विश्व पर्यावरण दिवस: पेड़ लगाने से काम नहीं चलेगा, गर्मी बढ़ती ही जाएगी

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Prof. Chetan Singh Solanki

World Environment Day: इन दिनों जो गर्मी पड़ रही है वो पहले की गर्मियों से अलग है. बल्कि गर्मी ही नहीं, अब सारे मौसम पहले से अलग हैं. बारिश का, ठंड का और गर्मियों का भी पैटर्न बदल गया है. आने वाले समय में गर्मी कम बिलकुल नहीं होने वाली है, बल्कि ये बढ़ने वाली है. इसके अलावा गर्मी के बढ़ने की गति भी तेज होगी. इसलिए मैं हमेशा कहता हूं कि यह जलवायु परिवर्तन नहीं है क्योंकि परिवर्तन तो अब हो चुका है, और अभी हो ये रहा है कि परिवर्तन की गति तेज़ हो गई है. 

ये परिवर्तन तेज़ी से इसलिए हो रहा है क्योंकि हम देख रहे हैं कि अब हर साल पिछले साल से अलग नज़र आ रहा है. आज से 20-30 साल पहले ये पता नहीं चलता था कि मौसम बदल रहा है. लेकिन अब तो इतने बड़े बदलाव हो रहे हैं कि हम ख़ुद महसूस करने लगे हैं कि पहले ऐसा नहीं होता था. इसका मतलब ये है कि बदलाव की गति भी बहुत तेज है.

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इस बदलाव को हम समझ नहीं पा रहे हैं. इसलिए स्थिति ऐसी है कि जैसे कैंसर हो गया हो और उसका इलाज हम पैरासिटामोल से करना चाहते हैं.

इस बदलाव को हम समझ नहीं पा रहे हैं. इसलिए स्थिति ऐसी है कि जैसे कैंसर हो गया हो और उसका इलाज हम पैरासिटामोल से करना चाहते हैं. इसी वजह से जलवायु परिवर्तन के संकट को दूर करने के लिए लोग पेड़-पौधे लगाते हैं, प्लास्टिक बचाते हैं, टेक्नोलॉजी में विकास करते हैं, इलेक्ट्रिक वाहन, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा जैसे प्रयास करते रहते हैं. लेकिन,ये सब पैरासिटामोल हैं. अगर आपको कैंसर का इलाज करना है तो इसकी जड़ में जाना पड़ेगा.

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Photo Credit: PTI

जलवायु परिवर्तन की जड़

जलवायु परिवर्तन का मूल कारण  है ऊर्जा का उपयोग. ख़ास तौर पर कार्बन उत्सर्जन करनेवाली ऊर्जा का उपयोग, जैसे कोयला, पेट्रोल, डीज़ल, एलपीजी और सीएनजी. जब हम इनका इस्तेमाल करते हैं तो इसके कारण एक ही केमिकल रिएक्शन होता है कि कार्बन + ऑक्सीजन = कार्बन डाई ऑक्साइड और एनर्जी. एनर्जी का हम इस्तेमाल कर लेते हैं और कार्बन डाईक्साइड हवा में चली जाती है.

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उदाहरण के लिए हम घर में रोज़ एलपीजी पर खाना बनाते हैं. इससे कार्बन डाइक्साइड निकलती है जो ग्रीन हॉउस गैस है जिससे गर्मी ट्रैप होती है और उससे ग्लोबल वार्मिंग होती है. इस समय धरती के वातावरण में 53% अतिरिक्त कार्बन डाइक्साइड हो चुकी है. 

औद्योगीकरण की शुरुआत से पहले, 1880 में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा 280 पीपीएम होती थी यानी पार्ट्स पर मिलियन. ऐसे डेटा हैं जो बताते हैं कि 8 लाख साल तक इसके स्तर में कोई तब्दीली नहीं आई थी. लेकिन, जैसे ही मनुष्यों के हाथ में कोयला, पेट्रोल, डीजल, एलपीजी, सीएनजी आया ये  कार्बन डाइऑक्साइड ऊपर जाने लगा. 

ऊपर जाकर यह खत्म नहीं हो जाता है. ये जमा होता जाता है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड की लाइफ़ साइकिल 300 साल की है. यानी आज जो मैं खाना खाऊंगा, आज जो मैं पेट्रोल डीजल इस्तेमाल करुंगा और जिस बिजली का उपयोग करूँगा, उसके कारण निकलनेवाली कार्बन डाइऑक्साइड का असर दुनिया में 300 साल तक रहने वाला है. 

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जैसे-जैसे हमारी गतिविधियाँ बढ़ रही हैं, हमारा कार्बन डाइऑक्साइड बढ़ता जा रहा है. मतलब हर साल नए रिकॉर्ड बन रहे हैं. वर्ष 2023 में 40 अरब टन कार्बन डाइक्साइ़ हवा में गया था. यदि इसे प्रति सेकंड में विभाजित किया जाए तो पता चलेगा कि हर सेकंड मनुष्यों के द्वारा धरती के वातावरण में 13.5 लाख किलोग्राम कार्बन डाइक्साइड सिर्फ़ 1 सेकंड में छोड़ती है.

पेड़ों से नहीं बनेगी बात

तो जब इतनी बड़ी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड हवा में जा रही है तो उसकी रोकथाम पेड़ों से नहीं हो सकती, या प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने से नहीं हो सकती, और नियम कानून बनाने से नहीं हो सकती. तापमान में इतना बड़ा बदलाव इसलिए दिखता है क्योंकि धरती में 53% एक्स्ट्रा कार्बन डाइऑक्साइड हो गई है. इसका मतलब ये है कि धरती की गर्मी को पकड़ने की क्षमता 53% बढ़ गई है. जो गर्मी ट्रैप हो रही है वो 53% अतिरिक्त ट्रैप हो रही है.इस गर्मी के ट्रैप होने से धरती का तापमान बढ़ रहा है.

आज जो हम गर्मी देख रहे हैं वह सिर्फ शुरुआत है. इसके बाद हर साल गर्मी और बढ़ती जाएगी क्योंकि पिछले 10 सालों में पूरे विश्व ने प्रगति की है और बहुत सारा कार्बन डाइऑक्साइड हवा में छोड़ा है.

दुर्भाग्य ये है कि आज जो तापमान पर असर दिख रहा है, वो 8-10 साल पहले की कार्बन डाइऑक्साइड का असर है. असल में आज जो कार्बन डाईऑक्साइड निकल रही है उसका असर तत्काल नहीं दिखता है, बल्कि उसमें 8-10 साल लगते हैं. इसका मतलब ये है कि आज जो हम गर्मी देख रहे हैं वह सिर्फ शुरुआत है. इसके बाद हर साल गर्मी और बढ़ती जाएगी क्योंकि पिछले 10 सालों में पूरे विश्व ने प्रगति की है और बहुत सारा कार्बन डाइऑक्साइड हवा में छोड़ा है.  

इसलिए अभी हम जो गर्मी झेल रहे हैं वैसी गर्मी पहले नहीं होती थी, पहले इतनी हीटवेव नहीं होती थी. लेकिन, अब ये भविष्य में और बढ़नेवाला है. इसलिए पर्यावरण दिवस पर सिर्फ़ पेड़-पौधे लगाकर खुश नहीं होना चाहिए क्योंकि अच्छा प्रयास होने के बावजूद ये ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसे बड़े संकट का एक प्रतिशत भी समाधान नहीं है.

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परिचय: प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी एक जाने-माने पर्यावरणविद और वैज्ञानिक हैं. प्रो. सोलंकी आईआईटी मुंबई में प्राध्यापक हैं तथा उन्हें सोलर मैन ऑफ़ इंडिया भी कहा जाता है. प्रो सोलंकी वर्तमान में पर्यावरण के संरक्षण के लिए 11 वर्षों की एक एनर्जी स्वराज यात्रा का अभियान चला रहे हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

(अपूर्व कृष्ण के साथ बातचीत पर आधारित लेख)