बर्फ में पैदा होने वाली सब्जियां अब रेगिस्तान में भी मिलेंगी, जानिए क्या है 'कृषि का ATM' तकनीक?

कृषि क्षेत्र की तो कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान 'काजरी' द्वारा इजाद की हुई 'समन्वय कृषि प्रणाली' की नई तकनीक किसानों के लिए काफी उपयोगी साबित हो रही है.

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क्या है कृषि एटीएम

Rajasthan News: डिजिटल युग में विश्व भी भारत की तकनीक का लोहा मान रहा है. वहीं बात करें कृषि क्षेत्र की तो कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान 'काजरी' द्वारा इजाद की हुई 'समन्वय कृषि प्रणाली' की नई तकनीक किसानों के लिए काफी उपयोगी साबित हो रही है. इस तकनीक को एजाज करने वाले वैज्ञानिक इसे 'कृषि के ATM' के उपनाम से भी संबोधित करते हैं. 

बर्फीले क्षेत्रों में पैदा होने वाली सब्जियां पैदा की

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की किसानों की आय को दोगुनी करने के लिए किया जा रहे, प्रयास में भी काजरी की यह तकनीक काफी सार्थक सिद्ध हो सकती है. काजरी ने दो हेक्टेयर के क्षेत्र में इस तकनीक को विकसित किया है. नीदरलैंड और न्यूजीलैंड के बर्फीले क्षेत्र में पैदा होने वाली फोडर बिट (चारा चुकंदर) को भी थार मरुस्थल के इस शुष्क क्षेत्र में पैदा कर दिखाया है. जिससे किसानों के साथ ही विशेष रूप से पशुपालन करने वाले कृषकों को भी इसका सीधा लाभ मिल सकेगा. 

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वहीं इसके साथ विदेशी कैमोमाइल की जो आमतौर पर विदेश में चाय के रूप में इसका उपयोग किया जाता है. वह इत्र बनाने में भी इसका विशेष प्रयोग होता है काजरी ने किसानों के लिए पूरे वर्ष भर होने वाली खेती के विकल्पों का ख्याल भी रखा  है जिससे किसानों को पूरे वर्ष पर खेती से इनकम भी प्राप्त होगी जहां कृषि के एटीएम का मतलब ही इन्होंने 'एनी टाइम मनी' के उपनाम रखा है. 

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किसानों की समस्या पर शोध करके बनाई तकनीक

एनडीटीवी से खास बातचीत करते हुए काजरी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एस.पी.एस तंवर ने बताया कि कृषि क्षेत्र में और विशेष रूप से अगर पश्चिमी राजस्थान की बात करें तो यहां कृषि के क्षेत्र में रिस्क ज्यादा मानी जाती है. और जो लेबर है उन्हें पूरे वर्ष कृषि क्षेत्र में रोजगार नहीं मिल पाता और साथ ही किसानों को उनके पूरे रिसोर्सेस का लाभ भी नहीं मिल पाता है, तो इन तीनों का समस्याओं का समन्वय करके हमने एक ऐसी प्रणाली को विकसित किया जिसमें दो हेक्टेयर के खेत में फसलों को उगा रहे हैं और इन फसलों के साथ ही इनमें चारों की फसल भी है.

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इसके अलावा उद्यानिकी की फसले हैं और इसके साथ ही औषधीय पौधे भी यहां लगाए गए और इस पूरे 2 हेक्टेयर की बॉर्डर पर हमने पेड़ लगाए हैं जिससे हम पशुपालन भी कर सकते हैं और इस प्रणाली का किसानों को यह लाभ मिलता है कि आपको हर महीने कुछ ना कुछ हार्वेस्ट मिलती है. इस पद्धति में जहां आपको जुलाई माह में अलग फसलें मिलेंगी तो वहीं अक्टूबर में यहां आपको बाजरा-मोठ आदि की फसले मिलेंगे. इसी प्रकार हर महीने किसानों को आमदनी के विकल्प इस तकनीक के माध्यम से खुले मिलेंगे.

किसान मंहगी सब्जियों की कर सकेंगे खेती

काजरी की इस नई तकनीक से किसान काफी मंहगी सब्जियों की खेती भी कर सकेंगे, जिसमें अगर बात करें तो बर्फीले क्षेत्र में उगने वाला फोडर बीट जिसे चार चुकंदर भी करते हैं. इसकी खेती भी थार रेगिस्तान के क्षेत्र में किसान इस तकनीक के माध्यम से कर सकेगा. इसके अलावा अन्य पौधों की खेती भी किसान कर सकता है, जिससे विदेशी चाय और इतर भी बनता है. इसके अलावा हमने वर्तमान में इस दो हेक्टेयर के क्षेत्र में अश्वगंधा, फोडर बिट,अनार,बेर, लेमन ग्रास, रोजग्रास नेपियर ग्रास को उगा रखा है. यहां बाहर से आने वाले किसान भी प्रशिक्षण लेने आते हैं और हम उन्हें इस तकनीक से रूबरू करवाते हैं.

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