Dil ki sune ya Dimag ki: हमारी जिंदगी में ऐसे कई पड़ाव आते हैं जब हमें समझ नहीं आता कि दिल की सुने या दिमाग की. दिल कुछ और कहता है तो दिमाग कुछ (Dil aur dimag me kiski sune) और ही समझाता है. दिल और दिमाग की इस जद्दोजहद में हम फस कर रह जाते हैं. आप दिल की सुने या दिमाग (whom to listen heart or brain) की ये आपके सामने आए परिस्थिति पर निर्भर करती है. अगर आपके साथ भी ऐसा होता है आप भी इन दोनों के बीच अटक जा रहे हैं, तो यहां आप जानेंगे कि दिल (heart)और दिमाग (mind) में किसे चुनना होगा सबसे सही. इसे चुनने के बाद कभी भी आपको अपने फैसले पर पछतावा नहीं होगा.
सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि आपके सामने स्थिति कैसी है. अगर आपके सामने ऐसी सिचुएशन है जो भावनाओं से जुड़ी है, जिसमें फिलिंग्स है तो आपको हमेशा अपने दिल की सुननी चाहिए.
दिल की आवाज सुनना आपको आपकी आत्मा की आवाज सुनाएगा. दिल से लिए गए फैसले कभी गलत नहीं हो सकते.
बुद्धि, तार्किकता और विचारशीलता में सुनें दिमाग कीजैसा कि आपने जाना की भावनाओं और फिलिंग्स में आपको दिल की सुननी चाहिए. लेकिन आपके सामने अगर ऐसी स्थिति है जिसमें आपको विचार करने की जरूरत पड़ रही है, तर्क पर आधारित है या बुद्धि की बात आती है तो आपको बिना सोचे दिमाग को चुनना चाहिए.
दिमाग से किए गए ये फैसले भविष्य में कभी आपको पछताने का मौका नहीं देंगे. दिमाग आपको तर्क के आधार पर निर्णय लेने में मदद कर सकता है.
हालांकि आपको अपने दिल और दिमाग दोनों का सम्मान करते हुए दोनों की सुननी चाहिए.
(प्रस्तुति - रौशनी सिंह)
अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.