Diwali 2024: राजस्थान के इस मंदिर में मां लक्ष्मी ने मांगा था अपना 'घर', 103 सालों से भगवान विष्णु से रह रही हैं अलग

Rajasthan News: राजस्थान के सीकर जिले में एक प्राचीन मंदिर ऐसा है, जहां मां लक्ष्मी और भगवान नारायण अलग-अलग विराजमान हैं.

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Sikar: दीवाली आने में बस अब कुछ दिन बाकी है.  रोशनी के इस त्योहार पर मां लक्ष्मी और भगवान नारायण की पूजा का विधान है. क्योंकि मान्यता है कि मां लक्ष्मी धन की देवी है. औऱ भगवान नारायण सृष्टि रचयिता . ऐसे में दोनों की इस दिन पूजा करने से घर हमेशा से धन धान्य से भरा रहता है. लेकिन राजस्थान के सीकर जिले में एक प्राचीन मंदिर ऐसा है, जहां मां लक्ष्मी और भगवान नारायण अलग-अलग विराजमान हैं. यहां दिन में मां लक्ष्मी और भगवान नारायण गर्भगृह से करीब 50 मीटर दूर अलग-अलग विराजमान होते हैं. और शाम को आरती के समय दोनों को एक साथ बैठाकर आरती की जाती है. इसके बाद सुबह दोनों को अलग कर दिया जाता है. यहां करीब साढ़े चार बजे सबसे पहले मां लक्ष्मी की आरती की जाती है, फिर उसके बाद भगवान नारायण की पूजा की जाती है.

100 साल से भी ज़्यादा पुराना है ये मंदिर

मंदिर महंत विष्णु प्रसाद शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि यह भारत का एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां लक्ष्मी और भगवान नारायण की पूरे दिन अलग-अलग पूजा होती है. यह मंदिर 100 साल से भी ज़्यादा पुराना है.  इसका नाम श्री कल्याण जी मंदिर है. इस प्राचीन मंदिर का निर्माण सीकर के राव राजा कल्याण सिंह ने 1921 में अपने किले से थोड़ी दूरी पर स्थित पुराने दूजोद गेट के पास करवाया था.

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मां लक्ष्मी की पूजा करते हुए
Photo Credit: NDTV

 मां लक्ष्मी का बना है अलग भवन

कहा जाता है कि मां लक्ष्मी ने राव राजा कल्याण सिंह को सपने में दर्शन दिए और उनसे अलग भवन बनवाने को कहा था. इस सपने और मंदिर निर्माण के करीब 3 महीने बाद महालक्ष्मी जी के लिए अलग भवन बनवाया गया. मंदिर निर्माण के दौरान राव राजा कल्याण सिंह ने बनारस से 51 पंडितों को बुलाया और पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करवाकर दोनों मूर्तियों को मंदिर में स्थापित करवाया. कहा जाता है कि राव राजा कल्याण सिंह मूर्ति को अपने सिर पर रखकर यहां स्थापित करने के लिए लाए थे.

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राजपूत शैली पर किया है मंदिर का निर्माण

मंदिर में नियमानुसार सात बार आरती की जाती है.  इसमें भगवान नारायण की संगमरमर की मूर्ति है. देवी लक्ष्मी की अष्टधातु की मूर्ति भी स्थापित है. कल्याणजी मंदिर पूरी तरह से राजपूत कालीन शैली में बना है. इस प्राचीन मंदिर में देवी-देवताओं के विभिन्न स्वरूपों को चित्रों के माध्यम से दर्शाया गया है. दिवाली के अवसर पर हर साल यहां शरद पूर्णिमा से लेकर गोवर्धन तक कई धार्मिक आयोजन होते हैं. जिनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं.

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भगवान नारायण की मूर्ति
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भगवान नारायण की मूर्ति के सिर पर जड़े हुए हैं हीरे

मंदिर महंत विष्णु प्रसाद शर्मा ने बताया कि मंदिर में भगवान नारायण और महालक्ष्मी की बहुत ही चमत्कारी मूर्ति मौजूद है. भगवान नारायण की मूर्ति को डिग्गी पुरी के कल्याणजी महाराज के देवता के रूप में पूजा जाता है. सीकर के इस प्राचीन कल्याणजी मंदिर में मौजूद कल्याणजी की मूर्ति के माथे और ठोड़ी पर हीरे जड़े हुए हैं जो सिर्फ सावन के महीने में ही चमकते हैं. उन्होंने बताया कि उनकी चार पीढ़ियां सालों से भगवान की सेवा और पूजा में समर्पित हैं.

दीवाली पर आयोजित होता महालक्ष्मी पूजा महोत्सव

मंदिर महंत विष्णु प्रसाद शर्मा ने बताया कि मंदिर बनने के बाद उनके परदादा महंत बद्री नारायण को इसका महंत नियुक्त किया गया था, जिसके बाद उनकी चार पीढ़ियां वर्षों से भगवान की सेवा करती आ रही हैं. मंदिर महंत ने बताया कि दिवाली पर मंदिर में 38 से अधिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. जिसमें मुख्य महालक्ष्मी पूजा महोत्सव 16 दिनों तक आयोजित किया जाता है. जिसमें शरद पूर्णिमा पर खीर प्रसाद का वितरण, करवा चौथ पर विशेष आयोजन, महालक्ष्मी जी की अष्टमी पूजा का आयोजन, कन्या पूजन, धनतेरस पर श्रावण आभूषण पहनाकर धनलक्ष्मी की पूजा की जाती है. इसके साथ ही दीपावली के अवसर पर छप्पन भोग की झांकी सजाकर महालक्ष्मी जी की महाआरती का आयोजन किया जाता है. गोवर्धन पूजा की आरती के साथ महालक्ष्मी पूजा महोत्सव का समापन किया जाता है.

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