Rajasthan: बीसलपुर बांध के पास मौजूद शिव मंदिर जहां रावण ने की थी तपस्या, सावन में उमड़ती है भक्तों की भारी भीड़

मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चौहान वंश के विग्रहराज चौहान (विग्रहराज चतुर्थ) ने करवाया था. जो बीसलदेव के नाम से भी जाने जाते हैं. धार्मिक आस्थाओं और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भारतवर्ष में 12 ज्योर्तिलिंग और 108 उपज्योर्तिलिंग हैं, गोकर्णेश्वर महादेव का मंदिर उन्हीं में से एक है. माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कई सालों तक यहां तपस्या की थी.

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टोंक के बीसलपुर बांध के पास बने इस शिव मंदिर को बीसल देव ने बनवाया था

Bisalpur Dam And Shiva Temple: टोंक जिले में बनास नदी के त्रिवेणी संगम बीसलपुर बांध पर मौजूद गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर एक ऐसा मंदिर है जिसमें धरती से प्रकट लगभग 40 फिट लंबा शिवलिंग मौजूद है. इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि अरावली पर्वत माला की गुफा में मौजूद इस मंदिर में भगवान शिव के सबसे बड़े तपस्वी भक्त दशानन रावण ने यहां घोर तपस्या की थी. यह मंदिर त्रिवेणी संगम पर मौजूद है और पुराणों मे ऐसी मान्यता है कि जहां तीन नदियों का संगम होता है. वह स्थान स्वतः ही तीर्थ हो जाता है.

ऐसे में इस प्राचीन शिव मंदिर में वैसे तो सालभर भक्तों की भीड़ उमड़ती रहती है. लेकिन खास तौर पर सावन के महीने में इस प्राचीन मंदिर में पूजा-अर्चना, शिव अभिषेक और कांवड़ यात्राओं का दौर निरन्तर जारी रहता है. मंदिर से जुड़ी मान्यताओं, लोगों की आस्था अभिभूत है. 

स्वयंभू शिवलिंग पर गोकर्ण के निशान मौजूद हैं 

हिन्दू धर्म मान्यताओं के अनुसार सावन महीने का विशेष महत्व है और यह शिवभक्तों का वह महीना जिसमे में पूजा अर्चना, शिव अभिषेक और कांवड़ यात्राओं का दौर चलता रहता है. यह मंदिर बीसलपुर बांध के पास बनास नदी के तट पर होने को लेकर खास तौर पर प्रसिद्द है और बीसलपुर गांव में मौजूद प्राचीन हिन्दू मन्दिर है जो कि भगवान शिव के गोकर्णेश्वर रूप को समर्पित है. मंदिर में मौजूद स्वंयम्भू शिवलिंग पर गोकर्ण के निशान मौजूद है.

मंदिर में मौजूद शिवलिंग

मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चौहान वंश के विग्रहराज चौहान (विग्रहराज चतुर्थ) ने करवाया था. जो बीसलदेव के नाम से भी जाने जाते हैं. धार्मिक आस्थाओं वह पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भारतवर्ष में 12 ज्योर्तिलिंग और 108 उपज्योर्तिलिंग हैं, गोकर्णेश्वर महादेव का मंदिर उन्हीं में से एक है. माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान शिव के सबसे बड़े भक्त रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए कई सालों तक यहां तपस्या की थी.

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गोकर्णेश्वर महादेव शिवलिंग है स्वयंभू शिवलिंग 

बीसलपुर के गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर की गुफा में नदी तल से लगभग 40 फिट की ऊंचाई तक गोकर्ण के निशान वाला यह प्राचीन शिवलिंग स्वयंभू शिवलिंग है जो किसी के हाथों स्थापित नहीं किया जाकर खुद स्थापित हुआ है.

गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर कैसे पड़ा नाम 

गोमाता में 36 करोड़ देवी देवताओं का निवास स्थान माना गया है और गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर में मौजूद स्वयंभू शिवलिंग को गौकर्णेश्वर महादेव महात्मा गौकर्ण के नाम पर रखा गया और यह स्थान गौकर्णेश्वर महादेव कहलाया. महात्मा गौकर्ण ने अपने भ्राता धुन्धकारी को मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां एक सप्ताह की श्रीमद्भागवत का श्रवण करवाया था .

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गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर

मंदिर से जुड़ी किवदंतियों के अनुसार रावण को था वरदान 

गोकर्णेश्वर महादेव मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार रावण ने यहां जब घोर तपस्या की तो रावण की तपस्या से खुश होकर खुद भगवान शिव ने रावण को आत्मलिंग के रूप में यह शिवलिंग दिया था. इसके अलावा वरदान दिया था कि जहां भी इस शिवलिंग को रखा जाएगा यह वहीं स्थापित हो जाएगा.

ऐसे में रावण यहां से लंका के लिए रवाना होने लगा इसी दौरान देवताओं को यह चिंता सताने लगी कि अगर रावण द्वारा लंका मे शिवलिंग की स्थापना कर दी गयी तो रावण अजर-अमर हो जाएगा और उसे परास्त करना मुश्किल होगा. ऐसे में देवताओं ने देवीय शक्ति से रावण को लघुशंका पर मजबूर कर दिया और जैसे है नदी किनारे रावण ने शिवलिंग को यहां रखा यह शिवलिंग यही स्थापित हो गया.

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पर्यटन महत्व के इस प्राचीन मंदिर के पास बीसलपुर बांध होने के कारण यहां सालभर पर्यटक पंहुचते हैं. लेकिन सावन का महीना इस प्राचीन शिव मंदिर को लेकर खास होता है. जब यहां से शिवभक्त कांवड़ यात्राएं लेकर जाते है और मंदिर में शिव अभिषेक और अनुष्ठानो का दौर चलता रहता है. 

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