Kota News: पॉवर प्लांट में अपनी तकनीकी दक्षता को बखूबी निभाकर रिटायर्ड होने के बाद पर्यावरण संरक्षण और जैविक खेती के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के उद्देश्य से कोटा के रिटायर्ड इंजीनियर ने जो मेहनत की वह रंग ला रही है. उन्हों एक आम का बग़ीचा लगाया है जो अब लोगों में चर्चा का विषय बन रहा है. दूर-दराज से लोग इस बगीचे को देखने और यहां उगे आमों के स्वाद के दीवाने हो रहे हैं.
ओमप्रकाश कहते हैं, पहले तो सभी ने कहा कि आपसे किसानी का काम नहीं हो पायेगा. लेकिन मैंने इसे चुनौती के रूप में लिया और महाराष्ट्र जाकर आम के बगीचे देखे, जहां हर किस्म के पौधे लगे हुए थे. वहीं से प्रेरणा मिली और जैविक खाद से बगीचा तैयार किया. 70 साल के शर्मा अब हर रोज 10 से 12 घण्टे बगीचे की देखभाल के लिए देते हैं और लोगों को जैविक खेती के फायदे बताकर उसके लिए मोटिवेट करते है.
देशी के साथ विदेशी प्रजातियों के आकर्षक आम
शर्मा ने बताया कि बगीचे में अमरीका के ख्यात टॉमी एटकिंस मैंगो लगे हुए हैं, जो देश में गिने चुने बगीचों में हीं हैं. इसके अलावा लगड़ा, दशहरी, आम्रपाली, मलिका, चौसा, स्वर्ण रेखा, केसर आम के पेड़ भी फल दे रहे हैं. हर रोज करीब एक क्विंटल आमों की खुशबू स्वाद और जैविक पौष्टिकता की वजह से बगीचे में लोग आम लेने पहुंच रहे हैं. वहीं विदेशों में भी रिश्तेदारों को बग़ीचे के आम खूब पसंद आ रहे है.
यह भी पढ़ें- भारत-पाक बॉर्डर पर तारबंदी काट कर ले गए चोर, पाकिस्तान की 200 बकरियां भारत में घुसीं
मदर प्लांट भी हो रहे है तैयार
शर्मा बताते हैं कि बग़ीचे में 1000 पेड़ हैं. बगीचे के ग्रीन हाउस में मदर प्लांट तैयार किया गया है. आम के पौधे की विभिन्न किस्म को लेने के लिए भी अब आसपास के क्षेत्र से आर्डर आ रहे हैं. शर्मा कहते हैं कि जैविक आम के बगीचे को राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिलना शुरू हो गई है.
अपना सपना किया साकार
वैसे तो रिटायरमेंट के बाद व्यक्ति कंफर्ट जोन में चला जाता है लेकिन ओम प्रकाश शर्मा ने 7 साल कड़ी मेहनत से 22 बीघा जमीन पर जैविक आम का बगीचा तैयार कर लिया है. खास बात यह है कि बगीचे में देश-विदेश में प्रसिद्ध सभी आमों की किस्में मौजूद है. कोटा के जवाहर नगर निवासी सूरतगढ़ थर्मल से रिटायर अधीक्षण अभियंता ओम प्रकाश शर्मा ने बताया कि 37 साल की नौकरी में काफी व्यस्त रहे. मन में बड़ी इच्छा थी कि सेवानिवृत्ति के बाद पर्यावरण संरक्षण और परंपरागत जैविक खेती को लेकर बाकी का जीवन व्यतीत करेंगे और फिर कैथून बाइपास के पास मोतीपुरा गांव में जमीन पर खेती करने की ठानी.