जिले की काली सिंध थर्मल पावर परियोजना को कोयले में आने वाले क्लिंकर्स यानी अपशिष्ट पदार्थ बेहद नुकसान पहुंचा रहे हैं. यूनिट में बार-बार ट्रिपिंग आ रही है. ऐसे में परियोजना को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है. क्लिंकर्स आने के चलते बॉयलर को भी नुकसान होने की संभावना बनी रहती है.
गौरतलब है गत वर्ष भी बॉयलर में बड़ा नुकसान हो गया था. ऐसे में शटडाउन लेकर बायलर को दुरुस्त करना पड़ा था. दरअसल, पिछले कुछ महीनों से कोल इंडिया द्वारा सप्लाई किये जा रहे कोयले की गुणवत्ता बेहद घटिया है. इस इसमें बड़ी तादाद में मिलावट आ रही है.
1200 मेगावाट बिजली का उत्पादन
कालीसिंध थर्मल पॉवर प्लांट में दो यूनिट हैं. इन दोनों यूनिटों से 600-600 मेगावाट बिजली का उत्पादन प्रति घंटे होता है. इतनी बिजली के उत्पादन के लिए हर दिन 4 रैक कोयले की जरूरत होती है. यहाँ 330 टन कोयले से हर घंटे 600 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता है. वहीं अभी आ रहे घटिया गुणवत्ता के कोयले के कारण हर घंटे केवल 300 से 500 मेगावाट तक ही बिजली बन पा रही है.
2 लाख 88 हजार यूनिट का उत्पादन
कालीसिंध थर्मल पावर परियोजना की एक यूनिट अगर अपनी पूरी क्षमता से चले तो 1 लाख 44 हजार यूनिट का उत्पादन होता है. ऐसे में दोनों यूनिटों में मिलाकर 2 लाख 88 हजार यूनिट का उत्पादन होता है. किंतु बार-बार ट्रिपिंग आने और घटिया कोयले के कारण उत्पादन प्रभावित हो रहा है. जिसके चलते परियोजना को काफी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ रहा है.
अभी बंद है पहली यूनिट
कालीसिंथ थर्मल पावर प्लांट की पहली यूनिट दो दिन पहले बंद हुई है. उससे पहले एक सप्ताह पहले भी यूनिट बंद हो गई थी. यूनिट बंद होने से यहां पर उत्पादन भी बार-बार प्रभावित हो रहा है. प्लांट को नई तकनीक के अनुसार डिजाइन किया गया है. जिसमें साफ सुथरा कोयला ही प्रयोग हो सकता है अगर गुणवत्ता कमजोर होती है तो पूरी यूनिट के संचालन में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.