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महाराणा प्रताप या अकबर- हल्दीघाटी में जीता कौन?

Dr. Chandrashekhar Sharma
  • विचार,
  • Updated:
    मई 30, 2025 15:57 pm IST
    • Published On मई 30, 2025 15:46 pm IST
    • Last Updated On मई 30, 2025 15:57 pm IST
महाराणा प्रताप या अकबर- हल्दीघाटी में जीता कौन?

Rajasthan: मेवाड़ और मुगल संबंधों का सबसे प्रसिद्ध अध्याय महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) और अकबर (Akbar) का है. प्रारंभ से ही अकबर की चमक दमक के सामने प्रताप के संघर्ष के प्रमुख युद्ध हल्दीघाटी को कभी भी इतिहास लेखकों द्वारा तथ्यों की कसौटी पर नहीं कसा गया. सदैव मुगलों की सेना को अपराजेय मानकर एकतरफा राय बनाई गई. इसे पिछली 4 सदियों से इतिहासकारों द्वारा गोद में पाल पोसकर इतना बड़ा कर दिया गया कि कोई भी इसकी समीक्षा में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. अबुल फजल की लिखी लकीरों को प्रायः सभी इतिहासकार पीटते रहे. कोई भी अपवाद नहीं हुआ जिसका नामोल्लेख किया जा सके. सभी लगभग एक ही धारा में बहते जा रहे थे.

अकबर को महान बताकर, एक झूठी पतवार वाले पाठ्यक्रमों के द्वारा कई पीढ़ियों का बाल्यकाल में ही ऐसा वैक्सिनेशन किया गया कि उससे आगे जब कभी सोचा तक नहीं गया, तो उसपर शोधकार्य कौन करे? मेरे द्वारा प्रताप पर प्रथम शोध पीएचडी के माध्यम से किया गया. 

पूर्ववर्ती अक्षुण्ण मान्यता के अनुसार जैसा माध्यमिक स्तर तक पढ़ा, वो यही था कि मुगल सेना की हल्दीघाटी युद्ध में विजय हुई. कुछेक इतिहासकारों ने इसे अनिर्णायक परिणाम की श्रेणी में मानकर कुछ ध्यानाकर्षण किया.

उपर्युक्त पृष्ठभूमि के साथ मैंने यह कार्य आरंभ किया. लेकिन तथ्यों के एकीकरण के समय जब प्रथम बार प्रतापकालीन ताम्रपत्रों का अनुशीलन प्रथम बार मेरे द्वारा शोध हेतु किया गया तो मेरी बरसों की जमी मान्यता की बर्फ पिघलने लगी.

अकबर को महान बताकर, एक झूठी पतवार वाले पाठ्यक्रमों के द्वारा कई पीढ़ियों का बाल्यकाल में ही ऐसा वैक्सिनेशन किया गया कि उससे आगे जब कभी सोचा तक नहीं गया, तो उसपर शोधकार्य कौन करे?

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मुगलों की जीत के दावे और विरोधाभासी तथ्य

इतिहास लेखन में राजस्व रिकॉर्ड का, इतिहास के प्राथमिक स्रोत के रूप में तथ्यों के निर्धारण हेतु उपयोग किया जाता रहा. हल्दीघाटी युद्ध के ठीक बाद चेतक स्मारक हेतु भूमिदान, और आसपास के पर्वतीय क्षेत्र के साथ-साथ मैदानी भाग के पट्टे-परवाने और ताम्रानुशासन प्रताप द्वारा जारी किए गए, और प्रजा द्वारा उनका फॉलोअप किया गया तो उससे एक दूसरी तस्वीर सामने आई.

ऐसा लगा कि हल्दीघाटी की लड़ाई यदि मुगलों ने जीती होती तो उसके आसपास के क्षेत्र को अजमेर सूबे में शामिल कर उसके राजस्व की उगाही मुगल प्रशासन द्वारा ही की जाती, जैसे कि चित्तौड़ और मांडलगढ़ में की गई थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ था.

सिर्फ अबुल फजल के लेखन को सत्य शिरोमणि मान लिया गया जो कि खुद इस युद्ध में मौजूद नहीं था. इसके विपरीत जो बदायूंनी इस युद्ध में लड़ने वाला एक योद्धा भी था और साक्षी भी, उसे तवज्जो नहीं दी गई.


इसके अलावा ना कोई ऐसी व्यवस्था , ना कोई फौजदार चौकीदार या मुगल सैन्य छावनी कायम की गई, जैसी कि अन्य जगह जीतने के बाद अकबर द्वारा की गई थी. 

इसके साथ ही मुगल सेनापति मानसिंह कच्छवाहा का युद्ध क्षेत्र में प्रताप का सामना ना कर अपनी जान बचाने का प्रयास, महावत के मारे जाने के बाद असंतुलित हाथी के साथ मानसिंह का उस स्थान से पलायन, तत्पश्चात प्रताप का  युद्ध स्थान में स्थान परिवर्तन फिर गोगुंदा ग्राम में खाई खोदकर शिविर में पड़े रहकर भूखे मरने की नौबत, अकबर के सामने जाने की हिम्मत ना जुटा पाना, अकबर के आदेश पर मुगल कोर्ट में जाना, और अकबर द्वारा मानसिंह और आसफ खान की 6 महीने के लिए ड्योढ़ी माफ करना, दरबार में शक्ल न बताने की सजा देना - ये सब बहुत कुछ कह देता है जिसे कभी पढ़ा नहीं गया और न ही तथ्यों की कसौटी पर कसा गया. 

बदायूंनी भी था साक्षी

सिर्फ अबुल फजल के लेखन को सत्य शिरोमणि मान लिया गया जो कि खुद इस युद्ध में मौजूद नहीं था. इसके विपरीत जो बदायूंनी इस युद्ध में लड़ने वाला एक योद्धा भी था और साक्षी भी, उसे तवज्जो नहीं दी गई.

मुगल दरबार के इन दोनों समकालीन इतिहासकारों का यदि तुलनात्मक अध्ययन कर लिया जाता तो वो झूठे तथ्य कभी पाठ्यक्रम के माध्यम से दीर्घायु न होते. लेकिन आज मेरे कार्य को दो दशक हो गए और इस संदर्भ में तीन किताबों का लेखन हो गया. रिसर्च आधारित पुस्तक राष्ट्र रत्न महाराणा प्रताप तो राजस्थान विश्वविद्यालय में एमए के पाठ्यक्रम में संदर्भ ग्रंथ के रूप में ली गई है. तथ्य और तर्क दोनों की कसौटी पर, हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना की जीत की अवधारणा ताश का महल साबित हुई  है.

परिचय: डॉ. चंद्रशेखर शर्मा एक इतिहासकार और उदयपुर के राजकीय मीरा कन्या महाविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर तथा विभागाध्यक्ष हैं. उन्होंने महाराणा प्रताप पर शोध किया है. उनकी पुस्तक 'राष्ट्र रत्न महाराणा प्रताप' राजस्थान विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर पाठ्ययक्रम में संदर्भ ग्रंथ के तौर पर शामिल की गई है. उनके अनेक लेख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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