दिवाली पर हजारों साल पुरानी अनूठी परंपरा, अधूरा माना जाता है इसके बिना लक्ष्मी पूजन

स्थानीय बुजुर्ग, ज्योतिषी और पंडित बताते हैं कि हाट परंपरा करौली की अति प्राचीन परंपराओं में से एक है. जो यहां आदिकाल से दीपावली के पर्व पर चली आ रही है.

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Diwali 2024: पूरे देश में दिवाली का त्योहार धूम-धाम से मनाया जा रहा है. दिवाली एक ऐसा त्योहार है जो हजारों साल पुरानी परंपरा एक परंपरा के तौर पर मनाया जाता है. वहीं अलग-अलग जगहों पर दिवाली मनाने का तरीका भी अलग-अलग है. कुछ लोगों की दिवाली समय के साथ बदलती भी देखी जा रही है. लेकिन कुछ स्थानों पर हजारों साल पुरानी परंपरा को आज भी निभाया जा रहा है. राजस्थान में एक ऐसी ही परंपरा है जिसे लोग सदियों से निभा रहे हैं. यह परंपरा है मिट्टी की हाट की परंपरा. कहा जाता है कि इस परंपरा के बिना लक्ष्मी पूजन भी अधूरा माना जाता है.

सोने-चांदी भी नहीं ले पाए मिट्टी की हाट की जगह

राजस्थान के करौली जिले में लक्ष्मी पूजन की एक अलग परंपरा है. इसमें पूजा के समय घर-घर में मिट्टी की हाट भरी जाती है. इस परंपरा के चलते दिवाली का पर्व नजदीक आते ही करौली के बाजार मिट्टी के दीपकों के साथ ही मिट्टी की हाटों से सज जाते हैं. वैसे तो हाट जो मिट्टी से बनाया जाता है इसकी कई जगह परंपरा है. लेकिन करौली में दिवाली के एक महीने पहले ही स्थानीय कुंभकार परिवार मिट्टी और गोबर के मिश्रण से इन हाटों को अपने चौक पर आकार देना शुरू कर देते हैं. इन हाटों को शुद्धता का प्रतीक माना जाता है और सोने-चांदी से बनी हाट भी यहां की मिट्टी की हाट की जगह नहीं ले पाई हैं. स्थानीय लोग आज भी दिवाली के पर्व पर मिट्टी की हाटों को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं.

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यहां के स्थानीय बुजुर्ग, ज्योतिषी और पंडित बताते हैं कि हाट परंपरा करौली की अति प्राचीन परंपराओं में से एक है. जो यहां आदिकाल से दीपावली के पर्व पर चली आ रही है.

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पांच मिठाइयों के साथ भरी जाती है हाट

स्थानीय कुंभकार धन्नो देवी के अनुसार करौली में हर घर में दिवाली पर हाट भरी जाती है. जो शुभ मानी जाती है. यह हाट बच्चों की दीर्घायु और परिवार की वंश वृद्धि के लिए भरी जाती है. इन हाटों को लट्टू, बर्फी, इमरती जैसी पांच अलग-अलग मिठाइयों से भरने की परंपरा है.

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हाट के बिना लक्ष्मी पूजन अधूरा

दूसरी कुंभकार महिला, हुकम बाई, ने बताया कि करौली में मिट्टी की हाट के बिना लक्ष्मी पूजन अधूरा माना जाता है. ये हाट बहुत मेहनत से तैयार की जाती हैं और दिवाली पर इनकी मांग इतनी बढ़ जाती है कि कई बार हाट की पूर्ति नहीं हो पाती है. दिवाली के समय करौली के बाजारों में ये हाट 30 से 50 रुपये प्रति पीस के हिसाब से बिकती हैं.

क्या होती है हाट?

मिट्टी की यह हाट पांच मिट्टी के कुल्हड़ों का मेल है. इसमें चार कुल्हड़ आपस में जुड़े होते हैं और पांचवां उनके ऊपर रखा जाता है. यह हाट मिट्टी और गोबर से बनती है और कुंभकार परिवार इसे शुद्ध रंगों और देशी चित्रकारी से सजाते हैं.