Flight of Courage: समस्याएं किसके जीवन में नहीं आती, लेकिन बाधाओं को पार कर वीरवान दास्तांं लिख जाते हैं. एक हादसे में अपने दोनों हाथ गंवाने वाली चुरू की कमला ने बाधाओं को ठेंगा दिखाकर लोगों की प्रेरणास्रोत बनकर उभरी हैं. जिले के छोटे से गांव की दिव्यांग कमला आज नवनियुक्त शिक्षकों की ट्रेनिग का हिस्सा है. कमला जब ट्रेनिंग कैंप पहुंची, तो उसे देखकर हर कोई दंग था.लोग कमला के संघर्षों को लेकर उत्सुक हो आए.
अमरसर गांव की 25 वर्षीय कमला मेघवाल दोनों हाथों से विकलांग थी, जब वह आठवीं कक्षा में थी, तब एक दुर्घटना में उसने अपने दोनों हाथ खो दिए. दूसरा होता तो टूट जाता, लेकिन कमला ने हिम्मत नहीं हारी और उनका साहस पूरी दुनिया में मिसाल और एक प्रेरणा बन गया है. लंबे संघर्षों से उबरने के बाद कमला का तृतीय श्रेणी शिक्षक भर्ती में चयन हुआ है.
हादसे में मिला कभी नहीं भरने वाले जख्म
14 अप्रैल 2009 को हुए एक हादसे ने कमला की पूरी जिंदगी बदल दी. कमला बताती हैं कि उस समय में आठवीं क्लास में पढ़ती थी, उस दिन जब वो छुट्टी के बाद स्कूल से घर आ रही थी. उस दौरान रास्ते में नीचे झूल रहे 11 हजार केवी की बिजली की तारों से उसके दोनों हाथ खो दिए.
कमला को ऐसे मिली पढ़ने और लिखने की प्रेरणा
हादसे में अपने दोनों हाथ खोने वाली कमला को यूं तो कमला के पिता और भाई का कदम कदम पर साथ मिला, जिससे दिव्यांगता के बावजूद ने अपने जैसे दिव्यांगों के लिए हौसले की नई इबारत लिख दी. कमला बताती है कि उनके माता-पिता और बड़े भाई टीवी पर एक दिव्यांग की कहानी से प्रेरित होकर लिखने का अभ्यास किया. हाथ में रस्सी से पेन बांधकर अभ्यास करते-करते कमला इतनी पारंगत हो गईं कि 2012 में कक्षा 10 वीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुईं.
लोग देते थे ताने, पढ़- लिख कर क्या करोगी?
कमला ने जब संघर्ष का रास्ता चुना तो ऐसा नहीं है कमला को सफलता एकदम से मिल गई. कमला के सामने अनेकों चुनौतियां आई, लेकिन कमला ने हर बाधा को पार किया. कमला ने बताया, मैने पढ़ाई शुरू किया तो कुछ लोग ताने देते थे कि यह अब पढ़ाई करके क्या करोगी, सही हाथ वालों को भी नौकरी नहीं मिलती है, तुमको कैसे नौकरी मिलेगी.
बचपन से कमला मेघवाल का शिक्षिका बनने का सपना था
कमला मेघवाल ने बताया कि शिक्षिका बनने का उसका बचपन से सपना था, लेकिन हादसे ने कमला को अंदर तक तोड़ दिया. हादसे के बाद भी कमला ने हौंसला नहीं खाया और शिक्षिका बनने के सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत शुरू कर दी. दो वर्ष तक सीकर में रहकर 15 से 18 घंटे तक पढ़ाई करने वाली ने अंततः शिक्षिका बनने का सफर तय कर लिया. सफलता का श्रेय कमला अपने माता -पिता और भाई सहित गुरूजनों को देती हैं.
पांच भाई बहनों में सबसे छोटी हैं कमला
दलित समाज से आने वाली कमला मेघवाल के पिता वह भाई खेती-बाड़ी कर किसी तरह अपना जीवन यापन करते हैं. कमला की माता भंवरी देवी, पिता भभूता राम मेघवाल ने बताया कि बेटी को सफलता मिलने के बाद उनकी चिंता दूर हुई है. उन्होंने कहा, खुशी इस बात की है की बेटी की मेहनत आखिर कार रंग लाई और बेटी का शिक्षक भर्ती में चयन हो गया.
बच्चों को देती है मेहनत करने की सीख
छोटे से गांव अमरसर में रहने वाली कमला बिना हाथों के ही पढ़ाई लिखाई के साथ साथ घर का काम भी करती हैं. कमला घर में सब्जी बनाना,झाडू निकालना, पानी भरना सहित घर का कार्य भी कर लेती है. कमला कहती हैं कि, अपने लक्ष्य को पाने के लिए लगन से मेहनत करने वाले के पास सफलता खुद चलकर आती है.
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