'मोदी युग में पूरी तरह बदल गई विदेश नीति', विदेश मंत्री एस जयंशकर ने NDTV को गिनाए 5 मिसाल

S Jaishankar To NDTV: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार शाम एनडीटीवी से खास बातचीत की. एनडीटीवी के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया के साथ हुई बातचीत में विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश नीति के साथ-साथ अपनी किताब WHY BHARAT MATTERS पर कई बातें कही. उन्होंने बताया कि मोदी युग में भारत की विदेश नीति पूरी तरह से बदल गई है.

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NDTV के एडिटर इन चीफ संजय पुगलिया से बातचीत करते विदेश मंत्री एस जयशंकर.

S Jaishankar To NDTV: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि मोदी युग में भारत की विदेश नीति पूरी तरह से बदल गई है. 2014 के बाद भारतीय विदेश नीति में बड़ा बदलाव हुआ. उन्होंने भारतीय विदेश मंत्रालय की नीतियों की बात करते हुए पांच मिसाल भी गिनाए. नेबरहुड फर्स्ट की नीति पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने श्रीलंका का उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि नेबरहुड फर्स्ट की नीति 2014 में आई थी. इस नीति के तहत पड़ोसी के लिए रियल फ्रेंडशिप की बात थी. इसका एक बड़ा उदाहरण श्रीलंका है. श्रीलंका में जब आर्थिक संकट आया, तब बाकी दुनिया चर्चा तो कर रही थी, लेकिन मदद नहीं कर रही थी. लेकिन तब भारत ने श्रीलंका की मदद की. जिसकी पूरी दुनिया में चर्चा हुई. 

विदेश मंत्री एस जयशंकर की किताब WHY BHARAT MATTERS हाल ही में लॉन्च हुई है. जिसमें उन्होंने भारतीय विदेश नीति के बारे काफी कुछ लिखा है. एनडीटीवी के एडिटर संजय पुगलिया के साथ खास बातचीत पर उन्होंने खुलकर बात की.

नेबरहुड फर्स्ट की नीति, श्रीलंका की मदद

मोदी युग में भारत की विदेश नीति में हुए बदलाव के उदाहरण पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि नेबरहुड फर्स्ट की बात की. उन्होंने कहा कि 2014 में यह नीति आई थी. इसमें पड़ोस को प्राथमिकता देने की बात है. इसका सबसे बड़ा मार्कर श्रीलंका है.. जब श्रीलिंका संकट में पड़ा तो उसकी आर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गई थी कि राष्ट्रपति को भी अपना पद छोड़ना पड़ा था. बाकी दुनिया चर्चा तो कर रही थी.. लेकिन मदद नहीं कर रहा था.. भारत ने 4.5 बिलियन डॉलर्स से मदद की. इससे एक बड़ा संदेश गया. 

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खाड़ी के देशों से संबंध
   
विदेश मंत्री ने दूसरी मिसाल खाड़ी के देशों के संदर्भ में दी. उन्होंने कहा कि इसे मैंने अपनी किताब में एक्सटेंडेड नेबरहुड कहा है. क्योंकि विभाजन से पहले खाड़ी के देश हमारे पड़ोसी ही थे . लेकिन बीते कुछ दशक में ये देश हमसे काफी दूर हो गए. इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री थे जो यूएई गए. बीच में कोई नहीं गया. इससे हमारा व्यापार बढ़ा. वहां भारतीय समुदाय में बहुत इजाफा हुआ है. वहां एक मंदिर बन रहा है.. जिसका उद्घाटन अगले महीने होगा.

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तीसरी मिसाल- अमेरिका से संबंध

विदेश मंत्री ने अमेरिका से संबंध को तीसरी मिसाल बताया. अपना अनुभव साझा करते हुए उन्होंने कहा कि मेरा अमेरिका से काफी अनुभव है. यूएस के जो बड़े-बड़े विजिट जो माने जाते हैं.. जैसे राजीव गांधी का 1985  था.. मनमोहन सिंह का 2005 वाला.. जिसमें न्यूक्लियर डील हुआ.. 2014 वाला पीएम मोदी का.. इन सब में मैं खुद मौजूद था.. इस बार विजिट जो था जो उससे ज्यादा विजिट की उपलब्धियां जो थीं.. प्रशासन भी था.. कांग्रेस भी साथ था.

यूक्रेन, क्वाड और इजरायल के जरिए आजाद स्टैंड की बात

यूक्रेन, क्वाड और इजरायल का उदाहरण देते हुए विदेश मंत्री ने चौथा मार्कर बताया. उन्होंने कहा कि यूक्रेन के मामले में दोनों तरफ से अपने दबाव थे.. एक दबाव तो तेल लेने में भी था.. दूसरा हम अपना जी-20 अध्यक्षता में कैसे निपटाएं.. कहीं कॉन्प्रोमाइज कैसे करें.. दूसरा उदाहरण क्वाड का, जहां चार देश क्वाड के मिलजुलकर कुछ करना चाहते थे.. 2007 में भी करना चाहते थे. उस समय दबाव के कारण शुरू हुआ, लेकिन बीच रास्ते में छोड़ दिाय. इस बार जब हम आगे बढ़ना चाह रहे थे तो दबाव तो आए थे हम पर. और अभी हम देख रहे हैं कि अभी जो पश्चिम एशिया में जो लड़ाई चल रही है गाजा में.. हमारे रिश्ते तो इजरायल के साथ तो बहुत ही अच्छे हैं. ये विषय आतंकवाद का विषय है. लेकिन तब भी फिलिस्तीन के साथ तब वहां एक पुरानी पोजिशन भी है. ऐसी सिचुएशन में स्वतंत्र फैसले लेना, हमारी आजाद स्टैंड का दर्शाता है.

कोविड काल में भारत की भूमिका विदेश मंत्री की पाचंवीं मिसाल

पांचवी मिसाल विदेश मंत्री ने कोविड के जरिए दी. उन्होंने कहा कि कोरोना के दौरान हमने करीब 100 देशों को वैक्सीन पहुंचाया.. कुछ ऐसे देश थे जहां उनकी कोई संभावना नहीं थी कि उनके यहां वैक्सीन पहुंचेगी. युगांडा ट्रिप का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि मैं हाल ही युगांडा गया था. जहां भारत की बात आए तो लीडर एक के बाद एक खड़े होकर कहेंगे कि संकट के समय ये एक ऐसा देश था जो हमारे साथ जुड़ा था. ये सचमुच दिल छूने वाली थी.