राजस्थान पर्यटन : दौसा के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल

पूर्व कच्छवाहा राजपूत राजवंश का यह मुख्यालय था तथा इसका पुरातात्विक महत्व भी है. दौसा, शहर की हलचल से दूर, ग्रामीण अनुभव भी लोगों को प्रदान करता है.

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राजस्थान के पर्यटन में दौसा का महत्व.
नई दिल्ली:

राजस्थान पर्यटन के लिए काफी प्रसिद्ध है. एक दौर रहा है कि देश में पर्यटन का मतलब ही राजस्थान हुआ करता था. लेकिन अब धीरे-धीरे और भी राज्य पर्यटन को लेकर संजीदा हुए. लेकिन राजस्थान ने एक ऊंचाई हासिल कर रखी है. राजस्थान के पर्यटन स्थलों की बात ही अलग है. राजस्थान की बात आते ही हिंदुस्तानी के मन में गौरव और सांस्कृतिक भाव उत्पन्न होता है. अब यह बात केवल हिंदुस्तानियों तक सीमित नहीं रही है, विदेशियों में भी भारत की बेहतर छवि निर्माण करने में राजस्थान का अहम योगदान रहा है. यही कारण रहा है कि विदेशियों के लिए भारत में पर्यटन का मतलब है राजस्थान का दौरा होता रहा है.

दौसा या स्वर्ग जैसा सुंदर

राजस्थान में कई पर्यटक स्थल है. आज हम बात करने जा रहे हैं दौसा की.  राजस्थान सरकार की लिस्ट में भी यह सबसे ऊपर है. दी गई जानकारी के अनुसार, संस्कृत में दौसा का नाम 'ढौ-सा' है, जिसका अर्थ है - सुन्दर जैसे स्वर्ग होता है.  जयपुर से लगभग 55 किलोमीटर दूरी पर बसा दौसा प्राचीन नगर है. राष्ट्रीय राजमार्ग 11 पर स्थित दौसा का नाम 'देव नगरी' भी है. पूर्व कच्छवाहा राजपूत राजवंश का यह मुख्यालय था तथा इसका पुरातात्विक महत्व भी है. दौसा, शहर की हलचल से दूर, ग्रामीण अनुभव भी लोगों को प्रदान करता है.

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आभानेरी

दौसा आने वाले लोगों को चांद बावड़ी अपनी ओर आकर्षित करती है. यह आभानेरी पर स्थित है. राजा चंद्र द्वारा स्थापित, जयपुर-आगरा सड़क पर आभानेरी की चाँद बावड़ी, दौसा ज़िले का मुख्य आकर्षण है. इसका असली नाम 'आभा नगरी' था, परन्तु आम बोल चाल की भाषा में आभानेरी हो गया.

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पर्यटन विभाग द्वारा यहां प्रत्येक वर्ष सितम्बर-अक्टूबर में 'आभानेरी महोत्सव' आयोजित किया जाता है. यह दो दिन चलता है तथा पर्यटकों के मनोरंजन के लिए राजस्थानी खाना तथा लोक कलाकारों द्वारा विभिन्न गीत व नृत्य के कार्यक्रम होते हैं. उत्सव के दौरान गांव की यात्रा ऊंट सफारी द्वारा कराई जाती है.

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हर्षद माता मंदिर

इसके बाद हर्षद माता मंदिर यहीं आभानेरी में स्थित है. दौसा से 33 किलोमीटर दूर चांद बावड़ी परिसर में ही स्थित यह मंदिर हर्षद माता को समर्पित है. हर्षद माता अर्थात उल्लास की देवी.

ऐसी मान्यता है कि देवी हमेशा हंसमुख प्रतीत होती है और भक्तों को खुश रहने का आशीर्वाद प्रदान करती हैं. यहां पर पर्यटकों को देवी के मंदिर की स्थापत्य कला को देखने का अवसर मिलता है जो बेहत शानदार है.

झाझीरामपुरा

इसके बाद झाझीरामपुरा को देखने के लिए लोग जाते हैं. यहां की पहाड़ियों और जल स्त्रोतों से भरपूर, झाझीरामपुरा प्राकृतिक तथा आध्यात्मिक रूप से बहुत ही समृद्ध है.

यह दौसा से 45 किलोमीटर दूर, बसवा (बांदीकुई) की ओर स्थित है. यह स्थान रूद्र (शिव), बालाजी (हनुमान जी) और अन्य देवी देवताओं के मंदिरों के लिए भी प्रसिद्ध है. यहां पर धार्मिक पर्यटन की आस लिए लोगों को शांति मिलती है.

भांडारेज

पर्यटन की दृष्टि से भांडारेज भी अहम है. आठवीं शताब्दी में निर्मित चांद बावड़ी, भारत की सबसे गहरी बावड़ियों में से एक है तथा 19.5 मीटर चौड़ी व 13 मंज़िलों तक फैली हुई है. इसमें 1000 छोटी कलात्मक सीढ़ियां हैं, जो देखने योग्य हैं. महाभारत काल में यह स्थान 'भद्रावती' के नाम से जाना जाता था. जब कच्छवाहा मुखिया दूल्हा राय ने बड़गुर्जर राजा को हराया और भांडारेज को जीता, यह 11वीं शताब्दी की ऐतिहासिक घटना थी. तभी से इसका इतिहास माना जाता है.

इसकी प्राचीन सभ्यता यहां की मूर्तियां, सजावटी जालियां, टैराकोटा का सामान, बर्तन आदि को देखकर, इसकी समृद्ध संस्कृति की जानकारी मिलती है. जयपुर से लगभग 65 किलोमीटर दूर, जयपुर आगरा राजमार्ग पर, दौसा से 10 किलोमीटर दूरी पर भांडारेज स्थित है. दौसा के भांडारेज की एक और खासियत है. यहां के क़ालीन दूर दूर तक प्रसिद्ध हैं.

लोट्वाड़ा

इसके अलावा लोट्वाड़ा भी दर्शनीय है. जयपुर से लगभग 110 किलोमीटर दूर यह एक गढ़ है जो कि 17वीं शताब्दी में ठाकुर गंगासिंह द्वारा बनाया गया था.

लोट्वाड़ा ग्रामीण पर्यटन का आकर्षण है, जहां की ग्रामीण संस्कृति और लहलहाती फसलें बड़ी सुहानी लगती हैं. वहां तक पहुंचने के लिए आभानेरी से बस द्वारा यात्रा कर सकते हैं.

बांदीकुई

अंत में बात करते हैं बांदीकुई की. दौसा से लगभग 35 किलोमीट की दूरी पर यह स्थित है. प्रोटेस्टेंट ईसाइयों के लिए रोमन शैली का चर्च यहां का मुख्य आकर्षण है.

बांदीकुई रेलवे के बड़े भाग के लिए भी जाना जाता है जहां कि ब्रिटिश समय के निर्माण एवम् रेलवे कर्मचारियों के बड़े-बड़े घर हैं.