विज्ञापन

भरतपुर का एकमात्र श्री गंगा मंदिर जहां मगरमच्छ पर सवार होती हैं मां, गंगा दशहरा पर यहां उमड़ता श्रद्धालुओं का सैलाब

भारत का एकमात्र भव्य महारानी श्री गंगा मंदिर भरतपुर में स्थित है.गंगा दशहरा पर यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. इसका निर्माण कार्य महाराजा बलवंत सिंह ने शुरू करवाया था और इसे पूरा होने में पांच पीढ़ियां लग गईं.

  • भारत का एकमात्र भव्य महारानी श्री गंगा मंदिर भरतपुर में स्थित है. इसका निर्माण भरतपुर के राजपरिवार ने बंसी पहाड़पुर के पत्थरों से राजपूत, मुगल और दक्षिण भारतीय शैली में करवाया था.
  • यह 90 साल में बनकर तैयार हुआ है. गंगा दशहरा पर मंदिर में फूल बंगला झांकी के साथ मां गंगा का पंचामृत से अभिषेक किया जाता है. गंगा दशहरा के अवसर पर मंदिर को रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है, जिसकी खूबसूरती लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है.
  • महाराजा बलवंत सिंह ने अपने पुत्र जसवंत सिंह के जन्म के बाद 1845 में श्री गंगा मंदिर की नींव रखी थी. इसका निर्माण कार्य पांच पीढ़ियों तक चलता रहा. यह मंदिर 90 वर्षों में बनकर तैयार हुआ.
  • इसका निर्माण दक्षिण भारतीय, राजपूत और मुगल शैली में किया गया है. यह बंसी पहाड़पुर के बादामी रंग के पत्थरों से बना है. इसके खंभों और दीवारों पर कई खूबसूरत नक्काशी की गई है.
  • पांचवीं पीढ़ी के महाराजा बृजेंद्र सिंह ने 22 फरवरी 1937 को मां की मूर्ति स्थापित की थी. मूर्ति में स्थापित मूर्ति प्राचीन सफेद संगमरमर से बनी मगरमच्छ पर सवार गंगा महारानी की भव्य मूर्ति है. उनके बगल में राजा भगीरथ की चार फीट ऊंची मूर्ति है, जो मां गंगा को प्रणाम कर रही है.
  • कहते हैं कि जब महाराजा बलवंत सिंह ने इस मंदिर की नींव रखी तो वे जम्बू जी को हाथी पर लाये थे. जम्बू जी एक कलात्मक चांदी का बर्तन है, यह नीचे से गोल और ऊपर से चोंच जैसा है, वे इसमें गंगाजल लेकर आये थे. इसे माता के बाएं हाथ में रखा गया है.
  • महारानी श्री गंगा मंदिर में भक्तों को प्रसाद के रूप में और देवी के अभिषेक के लिए गंगाजल वितरित किया जाता है. मंदिर परिसर में रियासतकालीन तीन कुंड हैं, जिनमें टैंकरों के जरिए हरिद्वार से गंगाजल लाकर यहां संग्रहित किया जाता है. साल भर में अभिषेक और प्रसाद में 15 हजार लीटर गंगाजल का उपयोग होता है.