अजमेर के इस स्कूल की बदहाली ऐसी कि ना रेगुलर टीचर और ना कार्मिक, हैरान कर देगी ये तस्वीर

Ground Report: इस स्कूल में कक्षा 1 से लेकर 5वीं तक कुल 35 छात्र-छात्राएं रजिस्टर्ड हैं, हालांकि कभी 15 से ज्यादा विद्यार्थी स्कूल नहीं आए. स्कूल के लिए मुकेश पुरी गोस्वामी ने बिल्डिंग दान की थी. लेकिन रेगुलर शिक्षक नहीं होने के चलते यहां शिक्षण व्यवस्था के हालात बेहद खराब है.

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Ajmer News: राजस्थान के अजमेर में एक ऐसा स्कूल, जहां ना तो स्थायी शिक्षक है और ना ही कार्मिक. यहां डेपुटेशन पर लगी महिला शिक्षिका खुद ही स्कूल का ताला खोलती है और क्लास लेने के बाद बंद करके चली जाती है. शिक्षा व्यवस्था की पोल-खोलती यह तस्वीर अजमेर के भगवानगंज स्थित मुकेश पुरी गोस्वामी राजकीय प्राथमिक विद्यालय की है. बिना किसी नियमित शिक्षक के चल रहा का स्कूल इन्हीं दो महिला शिक्षिकाओं के भरोसे हैं. यह स्कूल सुबह 7 बजे से 1 बजे तक चलता है. सुबह करीब 7:15 बजे स्कूल की शिक्षिका नीलम सामरिया आती हैं और स्कूल का गेट खोलने के बाद विद्यार्थियों का इंतजार करती नजर आती हैं. सुबह 7:30 बजे तक बच्चों का आना धीरे-धीरे शुरू हो जाता है. NDTV राजस्थान की ग्राउंड जीरो से रिपोर्टिंग के दौरान इस स्कूल की चौंकाने वाली स्थिति सामने आई.

दान में मिली बिल्डिंग के एक कमरे में लगती है 5 क्लास

यही नहीं, इस स्कूल में कक्षा 1 से लेकर 5वीं तक कुल 35 छात्र-छात्राएं रजिस्टर्ड हैं, हालांकि कभी 15 से ज्यादा विद्यार्थी स्कूल नहीं आए. स्कूल के लिए मुकेश पुरी गोस्वामी ने बिल्डिंग दान की थी. लेकिन रेगुलर शिक्षक नहीं होने के चलते यहां शिक्षण व्यवस्था के हालात बेहद खराब है.

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शिक्षिका नीलम सांवरिया ने बताया कि उन्होंने पिछले महीने से स्कूल में ज्वॉइनिंग की थी. यहां पढ़ने वाले सभी विद्यार्थी ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते हैं, जिनका परिवार गरीबी रेखा से नीचे हैं. इनके अभिभावक मजदूरी, ठेला चलाना या जूते पॉलिश आदि काम करते हैं. हालांकि सरकार की ओर से स्कूल ड्रेस, पोषाहार और पाठ्य पुस्तक तो फ्री में उपलब्ध हो जाती है, लेकिन अभिभावक स्कूल भेजने से पहले ही बच्चों को घर में अकेला छोड़कर काम पर चले जाते हैं.  

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ना शिक्षक और ना ही स्कूल में फर्नीचर 

इस स्कूल में फंड की कमी होने के चलते फर्नीचर की भी व्यवस्था नहीं हो पा रही है. सरकार की ओर से ट्रांसफर पर रोक होने के चलते शिक्षक की भी पोस्टिंग नहीं हुई हैं. समाजसेवी प्रेमचंद का कहना है कि यहां लोगों की इतनी आय नहीं है कि वह अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेज सके. पिछले कई वर्षों से यह स्कूल संचालित हो रही है. सरकार और प्रशासन से क्षेत्रवासी लगातार मांग कर रहे हैं कि स्कूल में सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए, ताकि उनके बच्चों को नियमित शिक्षा मिल सके. 

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