर्षों से जंजीरों में कैद

सरदारशहर उपखंड क्षेत्र के गांव लोडसर में दो सगे भाइयों को पिछले 10-12 वर्षों से लोहे की जंजीरो (सांकळ) से बांध रखा है. आपको बता दें कि ओमप्रकाश नायक (36) और उनका छोटा भाई हरिराम (32) मानसिक रोगी होने के कारण उनको घर में बांध रखा है. पिछले कई वर्षों से एक ही जगह पर बंधे हुए है.

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ये देखकर मां और भाई को लगा सदमा

तुलसाराम ने बताया कि हमारे परिवार में हम चार भाई थे, जिनमें सबसे बड़ा मैं ही हूं. 15 - 20 वर्ष पहले तक सब सही था. पूरा परिवार सुख मय जीवन जी रहा था. लेकिन 10-12 वर्ष पहले अचानक मुझसे छोटे भाई ओम प्रकाश की मानसिक स्थिति खराब हो गई, जिसके बाद से ही परिवार में सकट आने शुरू हो गए. सबसे पहले मुझसे छोटा भाई ओम प्रकाश पागलों जैसी हरकत करने लग गया. इलाज कराने के बाद भी ठीक न होने पर मजबूरन उसे जंजीरों से बांधना पड़ा.

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इसके कुछ समय बाद ही उससे छोटा भाई हरीराम कि भी दिमागी संतुलन खराब हो गई और मजबूरन हमें उसे भी जंजीरों से बांधना पड़ा. मेरे दो भाइयों की स्थिति को देखकर मां भी सदमे में चल बसी. वही कुछ समय बाद सबसे छोटा भाई भी मेरे दो भाइयों की इस दशा को देखकर गुजर गया. अब मेरे बुजुर्ग पिता नानूराम भी बीमार रहते हैं. पूरे परिवार की जिम्मेदारी मुझ पर ही है. बड़ी मुश्किल से मैं मेहनत मजदूरी कर परिवार चला रहा हूं, क्योंकि कमाने वाला में एक ही हूं. ऐसे में परिवार को चलाने में बड़ी परेशानी हो रही है.

टूटे-फूटे घर और झोपड़ी में बांधा जंजीरों से

लोडसर गांव में रहने वाले तुलसाराम के परिवार की सुध आज तक प्रशासन ने नहीं ली है. इस परिवार के हालात इतने खराब है कि घर में बिजली का कनेक्शन तक नहीं है. घर भी एकदम जर्जर स्थिति में है. इस जर्जर घर के एक कमरे में पिता रहते तो और दूसरे कमरे में ओमप्रकाश को जंजीरों से बांध रखा है. मकानों के पिछे बनी एक झोपड़ी के नीचे हरिराम नायक को लोहे की सांकल से बांध रखा है.

पीड़ित के बड़े भाई तुलछीराम नायक ने बताया कि 'आज तक प्रशासन को अवगत करवाते-करवाते थक चुके हैं. लेकिन कोई सुनवाई तक नहीं करने आया. हमारे घर में मै एक ही सदस्य हूं जो मजदूरी करता हूं. इनको देखकर मेरी भी मानसिक स्थिति खराब होने लगी है.'

ओमप्रकाश 12 वीं और हरीराम ने 8 वीं तक की पढ़ाई

गांव के सरपंच बृजलाल ढाका ने बताया कि ओमप्रकाश पढ़ाई में बहुत हुशियार था. ओम प्रकाश 10वीं में अच्छे अंकों के साथ पास हो गया. लेकिन 12वीं क्लास में किन्ही कारणों से फेल होने के बाद वो गुमसुम रहने लगा. उसके बाद मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गया. उसको देखकर 2 वर्ष के बाद छोटे भाई हरिराम की भी मानसिक स्थिति खराब हो गई. 

ग्रामीण करते हैं मदद  

ग्रामीणों ने बताया की हम इतने बेबस है कि अपने गांव के 2 बेटे को चाहकर भी जंजीरों से मुक्त नहीं कर सकते. यह चीखते है, चिल्लाते है. जंजीरों में जकड़े रहते-रहते इनके हाथ पैर में जख्म हो गये हैं. जख्मों से खून निकलता है. यह देखकर हमारे के आंखों से आंसू बहते हैं लेकिन वह अपने गांव के इन बेटों को इस जंजीर से रिहाई नहीं दे सकते हैं.

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