चूरू की ताल छापर सेंचुरी में बढ़ रहा है काले हिरणों का कुनबा, कृष्णमृग अभयारण्य में पहुंच रहे हैं सैलानी

एशिया में पहचान रखने वाले तालछापर कृष्ण मृग अभयारण्य में काले हिरणों का कुनबा लगातार बढ रहा है. अब इनकी बड़ी कुलांचों के लिए अभयारण्य में जमीन छोटी पड़ने लगी है.

Advertisement
Read Time: 15 mins

Churu News: काले हिरणों की सबसे बड़ी आबादी के तौर पर एशिया में पहचान रखने वाले तालछापर कृष्ण मृग अभयारण्य में काले हिरणों का कुनबा लगातार बढ रहा है. अब इनकी बड़ी कुलांचों के लिए अभयारण्य में जमीन छोटी पड़ने लगी है. बता दें कि विश्वविख्यात तालछापर में हर साल बड़ी संख्या में देश-विदेश के पर्यटक परिवार के साथ पहुंचते हैं. विश्व विख्यात तालछापर अभयारण्य में अब शीतकालीन अवकाश होते ही पर्यटकों का आने का सिलसिला और बढ़ गया है.

अफ्रीकी और मध्य यूरोप में पाए जाने वाले प्रवासी पक्षी पहुंचे

क्षेत्रीय वन अधिकारी उमेश बागोतिया ने बताया कि प्रतिवर्ष विदेशी पक्षी यहां आते हैं. इस बार सबसे पहले अफ्रीकी और मध्य यूरोप में पाए जाने वाले पक्षी ग्रेटर फ्लेमिंगो ने अभयारण्य में पड़ाव डाला है. ग्रेटर फ्लेमिंगो खूबसूरती के कारण हंस प्रजाति के जीवों में राजहंस के नाम से भी जाना जाता है. बेहद सुंदर दिखने वाला यह पक्षी 3 से 4 घंटे तक एक टांग पर खड़ा रह सकता है. यहां तक की एक टांग पर इतने ही समय तक नींद भी ले सकता है. इसकी गर्दन लंबी, लाल चोंच वाले इस राजहंस की लंबाई 120 से 130 सेंमी. होती है.

Advertisement

पक्षी विशेषज्ञों का कहना है कि तालछापर कृष्णमृग अभयारण्य का सपाट भूभाग मोथीया घास की प्रचुरता के लिए मशहूर है. यहां का हैबिटेट प्रवासी पक्षियों के अनुकूल होने व अभयारण्य का भौगोलिक परिवेश सुरक्षित होने के कारण प्रवासी पक्षियों की संख्या का ग्राफ प्रतिवर्ष बढ़ता जा रहा है.

Advertisement

सुविधाओं में विस्तार

डीएफओ सविता दहिया ने बताया कि आनेवाले दिनों में अभयारण्य की सुविधाओं को और अधिक बेहतर बनाने की कवायद शुरू हो गई है. उन्होंने बताया कि वैसे तो तालछापर को किसी तरह की पहचान की आवश्यकता नहीं है. लेकिन हाइवे पर आनेवाले लोगों को इसके बारे में पता नहीं चल पाता है. इसको ध्यान में रखते हुए हाइवे पर इसके बड़े-बड़े बोर्ड लगाए जाएंगे । इसके अलावा आकर्षक स्वागत द्वार भी तैयार किया जाएगा.

Advertisement

यह भी पढ़ेंः राज्य पक्षी गोडावण की लगातार घट रही संख्या, संरक्षण के नाम पर खर्च हो रहे करोड़ों रुपये व्यर्थ

Topics mentioned in this article