Rajasthan News: देश के पहले गांव का क्या नाम है? अगर आप इस सवाल का जवाब नहीं जानते तो ये खबर आप ही के लिए है. राजस्थान के बाड़मेर जिले में भारत-पाकिस्तान सीमा पर बसे अकली गांव को केंद्र सरकार 'देश का प्रथम गांव' कहती है. यह वही गांव है जिसने 1965 और 1971 के युद्धों में भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मनों को धूल चटाई थी. लेकिन, आजादी के 75 साल बाद भी इस राष्ट्रप्रेमी गांव के हालात बदहाली की कहानी बयां करते हैं. यहां मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. न सड़कें हैं, न पर्याप्त बिजली, न चिकित्सा, और न ही बेहतर शिक्षा. विकास के तमाम दावों के बीच, अभावों से जूझते ग्रामीण पलायन को मजबूर हैं. हालांकि, जन्मभूमि और देशप्रेम के कारण कुछ परिवार आज भी डटकर सीमा की सुरक्षा में अपना योगदान दे रहे हैं.
जर्जर स्कूल और शिक्षा का संकट
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अकली गांव में शिक्षा की स्थिति चिंताजनक है. करीब 60 साल पहले बना प्राइमरी स्कूल अब 8वीं तक अपग्रेड हो चुका है, लेकिन इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए कोई स्कूल नहीं है. गांव के निवासी बताते हैं कि स्कूल भवन इतना जर्जर हो चुका है कि किसी भी दिन बड़ा हादसा हो सकता है. शिक्षा की इस कमी का सबसे बड़ा खामियाजा बच्चियों को उठाना पड़ रहा है, जिन्हें 8वीं के बाद मजबूरन पढ़ाई छोड़ घर बैठना पड़ता है. वहीं, युवा बेरोजगारी की मार झेलते हुए गांव में ही भटक रहे हैं. 90 के दशक में बना आंगनवाड़ी भवन भी खस्ताहाल है, जिसने छोटे बच्चों की सुरक्षा को लेकर अभिभावकों की चिंता बढ़ा दी है. यह हाल उस गांव का है जिसे देश का 'पहला' गांव कहकर सम्मान दिया जाता है.
इमरजेंसी में भगवान भरोसे ग्रामीण
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गांव में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल और भी बुरा है. 2010 से एक एएनएम (ANM) भवन तो है, लेकिन आज तक वहां किसी नर्स या कर्मचारी की नियुक्ति नहीं हुई है. यानी, एक दशक से ज्यादा समय से भवन ताला बंद है. बीमारी या आपातकाल की स्थिति में ग्रामीणों के पास परिवहन का कोई साधन नहीं है. उन्हें इलाज के लिए बीएसएफ (BSF) कैंप से वाहन मांगना पड़ता है. बुजुर्ग ग्रामीण बताते हैं कि कई बार मरीज को पैदल ही कैंप तक ले जाना पड़ा है, जिससे रास्ते में उनकी हालत और बिगड़ जाती है. चिकित्सा के अभाव में यह गांव हर कदम पर संघर्ष कर रहा है.
राष्ट्रप्रेम की मिसाल, पर पलायन की मजबूरी
पशुपालन पर निर्भर इस गांव के लोग बताते हैं कि युद्ध के समय उन्होंने भारतीय सेना को न केवल रास्ता दिखाने में मदद की, बल्कि रसद (सामग्री) पहुंचाने और दुश्मन की चौकियों को संभालने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आज भी ये ग्रामीण सीमा सुरक्षा बल (BSF) के साथ मिलकर सीमा की रक्षा में डटे हुए हैं. मगर, जिला मुख्यालय बाड़मेर तक जाने के लिए कोई साधन नहीं है. एकमात्र रोडवेज बस जो पहले चला करती थी, वह भी बंद हो चुकी है. गरीबी और मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जो लोग आर्थिक रूप से सक्षम थे, वे पलायन कर शहरों में चले गए. लेकिन, गरीब परिवार और अपनी जन्मभूमि से प्रेम करने वाले लोग आज भी अभावों में ही जीवन गुजार रहे हैं.
'जल जीवन मिशन' के खोखले दावे
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केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी 'जल जीवन मिशन' योजना के तहत गांव में नल तो लगे, लेकिन ग्रामीणों की शिकायत है कि उनमें समय पर पानी नहीं आता. पानी की समस्या आज भी गंभीर बनी हुई है. ग्रामीणों का सुझाव है कि उनके पारंपरिक जल स्रोत "बेरियों" पर सोलर पैनल लगाकर पानी की समस्या को स्थायी रूप से हल किया जा सकता है, लेकिन सरकार का ध्यान इस दिशा में नहीं है. सरकारी योजनाएं कागजों में पूरी हो चुकी हैं, पर ज़मीन पर उनकी हकीकत कुछ और ही है.
'सरकार ने कभी सुध नहीं ली'
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गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सीमा सुरक्षा बल हमेशा उनकी मदद करता है, लेकिन सरकारी अधिकारी कभी उनकी समस्याएं सुनने तक नहीं आते. उनका कहना है, 'हम देश के प्रथम गांव के वासी हैं, लेकिन सरकार ने कभी हमारी सुध नहीं ली.' ग्रामीणों की मांग स्पष्ट है: अकली गांव को सड़क, बिजली, चिकित्सा और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं ताकि पलायन रुके और यह गांव वास्तव में 'देश का प्रथम गांव' बन सके.
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