Rajasthan By Election 2024: राजस्थान में 13 नवंबर को विधानसभा उपचुनाव हैं. नामांकन प्रक्रिया के बाद राजनैतिक दल चुनाव प्रचार में जुटे हैं. चौरासी विधानसभा सीट एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है, जहां करीब 70 फीसदी एसटी मतदाता होने से इस सीट पर जीत फैसला एसटी वोटर ही करता है. पिछले दो विधानसभा चुनावों में आदिवासी अस्मिता और पहचान के नाम पर बनी आदिवासी पार्टी का यहां प्रभाव बढ़ा है.
कांग्रेस का रहा है कब्ज़ा
राजस्थान के दक्षिणांचल में स्थित आदिवासी बहुल डूंगरपुर जिले की चौरासी विधानसभा पड़ोसी गुजरात राज्य से सटी हुई है. इस सीट पर 70 पर्सेंट एसटी वोटर्स है. जबकि 10 पर्सेंट ओबीसी और 20 पर्सेंट जनरल, अल्पसंख्यक ओर एससी वोटर्स है. 1967 से लेकर आज तक इस सीट पर 12 बार चुनाव हुए हैं. जिसमें से आधी बार (6 बार) कांग्रेस ही इस सीट पर काबिज रही. जबकि भाजपा केवल 3 बार ही इस सीट पर जीत हासिल कर सकी है. वहीं 1 बार जेएनपी ने जीत हासिल की.
राजकुमार रोत ने दर्ज की थी सबसे जीत
लेकिन पिछली 2 बार से ये सीट राजकुमार रोत के कब्जे में रही. 2018 में बीटीपी (भारतीय ट्राइबल पार्टी) ओर इसके बाद 2023 में बीएपी (भारत आदिवासी पार्टी) से विधायक बने. दूसरी बार 69 हजार के बड़े अंतर से रोत यहां से कामयाब हुए थे. इससे पहले कभी किसी ने इतने बड़े मार्जिन से जीत हासिल नहीं की थी. ऐसे में कांग्रेस ओर बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती भारत आदिवासी पार्टी की रहेगी.
बढ़ता ही गया भारत आदिवासी पार्टी का वोट बैंक
साल 2018 में बीटीपी से चुनाव लड़ने वाले राजकुमार रोत को 38.22 फीसदी वोट मिले थे. जबकि भाजपा को 30.41 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में नई पार्टी बीएपी से चुनाव लड़े राजकुमार रोत को 53.92 फीसदी वोट मिले. जो कि पिछली बार से 15.07 फीसदी ज्यादा हैं. उसके पीछे का प्रमुख कारण एसटी वोटर्स रहा है. ऐसे में इन आंकड़ों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि चौरासी विधानसभा क्षेत्र का एसटी वोटर अब कांग्रेस ओर भाजपा से छिटककर भारत आदिवासी पार्टी के पास चला गया है.
कांग्रेस और भाजपा के लिए कठिन होगी चौरासी की राह
बहरहाल चौरासी विधानसभा उपचुनाव की चुनावी चौसर बिछ चुकी है. चौरासी विधानसभा सीट पर एसटी वोटर्स की बहुलता को देखते हुए सभी राजनैतिक दल अपने-अपने तरीके से वोटर्स को रिझाने में लगी हैं. कांग्रेस जहां आजादी के बाद से आदिवासियों के उत्थान के लिए किये गए कामों को भुना रही है तो वहीं भाजपा नेता भाजपा द्वारा आदिवासियों को दिए गए सम्मान जैसे मुद्दों को लेकर वोटर्स के बीच जा रही हैं.
इसके साथ ही भारत आदिवासी पार्टी आजादी के बाद से आदिवासी वोटर्स को केवल वोट बैंक मानकर शोषण करने के आरोप भाजपा ओर कांग्रेस पर लगाते हुए वोट मांग रही है.
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