JIFF 2025: जयपुर अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में सम्मानित होंगी बॉलीवुड की हस्तियां, 17 से 21 जनवरी तक जारी रहेगा प्रोग्राम

Rajasthan: 17 से 21 जनवरी तक राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित हो रहे जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बॉलीवुड की दो मशहूर हस्तियों को सम्मानित किया जाएगा.

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JIFF 2025

Jaipur News: राजस्थान की गुलाबी नगरी में जयपुर इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (JIFF) का आयोजन होने जा रहा है. यह 17 से 21 जनवरी तक राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित किया जाएगा. इस अवसर पर मशहूर फिल्म निर्देशक यश चोपड़ा और श्याम बेनेगल को उनकी फिल्मों में अमूल्य योगदान के लिए सम्मानित किया जाएगा.

बेहतरीन फिल्म निर्माताओं में से एक थे दोनों

इस समारोह में यश चोपड़ा को 'आउटस्टैंडिंग लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड' से सम्मानित किया जाएगा. श्याम बेनेगल को भी श्रद्धांजलि दी जाएगी, जिनका पिछले साल दिसंबर 2024 में निधन हो गया था. यश चोपड़ा का निधन 2012 में हुआ था. दोनों निर्माता अपने समय के सबसे मूल्यवान फिल्म निर्माताओं में से एक हैं. दोनों ने एक दशक तक भारतीय सिनेमा की अपनी बेहतरीन फिल्मों के जरिए दर्शकों का दिल जीता है.

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JIFF 2025
Photo Credit: Instagram

यश चोपड़ा ने दशकों तक सिनेमा जगत पर किया था राज 

यश चोपड़ा हमेशा से ही अपनी फिल्मों में नए-नए प्रयोग करने के लिए जाने जाते रहे हैं. जिस तरह से उन्होंने 1975 में अमिताभ की 'दीवार' में भाइयों के बीच के प्यार को पर्दे पर जीवंत किया. 1976 में 'कभी-कभी' में उन्होंने दो प्रेमियों के बीच की मजबूरियों को दिखाया. लंबे समय बाद 1997 में रिलीज हुई 'कुछ-कुछ होता है' से उन्होंने युवाओं में प्यार के रंग भरने शुरू किए. जिसका सिलसिला  'वीर-जारा' में उन्होंने प्यार को पाने का जुनून दिखाया और 'जब तक है जान' में उन्होंने पिता की ख्वाहिशों में जीने वाली एक लड़की को दिखाया, जो अपने प्यार की कुर्बानी देने से भी नहीं हिचकिचाती. इन फिल्मों के जरिए ही फिल्मकार यश चोपड़ा ने दशकों तक सिनेमा जगत पर राज किया.

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2024  में दुनिया को अलविदा कह गए थे श्याम बेनेगल

वहीं साल 2024 ने श्याम बेनेगल को छीनकर सिनेमा जगत को गहरा सदमा दिया, क्योंकि उनके जाने के बाद समानांतर सिनेमा पर काम करने का जुनून समय के साथ फीका पड़ जाएगा. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत भले ही बंगाली फिल्मों से की हो, लेकिन उनका असर आज भी हिंदी सिनेमा में कायम है. उन्होंने 'अंकुर', 'मंथन', 'मंडी' और 'जुनून' जैसी फिल्मों के जरिए समाज को हमेशा हाशिये पर रखा. जिसके चलते वे दूसरे फिल्मकारों से हमेशा अलग रहे. भारतीय फिल्म निर्माण में उनका काम, उनकी पहली फिल्म अंकुर (1974) से लेकर निशांत, मंथन और भूमिका जैसी सामाजिक रूप से जागरूक फिल्मों तक, सामाजिक गतिशीलता में गहरी अंतर्दृष्टि को दर्शाता है. 'बड़े पर्दे के साथ-साथ उन्होंने टीवी सीरियल्स में भी हाथ आजमाया. उनके द्वारा बनाई गई 'भारत एक खोज', 'संविधान' काफी मशहूर रहे.

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