उम्मेदाराम की संसद में हुई अनोखी एंट्री, जानें पुलिस, व्यापारी से लेकर सांसद बनने तक का सफर

कांग्रेस से लोकसभा चुनाव में जीतकर आए  उम्मेदाराम बेनीवाल की संसद में अनोखी एंट्री चर्चा का विषय बन गई. जानें दिल्ली पुलिस में काम करने वाले उम्मेदाराम के राजनीतिक सफर के बारे में सारी बातें...

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Barmer Jaisalmer Lok Sabha Seat: लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद जीतकर संसद पहुंचने वाले सांसदों का शपथ का कार्यक्रम जारी है. इस दौरान नवनिर्वाचित सांसद ने अनोखे अंदाज के साथ संसद भवन में एंट्री ली है. अनोखे अंदाज में एंट्री की वजह से चर्चाओं में आए बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से पहली बार जीत कर आए कांग्रेसी सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल (Umedaram Beniwal) आज संसद पहुंचे. इस दौरान उनके साथ कांग्रेस (Congress) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (mallikarjun kharge) और कांग्रेस के कई सांसद भी साथ थे. संसद भवन पहुंचने तक मल्लिकार्जुन खड़गे उम्मेदाराम बेनीवाल का हाथ पकड़े उनके सहारे के साथ चलते हुए दिखें. 

उम्मेदाराम बेनीवाल संसद में एंट्री के समय अपने हाथ में सविधान की किताब लिए नजर आए. संसद में प्रवेश से पहले सीढ़ियों पर माथा टेका और प्रणाम करने के बाद प्रवेश किया. इससे पहले उम्मेदाराम बेनीवाल ने दो बार विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन जीत नहीं मिली. लेकिन बेनीवाल कहते है शायद किस्मत उन्हें जयपुर नहीं दिल्ली भेजना चाहती थी.

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दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल रह चुके उम्मेदाराम

उम्मेदाराम बेनीवाल बेहद ही साधारण किसान परिवार से आते है. बेनीवाल बालोतरा जिले की गिड़ा पंचायत समिति की ग्राम पंचायत सवाऊ पदमसिंह के पुनियों का तला गांव के निवासी हैं. उम्मेदाराम बेनीवाल ने 12वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद साल 1995-96 में जैसलमेर में आयोजित आर्मी की भर्ती में शामिल होने के लिए जा रहे थे, बाड़मेर पहुंचे और पता चला की भर्ती एक दिन पहले ही हो चुकी है.

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उस दिन बाड़मेर पुलिस लाइन में दिल्ली पुलिस कांस्टेबल भर्ती प्रक्रिया चल रही हैं. उम्मेदाराम बेनीवाल उस भर्ती शामिल हुए और उनका सलेक्शन हो गया. ट्रेनिंग के बाद दिल्ली में कई पुलिस थानों में उनकी तैनाती रही और करीब 10 बाद दिल्ली के संसद भवन रोड थाने में आखिरी तैनाती के बाद उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और दिल्ली में ही व्यापार शुरू किया.

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दिल्ली में व्यापार छोड़ राजनीति में आए

दिल्ली पुलिस से इस्तीफा देने के बाद उम्मेदाराम बेनीवाल ने राजधानी में ही हेंडीक्राफ्ट का बिजनेस शुरू किया. व्यवसाय अच्छा चलने लगा इसी दौरान खुद की ग्राम पंचायत में पंचायतीराज के चुनाव थे. गांव वालों कहने पर चुनाव लड़ने गांव पहुंचे. लेकिन सीट महिला के लिए आरक्षित थी ऐसे में पत्नी पुष्पा को सरपंच का चुनाव लड़ाया और जीतकर ग्राम पंचायत में बेहतरीन कार्य करते हुए राजनीति में सक्रिय हुए. इसी दौरान हनुमान बेनीवाल ने नई पार्टी आरएलपी बनाई तो पार्टी में शामिल होकर बायतु से विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन लगातार दो चुनाव में बेहद ही कम अंतराल से चुनाव हार गए.

महज 910 वोट से हारें विधानसभा चुनाव 2023 

साल 2018 विधानसभा चुनाव से पहले हनुमान बेनीवाल ने राज्यभर में किरोड़ीलाल मीना और घनश्याम तिवाड़ी के साथ प्रदेश भर में हुंकार रैलियां निकालकर कर तीसरे मोर्चे की घोषणा की. इस दौरान किरोड़ीलाल मीना और तिवारी ने अपने रास्ते बदल दिए. लेकिन हनुमान बेनीवाल ने जयपुर में आयोजित हुंकार रैली में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के नाम से नई पार्टी बनाने का ऐलान किया. इस दौरान उम्मेदाराम बेनीवाल हनुमान के संपर्क में आए और आरएलपी में शामिल होने चले गए.

2018 बायतु विधानसभा सीट से आरएलपी के टिकट पर चुनाव लड़ा. इस दौरान कांग्रेस से हरीश चौधरी भाजपा से कैलाश चौधरी उम्मीदवार थे. त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा के कैलाश चौधरी तीसरे स्थान पर चले गए और उम्मेदाराम बेनीवाल हरीश चौधरी से कड़ी टक्कर में चुनाव हार गए. लेकिन विधानसभा चुनाव में हार से टूटे नहीं आमजन और कार्यकर्ताओं से जुड़ाव रखा. जिला परिषद सदस्य का चुनाव लड़ा और जीते और खुद के निजी खर्च से बायतु में शिक्षा को लेकर स्कूलों में कई कार्य करवाए.

2023 के विधानसभा चुनाव में हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से एक फिर प्रत्याशी बनाएं गए. इस चुनाव में उम्मेदाराम बेनीवाल कांग्रेस से हरीश चौधरी और भाजपा से बालाराम मूंढ के बीच त्रिकोणीय मुकाबला था. इस बार भाजपा तीसरे नंबर पर रही उम्मेदाराम बेनीवाल ईवीएम की मतगणना में चुनाव जीत गए. लेकिन बैलेट पेपर गिनती में नतीजा पलट गया और वें महज 910 वोट से चुनाव हार गए. इस साल लोकसभा चुनाव से पहले चुनाव लड़ने के लिए सक्रिय हुए आरएलपी से लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलें तेज थी. लेकिन कांग्रेस में शामिल हुए और कांग्रेस की टिकट पर चुनाव जीतकर संसद पहुंचे.

गठबंधन से हनुमान बेनीवाल ने मांगी थी ये सीट 

लोकसभा चुनाव से पहले हनुमान बेनीवाल के कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के साथ आने की चर्चा तेज थी. चर्चा थी की हनुमान बेनीवाल ने गठबंधन से नागौर और बाड़मेर जैसलमेर दो लोकसभा सीटों की मांग की है. लेकिन कांग्रेस के बड़े स्थानीय नेता यह बेनीवाल को देने के का विरोध कर रहे थे. यह स्थिति उम्मेदाराम बेनीवाल ने भांप ली और बायतु से दो बार खुद के सामने प्रतिद्वंदी रहें, हरीश चौधरी से मुलाकात की.

हरीश चौधरी या दिग्गज जाट नेता और पूर्व मंत्री और विधायक रहे हेमाराम चौधरी के चुनाव लड़ने और खुद के कांग्रेस में शामिल होकर सहयोग करने का भरोसा जताया. हरीश चौधरी और हनुमान बेनीवाल के बीच राजनीतिक टकराव किसी से छिपा हुआ नहीं है. हरीश चौधरी ने एक तीर से दो निशाने लगाते हुए हनुमान बेनीवाल की पार्टी से उम्मेदाराम बेनीवाल को तोड़ते हुए इस्तीफा दिलाकर कांग्रेस में शामिल करवाते हुए प्रत्याशी बनाया.

जबरदस्त त्रिकोणीय मुकाबले में उम्मेदाराम बेनीवाल ने शिव विधानसभा से विधायक और निर्दलीय चुनाव लड़ रहे रविंद्र सिंह भाटी को करीब 1 लाख 18 हजार से ज्यादा वोटों से मात देते हुए चुनाव जीता. इस चुनाव में भाजपा से चुनाव लड़ रहे पूर्व केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी बड़ी मुश्किल से जमानत बचाई और तीसरे नंबर पर रहे.

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