सावन का पैगाम देतीं हैं 'लहरिया', लाल किले पर भाषण के दौरान PM मोदी ने पहनी 'लहरिया पगड़ी' की खासियत क्या है ? 

Lahriya Safa: लहरिया शब्द हिंदी के 'लहर' शब्द से बना है जिसका मतलब होता है 'तरंग'. लहरिया शिल्प में अलग-अलग रंगों का इस्तेमाल करते हुए कपड़े पर लहरों के जैसे आकृतियों को उकेरा जाता है. कहा जाता है कि इसकी कल्पना राजस्थान के थार मरुस्थल में बहती पुरवाइयां हैं जो खासतौर पर सावन के आने की दस्तक देती हैं. 

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PM Modi Wear Lahriya Safa: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी वेशभूषा को लेकर हमेशा ही चर्चा में रहते हैं. 78वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीरों नसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब भाषण दिया तो हर किसी की निगाह उनकी पगड़ी पर थी. यह राजस्थानी 'लहरिया साफा ' है जिसे मरुप्रदेश की शान कहा जाता है. इस पगड़ी में तिरंगे के रंग की लहरिया बनी हुई थीं . 

क्या होता है 'लहरिया साफा' 

शिल्प के मामले में राजस्थान का अपना एक अलग ही मक़ाम है. सैंकड़ों सालों से राजस्थानी रंगों के अद्भुत संयोजन से इन पारंपारिक शिल्पों को दुनियां में जाने जाना लगा है. इसी में से एक है 'लहरिया' शिल्प. इस शिल्प में साड़ी, साफा और दुपट्टा बनाया जाता है. 

लहरिया शब्द हिंदी के 'लहर' शब्द से बना है जिसका मतलब होता है 'तरंग'. लहरिया शिल्प में अलग-अलग रंगों का इस्तेमाल करते हुए कपड़े पर लहरों के जैसे आकृतियों को उकेरा जाता है. कहा जाता है कि इसकी कल्पना राजस्थान के थार मरुस्थल में बहती पुरवाइयां हैं जो खासतौर पर सावन के आने की दस्तक देती हैं. 

कपड़ों पर लहरों की तरह चलते हैं रंग 

रेगिस्तान में चलने हवाएं अनियमित बहती हैं. कभी आंधी बन रेत के गुबार उड़ाती है तो कभी हल्के ठंडे झोंकों की तरह आती हैं. लहरिया टाई- डाई में भी ऐसे ही रंगों की लहरें बनाई जाती हैं.  

ये रंग कपड़े पर लहरों की तरह जिग-जैग चलती हैं बीच में टूटती हैं और फिर बनती हैं. 

पहले होता था प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल 

कहा जाता है कि लहरिया शिल्प की शुरुआत 17वीं शताब्दी में हुई. उस समय इस शिल्प में पांच रंगों का इस्तेमाल होता था और यह रंग प्राकृतिक होते थे. इन रंगों को पेड़-पौधों और खनिजों से निकाला जाता था. लहरिया को शुरूआती समय में राजघराने से जुड़े लोग ही पहनते थे बाद में आमजन में भी लोकप्रिय होने लगी. 

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रंग-बिरंगे लहरिया मानसून की शुरुआत का पैग़ाम माने जाते हैं. लहरिया का तीज के त्यौहार में भी एक महत्वपूर्ण पहलू है जो बरसात के मौसम में मनाया जाता है. इस त्यौहार में शादीशुदा और अविवाहित महिलाएं लहरिया साड़ी और दुपट्टा पहनती हैं.

रंग-बिरंगे लहरिया मानसून की शुरुआत का पैग़ाम

लहरिया शिल्प में हल्के शिफोन कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है क्योंकि रंग चढ़ने में आसानी हो. मोटे और भारी कपड़े का इस्तेमाल इस शिल्प में नहीं होता. इस कला में रैप-रेज़िस्ट डाइंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. जिसमें आमतौर पर सफ़ेद, पतले सूती या रेशमी कपड़े रंगीन धारीदार डिज़ाइन एक पूरा कैनवास बना देते हैं.

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