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आखिर इतना क्यों खास है खेजड़ी का पेड़, जिसे बचाने के लिए 363 लोगों ने दिया था बलिदान?

Khejri: गठिया, बाय-बादी, जोड़ों के दर्द और गैस की समस्याओं के लिए यह कारगर इलाज माना जाता है. इन औषधीय गुण के कारण भी इसका सेवन किया जाता है. राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा में यह वृक्ष बहुतायात में होता है.

आखिर इतना क्यों खास है खेजड़ी का पेड़, जिसे बचाने के लिए 363 लोगों ने दिया था बलिदान?

Khejri Tree: राजस्थान का राज्य वृक्ष खेजड़ी सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और औषधीय महत्व से काफी अहम है. खेजड़ी पेड़ राजस्थान के थार रेगिस्तान के जिलों और शेखावाटी क्षेत्र में सबसे ज़्यादा पाया जाता है. थार के मरुस्थल में खड़ा खेजड़ी (Khejri) वृक्ष यहां के लोगों के सुख-दुख का सच्चा साथी कहा जाता है. इसे बचाने के लिए 12 सितंबर, 1730 में आंदोलन भी हुआ था. इस आंदोलन में अमृता देवी के नेतृत्व में 363 बिश्नोई महिला-पुरुषों और बच्चों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपना बलिदान दिया था. इस घटना को खेजड़ली नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है. यह आंदोलन राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में हुआ था. 

चिपको आंदोलन का अग्रदूत माना जाता है खेजड़ली आंदोलन

दरअसल, इस गांव में खेजड़ी के पेड़ों की बहुतायत थी, इसलिए इसका नाम खेजड़ली पड़ा. मारवाड़ के महाराजा अभय सिंह ने अपने नए महल के निर्माण के लिए चूना जलाने के लिए खेजड़ी के पेड़ों को काटने का आदेश दिया था. इस आदेश का लोगों ने विरोध किया. अमृता देवी ने पेड़ों को काटने का विरोध करते हुए कहा था कि वह पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान दे देंगी. "सिर सांटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण", उनकी यह पंक्तियां लोगों को एकजुट कर गईं.

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इस आंदोलन को 20वीं शताब्दी के चिपको आंदोलन का अग्रदूत माना जाता है. महाराजा के आदेश के बाद पेड़ो को बचाने के लिए अमृता देवी और उनकी 3 पुत्रियों ने सबसे पहले खेजड़ी से चिपककर अपना सिर कटा लिया था. उनके साथ कुल 363 लोगों ने भी बलिदान दे दिया था. प्रदर्शनकारियों के बलिदान के बाद, शासक को भी पेड़ काटने का आदेश वापस लेना पड़ा. खेजड़ली नरसंहार आंदोलन की याद में हर साल 12 सितंबर को खेजड़ली दिवस मनाया जाता है.

यहां लगता है विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला 

बिश्नोई समाज गुरु जम्भोजी के 29 नियमों और आदर्शों की पालना की शपथ लेकर पीढ़ी दर पीढ़ी करता है. बिश्नोई समाज का नाम बीस+नोई (20+9) नियमों के कारण ही पड़ा. यह समाज प्रकृति और पशुओं को पूजने वाला समाज है. आंदोलन की याद में खेजड़ली में विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला लगता है. साथ ही इस जगह को बिश्नोई समाज का पवित्र स्थल कहा जाता है. राजस्थान के विख्यात कवि कन्हैयालाल सेठिया ने भी इस पेड़ पर कुछ पंक्तियां लिखी हैं-

''म्हारे मुरधर रो सांचो है खेजड़लो, सूरज बोल छियां न छोडूं, पण जबरो है खेजड़लो
''सरण आय रै छिया पड़ी है, आप बलै खेजड़लो''

गठिया का भी कारगर इलाज है यह औषधि

गठिया, बाय-बादी, जोड़ों के दर्द और गैस की समस्याओं के लिए यह कारगर इलाज माना जाता है. इन औषधीय गुण के कारण भी इसका सेवन किया जाता है. राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा में यह वृक्ष बहुतायात में होता है. शास्त्र में कहा गया है कि इसके वृक्ष के नीचे अग्नि कुंड में बलभाचार्य जी को गुरु इलम्मा ने दर्शन दिए थे. अकाल के समय रेगिस्तान के आदमी और जानवरों का यही एक मात्र सहारा है. सन् 1899 के छप्पनिया अकाल के दौरान रेगिस्तान के लोग खेजड़ी पेड़ के तनों के छिलके खाकर जीवित रहे. इस पेड़ की मान्यता दशहरे से भी जुड़ी है. लंका विजय से पूर्व भगवान राम द्वारा शमी के वृक्ष की पूजा का उल्लेख मिलता है. रावण दहन के बाद घर लौटते समय लोग खेजड़ी के पत्ते लाते हैं, जिसे स्वर्ण का प्रतीक माना जाता है. पांडवों के अज्ञातवास के अंतिम वर्ष में गांडीव धनुष इसी खेजड़ी पेड़ में छुपाए जाने का भी उल्लेख मिलता हैं. 

राजस्थान का कल्पवृक्ष है खेजड़ी 

खेजड़ी को 1983 में राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था. खेजड़ी को राजस्थान का कल्पवृक्ष और रेगिस्तान का गौरव भी कहा जाता है. खेजड़ी के पेड़ की वैज्ञानिक नाम प्रोसोपिस सिनेरेरिया है. इसे शमी, खिजरो, झंड, जाट, खार, कांडा, और जम्मी जैसे नामों से भी जाना जाता है. जबकि खेजड़ी का व्यापारिक नाम कांडी है. खेजड़ी के पेड़ की उम्र 5 हजार साल तक हो सकती है. इस पेड़ की लकड़ी मज़बूत होती है, जिसका इस्तेमाल ईंधन, फर्नीचर और यज्ञ पूजन में किया जाता है. इसकी जड़ से ही हल भी बनाया जाता है.  

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खास बात यह है कि राजस्थान में मशहूर सांगरी की सब्जी का फल भी खेजड़ी से ही प्राप्त होता है. सांगरी में 15 प्रतिशत तक प्रोटीन, 8 से 12 प्रतिशत फाइबर, 40-50 फीसदी कार्बोहाइड्रेट, 8 से 15 प्रतिशत शुगर के साथ ही केवल 2 से 3 प्रतिशत ही वसा या फैट होता है. कैल्शियम, आयरन और अन्य पौष्टिक तत्व होने के चलते सांगरी को काफी स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है. 

यह भी पढ़ेंः बिश्नोई कौन हैं - गुरु जंभेश्वर के प्रकृतिपूजक समाज की पूरी कहानी

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