Mahakumbh Prayagraj: 12 साल के अंतराल पर आयोजित होने वाले कुंभ मेले की शुरुआत प्रयागराज में 13 जनवरी 2025 से हो जाएगी, जो 26 फरवरी 2025 कर चलेगा. ऐसे में श्रद्धालुओं को कुंभ नगरी की भव्यता और नव्यता का दिव्य दर्शन करवाने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने भारी भरकम बजट का ऐलान किया है. शुक्रवार को सीएम ने महत्वाकांक्षी अक्षयवट कॉरिडोर सौंदर्यीकरण योजना का जायजा लिया और इसके कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं. महाकुंभ में अक्षयवट का बड़ा पौराणिक महत्व होता है.
स्नान के बाद अक्षयवट का दर्शन जरूरी
मान्यता के अनुसार, संगम स्नान के पश्चात 300 वर्ष पुराने अक्षयवट के दर्शन करने के बाद ही स्नान का फल मिलता है. इसलिए तीर्थराज आने वाले श्रद्धालु और साधु संत संगम में स्नान करने के बाद इस अक्षयवट के दर्शन करने जाते हैं. जिसके बाद ही उनकी मान्यताएं पूरी होती हैं. सरकार की महत्वाकांक्षी अक्षयवट कॉरिडोर सौंदर्यीकरण योजना का जायजा लेने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके कार्यों में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। महाकुंभ के दौरान यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह स्थान आस्था का प्रमुख केंद्र होगा।
अक्षयवट की कहानी
प्रभु श्रीराम वन जाते समय संगम नगरी में भारद्वाज मुनि के आश्रम में जैसे ही पहुंचे उन्हें, मुनि ने वटवृक्ष का महत्व बताया था. मान्यता के अनुसार, माता सीता ने वटवृक्ष को आशीर्वाद दिया था. तभी प्रलय के समय जब पृथ्वी डूब गई तो वट का एक वृक्ष बच गया, जिसे हम अक्षयवट के नाम से जानते हैं. महाकवि कालिदास के रघुवंश और चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के ट्रैवलॉग में भी अक्षय वट का जिक्र किया गया है. कहा जाता है कि अक्षयवट के दर्शन मात्र से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. भारत में चार प्राचीन वट वृक्ष माने जाते हैं. अक्षयवट- प्रयागराज, गृद्धवट-सोरों 'शूकरक्षेत्र', सिद्धवट- उज्जैन एवं वंशीवट-वृंदावन शामिल हैं.
योगी सरकार ने दर्शन व पूजन का रास्ता खोला
यमुना तट पर अकबर के किले में अक्षयवट स्थित है. मुगलकाल में इसके दर्शन पर रोक थी. ब्रिटिश काल और आजाद भारत में भी किला सेना के आधिपत्य में रहने के कारण वृक्ष का दर्शन दुर्लभ था. योगी सरकार ने विगत 2018 में अक्षयवट का दर्शन व पूजन करने के लिए इसे आम लोगों के लिए खोल दिया था. पौराणिक महत्व के तीर्थों के लिए योगी सरकार की ओर से कई विकास परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं. यहां कॉरिडोर का भी कार्य चल रहा है.
अयोध्या से प्रयागराज पहुंचे प्रसिद्ध संत और श्रीराम जानकी महल के प्रमुख स्वामी दिलीप दास त्यागी ने बताया कि अक्षयवट का अस्तित्व समाप्त करने के लिए मुगल काल में तमाम तरीके अपनाए. उसे काटकर दर्जनों बार जलाया गया, लेकिन ऐसा करने वाले असफल रहे. काटने और जलाने के कुछ माह बाद अक्षयवट पुन: अपने स्वरूप में आ जाता था. उन्होंने कहा कि योगी सरकार ने अक्षय वट को लेकर जो सौंदर्यीकरण और विकास कार्य शुरू किए हैं वो स्वागत योग्य हैं. महाकुंभ में संगम स्नान के बाद इसके दर्शन से श्रद्धालुओं को पुण्य प्राप्त होगा.
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