SMS हॉस्पिटल के ICU वॉर्ड में लगी आग में 8 लोगों की मौत हुई है
PTI
जयपुर का सवाई मानसिंह या एसएमएस हॉस्पिटल राजस्थान का सबसे बड़ा हॉस्पिटल है. रविवार रात 1130 से 1200 बजे की बीच वहां के सघन चिकित्सा कक्ष या आईसीयू वार्ड में आग लग गई जहां गंभीर रूप से बीमार लोगों को इलाज के लिए रखा जाता है. इस हादसे में अभी तक 8 लोगों के मारे जाने की बात कही जा रही है. हादसे के बाद इसके कारणों की तलाश की जा रही है. शुरुआती तौर पर बताया जा रहा है कि आग की शुरुआत शॉर्ट सर्किट से हुई. राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने हादसे की जांच के आदेश दिए हैं. छह सदस्यों की एक समिति इसकी जांच करेगी. लेकिन हादसे के बाद प्रारंभिक रूप से कई सामान्य सवाल पूछे जा रहे हैं. एनडीटीवी ने इसी संदर्भ में जयपुर नगर निगम के पूर्व आयुक्त ओ पी गुप्ता से बात की जिन्होंने कुछ प्रमख सवालों पर ध्यान दिलाया. आइए जानते हैं क्या हैं ये बड़े सवाल.
- सवाई मान सिंह हॉस्पिटल के जिस हिस्से में आग लगी है वह ट्रॉमा सेंटर नया बना है. लेकिन पहले भी ऐसी शिकायत आई है कि वहां का फायर फाइटिंग सिस्टम ठीक से काम नहीं कर रहा है. जब भी वहां इस सिस्टम की ज़रूरत होती है तो वह ठीक से काम नहीं करता है.
- हॉस्पिटल जैसी महत्वपूर्ण इमारतों में आग की रोकथाम के लिए एक ऑटोमेटिक व्यवस्था होती है लेकिन इस हादसे के दौरान ना तो फायर अलार्म बजा और ना ही पानी की बौछारें निकलीं. इस सिस्ट में तापमान बढ़ने पर अलार्म बजने लगता है और पाइपों से ऑटोमेटिक पानी की बौछार होने लगती है. लेकिन रात हुए हादसे में स्पष्ट हो गया कि यह सिस्टम काम नहीं कर सका. ऐसा हो सकता है कि वह पाइप जाम हो चुकी होंगी.
- आग लगने के बाद इसकी जानकारी अग्निशमन विभाग को देर से पहुंची. वह आधे-एक घंटे देर से पहुंचे. ऐसी जानकारी सामने आई है कि धुआं निकलने के बाद हॉस्पिटल में कर्मचारियों ने ध्यान नहीं दिया और फायरफाइटिंग विभाग को सूचना नहीं दी जिससे देर हो गई. अगर समय पर सूचना दी गई होती तो 10 मिनट के अंदर दमकलकर्मी पहुंच सकते थे.
- हॉस्पिटल के वायरिंग सिस्टम की क्वालिटी खराब हो सकती है जिससे तारों में शॉर्ट सर्किट हो गया. हॉस्पिटल की पुरानी बिल्डिंग में सिस्टम पुराना हो सकता है, लेकिन जिस हिस्से में आग लगी वह नया है और वहां की वायरिंग भी नई होनी चाहिए.
- हॉस्पिटल के अंदर आग लगने की परिस्थितियों में खुद की अपनी व्यवस्था होनी चाहिए थी. अगर यह व्यवस्था होती तो अग्निशमन टीम को बुलाने की आवश्यकता ही नहीं होती और हॉस्पिटल में अपने स्तर पर ही आग को बुझा लिया जाता. इस तरह की व्यवस्था होती तो हॉस्पिटल में ऐसे लोग मौजूद होते जो इस तरह की परिस्थिति में सही क़दम उठा पाते और हादसे को रोक लिया जाता.
- हॉस्पिटल में हर साल आग लगने की परिस्थितियों में अभ्यास के लिए मॉक ड्रिल की जानी चाहिए. यह जांच की जानी चाहिए कि क्या यह मॉक ड्रिल नियमित रूप से होती थी.
- जयपुर नगर निगम पर भी लापरवाही के आरोप लग रहे हैं, कि उन्होंने हॉस्पिटल के फायरफाइटिंग सिस्टम की ठीक से जांच नहीं की. निगम ने चेक करने के बाद ही हॉस्पिटल को अनापत्ति प्रमाण पत्र या एनओसी दिया होगा. लेकिन यह व्यवस्था काम कर रही है या नहीं इसकी हर साल नियमित रूप से जांच की जानी चाहिए.
- हॉस्पिटल के कर्मचारियों में जागरूकता की भी कमी दिखाई दी. यह हो सकता है कि जिन कर्मचारियों को इसकी जानकारी रही हो वे कर्मचारी उस समय हॉस्पिटल में मौजूद ना रहे हों जिससे समय पर सही कदम नहीं उठाया जा सका.