Rajasthan: कौन हैं 'चीटिंग गैंग' का ख़ात्मा करने वाले ADG वीके सिंह? होंगे राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित 

वी. के. सिंह कहते हैं कि जब वे एक आम आदमी को संघर्ष करते देखते हैं और समझते हैं कि कोई ईमानदार व्यक्ति तकलीफ में है, तो वही उन्हें बेहतर काम करने की प्रेरणा देता है. बिहार के चंपारण निवासी सिंह खुद को "एक्सीडेंटल पुलिस अफसर" कहते हैं.

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ADG वीके सिंह.

ADG VK Singh: राजस्थान में चीटिंग गैंग को जड़ से खत्म करने का संकल्प लेने वाले राजस्थान पुलिस के एडीजी वी. के. सिंह को जोधपुर में राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया जाएगा. भाजपा सरकार में आने के बाद उन्हें पेपर लीक गैंग पर लगाम लगाने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी गई थी.  इस जिम्मेदारी को संभालते हुए उन्होंने महसूस किया कि यह मसला बेहद जटिल है और इसमें कई तरह की चुनौतियां हैं.

NDTV से खास बातचीत में उन्होंने बताया कि शुरुआत में जानकारी सीमित थी, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, पता चला कि इस समस्या की जड़ें गहरी और व्यापक हैं. मामला केवल पेपर लीक तक ही सीमित नहीं था, बल्कि बड़े पैमाने पर ‘इम्पर्सोनेशन' और फर्जी डिग्री का इस्तेमाल भी हो रहा था.

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''पेपर लीक की जांच एक चुनौती थी''

वी. के. सिंह ने बताया कि जिन लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो रही थी उनमें कई महत्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्ति जैसे बाबूलाल और रामु राइका शामिल थे. यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि यह "पोस्ट मॉर्टेम" जैसी जांच थी. अपराध पहले हो चुका था और सबूत वर्तमान में जुटाने थे. इसके अलावा, समाज का वह तबका जांच के दायरे में आ रहा था जो सरकार का हिस्सा बन चुका था और पैसे व रसूख के मामले में बेहद ताकतवर था. इससे पुलिस के खिलाफ कई याचिकाएं अदालतों में दायर हुईं, जिनका जवाब देने के लिए उनके अफसरों को कई बार अलग-अलग अदालतों में पेश होना पड़ा.

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न दबाव महसूस किया, न किसी के आगे झुके 

सिंह के अनुसार, एसओजी के सामने एक और बड़ी कठिनाई यह थी कि पेपर लीक में संदिग्ध कई सरकारी कर्मचारी अब भी अपने पदों पर कार्यरत थे. सूत्रों के मुताबिक, इनकी संख्या विभिन्न विभागों में लगभग 50 के आसपास थी. बावजूद इसके उन्होंने और उनकी टीम ने न कभी व्यक्तिगत दबाव महसूस किया और न ही किसी लालच के आगे झुके. सिंह ने बताया कि पेपर लीक मामलों में जानकारी जुटाने के लिए शुरू की गई हेल्पलाइन से उन्हें काफी मदद मिली. 

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सरकार की ओर से भी पूरा सहयोग मिला

उन्होंने एक उदाहरण देते हुए बताया कि AIIMS वाले केस में एक सूत्र ने जानकारी दी कि एक छात्र दूसरे की जगह नीट की परीक्षा देकर जोधपुर AIIMS में डॉक्टर बन चुका है. सरकार की ओर से भी उन्हें पूरा सहयोग मिला और कभी ऐसी स्थिति नहीं बनी जहां कानूनी रूप से सही दिशा में चल रही जांच में अड़चन आई हो. सिंह का कहना है कि यह पदक सिर्फ एसओजी के काम के लिए नहीं, बल्कि उनके ट्रैफिक, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और एडीजी क्राइम के दौरान किए गए कार्यों की भी सराहना है.

खुद को कहते हैं "एक्सीडेंटल पुलिस अफसर"

अपने प्रेरणा स्रोत के बारे में बताते हुए वी. के. सिंह कहते हैं कि जब वे एक आम आदमी को संघर्ष करते देखते हैं और समझते हैं कि कोई ईमानदार व्यक्ति तकलीफ में है, तो वही उन्हें बेहतर काम करने की प्रेरणा देता है. बिहार के चंपारण निवासी सिंह खुद को "एक्सीडेंटल पुलिस अफसर" कहते हैं. वे बीटेक और एमटेक करने के बाद शिक्षक बनने का मन बना चुके थे, लेकिन संयोग से पुलिस अफसर बन गए. 

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