Banswara News: जनजाति जिला बांसवाड़ा वैसे तो परंपरागत रूप से मक्का उत्पादन में देश में अपना नाम रखता है, लेकिन फलों का राजा कहा जाने वाला आम भी यहां की खास पहचान है. गर्मियों में यहां फलों के राजा ‘आम' की चर्चा ‘खास' हो जाती है. यहां पर आम की 46 प्रजातियों की हर साल बंपर पैदावार होती है और इनकी पहुंच देशभर में हैं. बांसवाड़ा जिले में परंपरागत रूप से रसीले आम की 18 प्रजातियों के साथ देशभर में पाए जाने वाली उन्नत किस्म की 28 अन्य प्रजातियों का उत्पादन होता है.
वहां महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर द्वारा संचालित क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र एवं कृषि विज्ञान केंद्र, बोरवट (बांसवाड़ा) में आम के ग्राफ्टेड पौधे तैयार कर किसानों को उपलब्ध करवाए जाते हैं. इसके अलावा गढ़ी कस्बे में ‘राजहंस नर्सरी' में भी विभिन्न उन्नत किस्मों के आम के पौधे किसानों को अनुदान पर मिलते हैं.
46 प्रजातियों के हैं आम
जिले में किशन भोग, बॉम्बे ग्रीन, बॉम्बई, केसर, राजस्थान केसर, फजली, मूलागो, बैगनपाली, जम्बो केसर गुजरात, स्वर्ण रेखा, बंगलौरा, नीलम, चौसा, दशहरी, मनकुर्द, वनराज, हिमसागर, जरदालु, अल्फांजो, बजरंग, राजभोग, मल्लिका, लंगड़ा, आम्रपाली, फेरनाड़ी, तोतापूरी, रामकेला आदि ख्यातनाम 28 प्रजातियों का बंपर उत्पादन हो रहा है. इसके अलावा देसी रसीले आम की टीमुरवा, आंगनवाला, देवरी के पास वाला, कसलवाला, कुआवाला, आमड़ी, काकरवाला, लाडुआ, हाड़ली, अनूप, कनेरिया, पीपलवाला, धोलिया, बारामासी, बनेसरा, सागवा, कालिया, मकास आदि प्रजातियों का भी उत्पादन होता है.
आम के अलावा और भी हैं और फल
जिलेभर में फलों का कुल उत्पादन 45 हजार 443 मीट्रिक टन होता है जिसमें आम, आंवला, नींबू, अमरूद, पपीता, अनार, चीकू तथा अन्य हैं. आम उत्पादन के क्षेत्र को देखें तो जिले के कुल फल उत्पादन क्षेत्र 3 हजार 480 हेक्टेयर में से 3 हजार 115 हेक्टेयर में आम का उत्पादन होता है, जो कि कुल फलोत्पादन क्षेत्र का 90 प्रतिशत है. इसी प्रकार फलों के कुल 45 हजार 443 मीट्रिक टन उत्पादन के मुकाबले सिर्फ आम का उत्पादन 39 हजार 120 मीट्रिक टन है, जो कुल फलोत्पादन का 86 प्रतिशत है. इस उत्पादन में स्थानीय स्तर पर छोटे किसानों द्वारा किया जाने वाला उत्पादन शामिल नहीं है.
आम के पापड़ की भी है खास पसंद
गर्मियों के दिनों में जैसे ही देशी आमों की आवक शुरू हो जाती है वैसे ही आम के रस से बने हुए पापड़ बनना भी शुरू हो जाते हैं. इसकी इतनी अधिक मांग होती है कि जितना पापड़ बनता है वह हाथों हाथ ही बिक जाता है. विदेशों में रहने वाले वागड़ वासियों को भी आम के पापड़ विशेष पसंद हैं इसलिए वह भी यहां से आम के पापड़ मंगवाते हैं.
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