मेहसाणा में खुदाई के दौरान मिट्टी धंसने से बांसवाड़ा के 3 मजदूर समेत 9 की मौत, मरने वालों में 2 सगे भाई भी शामिल

Banswara News: तीनों मृतकों की पहचान गंगड़तलाई क्षेत्र के तरकिया गांव की गंगा बेन कटारा, सज्जनगढ़ तहसील के गोयका गांव के जगन्नाथ बारिया और महेंद्र भाई बारिया के तौर पर हुई है. मृतकों के परिजनों को सूचना मिलने पर वह घटना स्थल के लिए रवाना हो गए और पोस्टमार्टम की कार्यवाही के साथ मृतकों के शवों को बांसवाड़ा लाया गया.

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Banswara News: गुजरात के मेहसाणा जिले की कड़ी तहसील के जासलपुर गांव में टैंक की खुदाई के दौरान मिट्टी धंसने से बड़ा हादसा हो गया. इस दौरान 9 श्रमिकों की मौत हो गई, जिसमें बांसवाड़ा जिले के 3 मजदूर भी शामिल है. इनमें दो सगे भाई है. तीनों मृतकों की पहचान गंगड़तलाई क्षेत्र के तरकिया गांव की गंगा बेन कटारा, सज्जनगढ़ तहसील के गोयका गांव के जगन्नाथ बारिया और महेंद्र भाई बारिया के तौर पर हुई है. मृतकों के परिजनों को सूचना मिलने पर वह घटना स्थल के लिए रवाना हो गए और पोस्टमार्टम की कार्यवाही के साथ मृतकों के शवों को बांसवाड़ा लाया गया. जिला कलेक्टर डॉ. इंद्रजीत सिंह यादव ने बताया कि जैसे ही जानकारी मिली, वैसे ही क्षेत्र के पटवारी और तहसीलदार को पीड़ितों के गांव जाकर पीड़ित परिवार से पूरी जानकारी जुटाने को कहा गया है.

हादसे में कुल 10 लोग दबे, 1 मजदूर बाल-बाल बचा 

मेहसाना पुलिस ने बताया कि स्टील आईनॉक्स स्टेनलेस प्राइवेट लिमिटेड में कुछ श्रमिक टैंक के लिए गड्ढा खोद रहे थेय उसी दौरान अचानक मिट्टी धंस गई और वहां मौजूद श्रमिक उसके नीचे दब गए. हादसे की सूचना मिलने पर पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी और मिल प्रबंधन के अधिकारी मौके पर पहुंचे. वहां जेसीबी की मदद से मिट्टी हटाई गई. मौके पर मौजूद महिला श्रमिक रमिला बेन ने बताया कि हादसे में 10 लोग धंस गए थे. तब उसका बेटा विनोद भी दब गया था. वह तो बाहर निकल आया, लेकिन 9 मजदूर दब गए. 

हर साल हजारों लोग करते हैं पलायन

केंद्र सरकार की महात्मा गांधी नरेगा योजना के तहत श्रमिकों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध हो रहा है. बावजूद इसके बांसवाड़ा जिले से हर साल 40 से 50 हजार लोग रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में जाने को मजबूर है. ये लोग गुजरात और अन्य राज्यों की ओर पलायन करते हैं. इस दौरान हर साल कई लोग हादसों का शिकार हो जाते हैं और उनकी मौत हो जाती है. परेशानी यह भी है कि प्रवासी श्रमिकों के लिए कोई नीति या नियम नहीं होने के चलते उनके परिजनों को मुआवजा भी नहीं मिल पाता है. 

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