Lumpy Virus: मक्खी-मच्छर से फैली लंपी बीमारी एक 'आपदा', भारत में अब तक 100000 गायों की मौत

IISc Study on LSDV: लंपी स्किन डिजीज वायरस एक वायरल संक्रमण है, जो मक्खियों और मच्छरों जैसे कीट-पतंगों द्वारा फैलता है. यह बुखार और त्वचा पर गांठों का कारण बनता है और मवेशियों के लिए जानलेवा हो सकता है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

Study on Lumpy Virus: बेंगलुरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) की एक मल्टी इंस्टीट्यूशनल टीम ने मंगलवार को मवेशियों में लंपी बीमारी (Lumpy Skin Disease) के प्रसार वाले वायरस के उपस्वरूपों की उत्पत्ति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की है. मई 2022 में, भारत में बड़ी संख्या में लंपी बीमारी से पशुओं की मौतें हुई थीं. इस बीमारी में मवेशियों की त्वचा पर गांठ की तरह के बड़े-बड़े दाने निकल आते हैं.

IISc ने लंपी को बताया 'आपदा'

लंपी बीमारी के प्रसार के बाद से लगभग 1,00,000 गायों की बीमारी से मौत हुई है. आईआईएससी के जैव रसायन विभाग के प्रोफेसर उत्पल टाटू ने कहा, 'यह कुछ मायनों में एक आपदा थी.' टाटू उस बहु-संस्थागत टीम का हिस्सा हैं, जिसने रोग के प्रकोप के कारण की जांच करने का फैसला किया. आईआईएससी द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि उनका अध्ययन 'बीएमसी जीनोमिक्स' में प्रकाशित हुआ था.

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भारत में 20 लाख गाये हुईं संक्रमित

लंपी स्किन डिजीज वायरस (LSDV) वायरल संक्रमण है, जो मक्खियों और मच्छरों जैसे कीट-पतंगों द्वारा फैलता है. यह बुखार और त्वचा पर गांठों का कारण बनता है और मवेशियों के लिए जानलेवा हो सकता है. पहली बार 1931 में जाम्बिया में एलएसडीवी का पता चला था और 1989 तक यह उप-अफ्रीकी क्षेत्र तक ही सीमित रहा. मध्य पूर्व, रूस और अन्य दक्षिण-पूर्व यूरोपीय देशों में फैलने के बाद इसका प्रसार दक्षिण एशिया में हुआ. विज्ञप्ति में कहा गया है कि भारत में इस बीमारी के दो बड़े प्रकोप हुए हैं, पहला 2019 में और 2022 में अधिक गंभीर प्रकोप, जिससे 20 लाख से अधिक गायें संक्रमित हुईं.

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5 से अधिक राज्यों से मंगाए सैंपल

वर्तमान प्रकोप की जांच करने के लिए, टीम ने पशु चिकित्सा संस्थानों के सहयोग से गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान और कर्नाटक सहित विभिन्न राज्यों में संक्रमित मवेशियों से त्वचा की गांठें, रक्त और नाक के नमूने एकत्र किए. उन्होंने 22 नमूनों से निकाले गए डीएनए की उन्नत संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमण का विश्लेषण किया. आईआईएससी में पीएचडी छात्र और अध्ययन के सह लेखक अंकित कुमार ने कहा, 'सबसे बड़ी चुनौती एक स्थापित एलएसडीवी जीनोम अनुक्रमण और विश्लेषण की कमी थी. हमें कोविड​​-19 अनुसंधान से तकनीकों को अपनाना था.'

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भारत में LSDV के दो अलग वैरिएंट

उन्होंने कहा कि सीमित संख्या में आंकड़े उपलब्ध रहने के कारण विश्लेषण को सटीक बनाने के लिए वैश्विक स्तर पर एलएसडीवी जीनोम अनुक्रमण के आंकड़े को एकत्रित किया गया. उनके जीनोमिक विश्लेषण से भारत में प्रसारित होने वाले दो अलग-अलग एलएसडीवी स्वरूप का पता चला. टीम का विश्लेषण पशुधन और आजीविका को खतरे में डालने वाली उभरती संक्रामक बीमारियों से निपटने के लिए बेहतर निदान का मार्ग प्रशस्त कर सकती है. टाटू के अनुसंधान समूह ने महामारी के दौरान कोविड​​-19 पर और हाल में रेबीज वायरस पर इसी तरह के अध्ययन किए हैं.

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