Navratri 2024: 'पानी वाली देवी' के नाम से फेमस है माता का ये मंदिर, बम फेंककर भी PAK इसे नहीं कर पाया था ध्वस्त

Maa Jagdamba Temple, Gadra Road: जब भारत-पाकिस्तान के बीच जंग शुरू हुई थी, तब पाकिस्तान ने इस जगह को नष्ट करने के कई प्रयास किए. मगर, माता के चमत्कार से यहां एक भी बम नहीं फटा. इसके बाद ग्रामीणों में इस मंदिर के प्रति आस्था बढ़ती गई.

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मां जगदम्बा मंदिर, गडरा रोड, बाड़मेर.

Rajasthan News: शारदीय नवरात्रि में माता की पूजा का विशेष महत्व होता है. नवरात्रि के इन 9 दिन माता के 9 स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है. देश-विदेश में मौजूद मां जगदंबा के हर एक मंदिर में विशेष अनुष्ठान और पूजा होती है. ऐसे में NDTV राजस्थान की टीम भारत-पाकिस्तान सीमा पर स्थित गडरा रोड़ गांव पहुंचीं है, जहां मां भवानी का एक ऐसा मंदिर है, जिसे 'पानी वाली माता' भी कहते हैं. इस मंदिर में नवरात्रि के 9 दिन देश-विदेश से भक्त पहुंचते हैं और माता के दर्शन कर पूजा पाठ करते हैं. आइए मां जगदंबा के इस अद्भुत मंदिर के बारे में जानते हैं...

बटवारे के समय बसा था गडरा कस्बा

यह मंदिर गडरा रोड कस्बे में बना हुआ है जो बाड़मेर जिला मुख्यालय से करीब 100 किलोमीटर दूर है, और भारत-पाकिस्तान सीमा से महज डेढ़ किलोमीटर पहले स्थित है. यह कस्बा साल 1947 में भारत-पाक बंटवारे के समय बसाया गया था. उस समय जोधपुर से हैदराबाद के लिए ट्रेन चलती थी. गडरा कस्बा सिटी रेल लाइन से 3 किलोमीटर दूर था. ऐसे में गडरा रोड़ रेलवे स्टेशन बनाया गया, जहां ट्रेन का ठहराव था. बंटवारे में गडरा सिटी पाकिस्तान के हिस्से आ गया. यहां बड़ी आबादी माहेश्वरी समाज की थी. माहेश्वरी समाज व्यापार से जुड़ा हुआ समाज है. गडरा सिटी, लीलमा जयसिंधर सुंदरा सहित आस पास के इलाके घी और अनाज की मंडिया हुई करते थे. पाकिस्तान के छोर, अमरकोट, छाछरो और रेल मार्ग के जरिए हैदराबाद तक यहां से व्यापार होता था. लेकिन बंटवारे के बाद पूरा गांव पलायन कर भारत पहुंचा गया और भारतीय सीमा में रेलवे स्टेशन के पास नया गांव बसाया और उसका नाम दिया गया गडरा रोड.

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मंदिर वाली जगह मीठे पानी का भंडार

हालांकि यहां इनकी मुसीबतें कम नहीं थी. दूर रेगिस्तान और पानी के पुराने स्रोत और संसाधन पाकिस्तान के हिस्से चले गए. ऐसे में सीमा के इस पार जीवन यापन बिना पीने के पानी के लिए मुश्किल हो रहा था. कुछ समय रेलवे से पानी लेकर गुजारा किया गया, लेकिन रेलवे से पर्याप्त पानी नहीं मिलता था. ऐसे में गांव वालों ने पानी के लिए एक पूजा का आयोजन रखा. इस दौरान एक राह चलते महात्मा आए और उन्होंने गांव वासियों से कहा कि मैं जहां कहता हूं उस जगह पर कुएं की खुदाई शुरू कर दो. यहां जरूर मीठा पानी निकलेगा. लेकिन उस पानी का चढ़ावा सबसे पहले माता को लगाना होगा. इसके बाद उसे जगह कुआं खोदा गया तो मीठे पीने के पानी के अथाह भंडार मिल गया. इसके बाद ग्रामीणों में मां जगदंबा के इस मंदिर को लेकर विशेष आस्था बैठ गई. ग्रामीणों ने इस जगह मूर्ति स्थापित कर मां जगदंबा का छोटा सा मंदिर बनवाया, जहां साल में दो बार आने वाली नवरात्रि में मां की विशेष पूजा अर्चना की जाती है.

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पाकिस्तान से गिरा एक भी बम नहीं फटा

इस मंदिर के चमत्कार को लेकर ग्रामीण बताते हैं कि पाकिस्तान से पलायन करने के बाद जब लोग यहां पहुंचे तो गांव के सरपंच छोगालाल भूतड़ा ने ग्रामीण के साथ इस जगह मां जगदंबा की पूजा अर्चना कर कुआं खुदवाया था, जहां पर अथाह मीठा पीने का पानी मिल गया. इसके बाद इसी जगह भारत-पाकिस्तान सीमा पर तैनात आर्मी के लिए पीने के पानी की सप्लाई यहीं से होने लगी और आसपास के करीब 30- 40 किलोमीटर के इलाके में लोगों की प्यास बुझाने का यह कुआं ही एकमात्र जल स्रोत था. जब भारत पाकिस्तान के बीच जंग शुरू हुई तो पाकिस्तान ने इस जगह को नष्ट करने के कई प्रयास किए, लेकिन माता के चमत्कार से यह एक भी बम नहीं फटा. इसके बाद ग्रामीणों में इस मंदिर के प्रति आस्था बढ़ती गई. 

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कुएं में डाल दी थी माता की मूर्ति

आज इस गांव से निकले लोग राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक राज्यों के साथ विदेश में भी व्यापार कर रहे हैं. लेकिन माता के प्रति आस्था इतनी गहरी है कि साल में एक बार इस मंदिर जरूर आते हैं. हालांकि साल 1982 के आसपास एक मानसिक रूप परेशान व्यक्ति ने माता जी की मूर्ति को पास ही बने पानी के कुएं में डाल दी. ऐसे में ग्रामीणों की मान्यता थी कि जिस कुएं में माता की मूर्ति डाली गई थी, उस कुएं को बंद कर दिया जाए, क्योंकि जिस कुएं में माता विराजती हैं, उसे अब खोला नहीं जाएगा. इसके बाद जलदाय विभाग ने इसके आसपास कई कुएं खोदे, जिससे पानी की आपूर्ति होती थी और ग्रामीणों के सहयोग से साल 1999 में यहां एक भव्य माता जी का मंदिर बनाया गया, जहां आज भी मां जगत जननी की पूजा अर्चना होती है और ग्रामीणों ने पुराने मंदिर को भी यथावत स्थिति में रखा है, जहां भी आज पूजा की जाती है.

दशरथ के चाचा ने करवाया था निर्माण

इस मंदिर एवं गांव के संस्थापक छोगालाल भूतड़ा के भतीजे दशरथ कुमार भूतड़ा बताते हैं कि हमारे चाचा ने ही गडरा रोड़ गांव बसा कर इस कुएं और मंदिर का निर्माण करवाया था. कुएं से मुनाबाव,जयसिंधर, मापुरी, तामलोर, सज्जन का पार, लकड़ियाली सहित आसपास के कई गांवों के लोग यहीं से ऊंटों, बैलगाड़ी पर पानी लेकर जाते थे. आज भी इस जगह जलदाय विभाग ने कई ट्यूवेल बना रखें, जिससे आसपास के दर्जनों गांव में पानी की सप्लाई होती है. इनके अलावा बीएसएफ और रेलवे ने भी यहां कुएं बनवा रखे हैं, जिनसे इनके पानी की जरूरत पूरी होती हैं.

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