'...और कारवां बनता गया', कहानी जिम्नास्टिक के जादूगर कोच बाबूलाल कमेड़िया की जो 20 सालों से बिना फीस दे रहे हैं ट्रेनिंग

National Sports Day 2024: कोच बाबूलाल कमेड़िया का कहना है कि सरकार खेलो इंडिया के तहत कुचामन में एकेडमी शुरू कर दे तो क्षेत्र की प्रतिभाओं को और ज्यादा संसाधन मिलेंगे और उनका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिम्नास्टिक खेल में पदक लाने का सपना भी पूरा होगा

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Gymnastics Magician Coach Babulal Kamedia: आज हाकी के जादूगर के नाम से मशहूर मेजर ध्यानचंद की जयंती है. इस दिन को हर साल राष्ट्रीय खेल दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस मौके पर आज हम आपको मिलवाते हैं खेलों के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देने वाली ऐसी शख्सियत से, जिन्हें अपने क्षेत्र में जिम्नास्टिक के जादूगर के नाम से जाना जाता है. 

नवोदित प्रतिभाओं को जिम्नास्टिक के गुर सिखा रही इस शख्सियत का नाम बाबूलाल कमेड़िया है, जो कुचामन के रहने वाले हैं और आसपुरा गांव में शारीरिक शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं.

बाबूलाल कमेड़िया पिछले दो दशक से क्षेत्र में जिम्नास्टिक प्रशिक्षक की भूमिका निभा रहे हैं और इनका लक्ष्य एक ही है कि क्षेत्र से निकली जिम्नास्टिक प्रतिभाएं एक दिन देश के लिए खेलें. उनकी इच्छा है कि ऐशियाड और ओलंपिक खेलों में पदक जीतकर लाएं.

बिना पैसे देते हैं जिम्नास्टिक की ट्रेनिंग 

इंटरनेशनल मेडल लाने के जुनून के चलते बाबूलाल ने अभ्यास के लिए अपनी तरफ से संसाधन भी जुटाए हैं और लाखों रुपए खर्च करके जिम्नास्टिक खेल से जुड़े उपकरण भी खरीदे हैं.

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कोच बाबू लाल कमेड़िया से प्रशिक्षण लेने वाले युवा बताते हैं कि आज तक किसी भी खिलाड़ी से कोच बाबूलाल ने प्रशिक्षण का कोई पैसा नहीं लिया

और वो दशकों से क्षेत्र में निशुल्क प्रशिक्षण के जरिए जिम्नास्टिक की प्रतिभाएं तराश रहे हैं.

कई खिलाड़ियों राष्ट्रीय स्तर तक भी पहुंचे 

साल 2004 में बाबूलाल कमेड़िया ने जिम्नास्टिक का प्रशिक्षण शुरू किया था. उसके बाद से कभी कोई साल नहीं निकला, जिसमें कुचामन क्षेत्र के खिलाड़ियों ने जिम्नास्टिक के खेल में स्टेट और नेशनल टूर्नामेंट ना खेला हो. आज बाबू लाल कमेड़िया से प्रशिक्षण प्राप्त किए हुए कई खिलाड़ी भी शारीरिक शिक्षक बन चुके हैं तो कई राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में खेलने के बाद स्पोर्ट्स कोटे से नौकरी हासिल कर चुके हैं.

कोच बाबूलाल कमेड़िया का कहना है कि सरकार खेलो इंडिया के तहत कुचामन में एकेडमी शुरू कर दें तो क्षेत्र की प्रतिभाओं को और ज्यादा संसाधन मिलेंगे और उनका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जिम्नास्टिक खेल में पदक लाने का सपना भी पूरा होगा

'मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर....'

मैं अकेला ही चला था जानिब ए मंजिल मगर, लोग साथ आते गए, कारवां बनता गया .... ये लाइन्स जिम्नास्टिक कोच बाबू लाल कमेड़िया के लिए बिलकुल सटीकबैठती हैं, क्योंकि साल 2004 में उन्होंने जिम्नास्टिक कोच के तौर पर शुरुआत की थी और उनकी मेहनत, लगन और समर्पण से आज अनगिनत प्रतिभाएं उनके कारवां में शामिल हो चुकी हैं, और उनके देश के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक लाने के सपने को पूरा करने में जुटी हैं.

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