Bundi: मथुरा-वृंदावन में मुगलों के तोड़े मंदिर के टुकड़ों से बना बूंदी का गोपाललाल जी का मंदिर, 600 साल से हो रही पूजा 

पुजारी मधुसूदन ने बताया कि सन 1669 में जब मथुरा-वृंदावन में मुगलों ने मंदिरों को तोड़ा गया था. इसी बीच गोस्वामी महाराज दो टुकड़े लेकर राजस्थान लेकर आए थे. जिनमें एक मथुराधीश और दूसरा गोपाल लाल जी की मूर्ति थी. यहां उन्हें छुपा कर रख दिया और उनकी पूजा की जाने लगी.

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Rajasthan News: देश में जन्माष्टमी का पर्व की बड़े धूमधाम से मनाया जा रहा है. वहीं राजस्थान के बूंदी जिले में गोपाल लाल जी के मंदिर में पिछले 600 सालों से हर वर्ष जन्माष्टमी का भव्य आयोजन होता है. यह मंदिर बूंदी के बालचंद पाड़ा क्षेत्र में है. इस मंदिर को अंतरराष्ट्रीय पुष्टिमार्ग बल्लभ संप्रदाय के प्रथम पीठ के रूप में जाना जाता हैं. सरकार ने धार्मिक विभाग बनाकर इस मंदिर को अपने कब्जे में ले रखा है. मंदिर की देखरेख राजस्थान देवस्थान विभाग द्वारा की जाती है.

गोपाल लाल का मंदिर का इतिहास

साथ ही पुजारी मधुसूदन ने बताया कि सन 1669 में जब मथुरा-वृंदावन में मुगलों ने मंदिरों को तोड़ा गया था. इसी बीच गोस्वामी महाराज दो टुकड़े लेकर राजस्थान लेकर आए थे. जिनमें एक मथुराधीश और दूसरा गोपाल लाल जी की मूर्ति थी. यहां उन्हें छुपा कर रख दिया और उनकी पूजा की जाने लगी. किसी को पता नहीं लगे इसलिए मंदिर में घंटियां नहीं लगाई गई थीं. गोस्वामी जी महाराज ने बूंदी के राजाओं को इसके बारे में बताया इसके बाद उन्होंने यहां भव्य मंदिर बना कर भगवान गोपाल लाल की स्थापना की थी. 

300 सालों बाद कोटा गए मथुराधीश

समिति अध्यक्ष पुरुषोत्तम पारीक ने बताया कि करीब 300 सालों तक बूंदी में मथुराधीश रहे और उनकी मूर्ति की स्थापना की थी जिसके बाद बूंदी में उनका विशाल मंदिर बनाया गया. कुछ समय बाद उन्हें कोटा ले जाया गया था जहां उनका भव्य मंदिर बना कर उन्हें पूजा जाने लगा.150 साल से कोटा में मथुराधीश जी महाराज का मंदिर स्थापित है. 

मंदिर के विकास की मांग

श्रद्धालु देवेंद्र सरोया ने बताया कि पुराने समय में आक्रमण के डर से मंदिर का ज्यादा विकास नहीं था. लोगों को भी इस मंदिर के बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं है. अब जिस प्रकार से सरकार मंदिरों का विकास कार्य करवा रही है, तो बूंदी के गोपाल लाल मंदिर का भी विकास होना चाहिए. 

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