इंटरनेशनल मार्केंट में एक लाख रुपए प्रति क्विंटल तक बिकने वाले अमेरिकी सुपर फूड Quinoa की खेती राजस्थान में, फिर भी किसान निराश

American Super Food Quinoa: इंटरनेशनल मार्केंट में एक लाख रुपए प्रति क्विंटल तक बिकने वाले अमेरिकी सुपर फूड किनोवा (Quinoa) की खेती राजस्थान में भी हो रही है. किनोवा मदर ग्रेन अनाज माना जाता है. इसमें अंडा और गाय के दूध से भी अधिक आयरन होता है.

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अमेरिकी सुपर फूड Quinoa की खेती राजस्थान में.

American Super Food Quinoa: ऊपर तस्वीर में आप जिस अनाज को देख रहे हैं, यह अमेरिकी सुपर फूड किनोवा (Quinoa) है. वानस्पतिक नाम चिनोपोडियम क्विनवा है. लेकिन उच्चारण दोष के कारण इसे किनोवा कहते हैं. पहले-पहल इसकी पैदावार अमेरिका में एन्डीज की पहाड़ियों हुआ करती थी. लेकिन अब धीरे-धीरे इसकी खेती दुनिया के अन्य हिस्सों में भी होने लगी है.  संयुक्त राष्ट्र संघ के कृषि एवं खाद्य संगठन (FAO) ने वर्ष 2013 को अंतरराष्ट्रीय किनोवा वर्ष घोषित किया था. धीरे-धीरे इसकी खासियतें भारत तक पहुंची तो अब इसकी खेती राजस्थान में होने लगी है. किनोवा को प्रोटीन का बेहतरीन स्रोत माना जाता  है, साथ ही यह शरीर में वसा कम करने, कोलस्ट्रॉल घटाने और वजन कम करने में भी बेहद कारगर है. 

इंटरनेशनल मार्केंट में एक लाख रुपए प्रति क्विंटल

किनोवा की इन्हीं खासियतों को कारण इंटरनेशनल मार्केंट में इसकी कीमत लाखों में है. उच्च क्वालिटी की किनोवा इंटरनेशनल मार्केट में एक लाख से एक लाख 20 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक बिकती है. यह पत्तेदार सब्जी बथुआ (Chenopodium Album) की प्रजाति का सदस्य पौधा है. इसकी बीज में प्रोटीन, आयरन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है. ऐसे में एलीट क्लास के लोगों के खाने में किनोवा शामिल हैं. 

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राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में लहलहाती अमेरिकी सुपर फूड किनोवा की फसल.

राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में हो रही खेती

बीते कुछ साल से किनोवा की खेती राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में भी की जाने लगी है. इस साल भी प्रतापगढ़ के 5-7 किसानों ने किनोवा की खेती है. पिछले सीजन में जिन किसानों ने किनोवा की बुवाई की थी. वो इन दिनों फसल की कटाई और थ्रेसिंग में जुटे है. पानमोड़ी के किसान ब्रजेश कुमार पाटीदार ने बताया कि सामान्यता किनोवा ग्रीष्म ऋतु की फसल है. लेकिन जिले में इसे सर्दी में बुवाई अधिक की जाने लगी है. 

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किसान बोले- किनोवा की देखरेख बेहद आसान

किनोवा की खेती करने वाले किसान ब्रजेश ने बताया कि अधिक पैदावार के लिए रात में सर्दी और दिन में अधिक तापमान की आवश्यकता होती है. इस फसल में विशेष देखरेख की जरूरत नहीं होती है. सामान्य फसल की तरह है. इसमें सूखा, पाला सहन करने की क्षमता होती है. इसके पौधे कीट और रोग का हमला सहन करने की क्षमता होती है. परम्परागत फसलों से अधिक आय प्राप्त की जा सकती है. 

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किनोवा के दानों में कैल्शियम और आयरन की प्रचूरता

किनोवा को विदेश में सुपर फुड कहा जाता है. इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक रहती है. इसके दाने में कैल्शियम और आयरन जैसे महत्वपूर्ण खनिज पाए जाते है. इसके पत्ते भी सब्जी के रूप में भी उपयोग लेते है. पत्तियों में भी पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी व ई पाई जाती है. किनोवा में गेहूं से लगभग डेढ़ गुणा अधिक मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है.

किनोवा के दाने, जिनमें कैल्शियम और आयरन प्रचूर मात्रा में होते हैं.

किनोवा को कैसे खाया जा सकता है

किनोवा को चावल की भांति उबालकर खाया जा सकता है. दाने से आटा व दलिया बनाया जाता है. सूप, पूरी, खीर, लड्डू तथा मीठे व नमकीन व्यंजन बनाए जाते है. इसमें गेहूं व मक्का का आटा मिलाकर ब्रेड, बिस्किट, पास्ता आदि बनाए जा सकते है. इस दाने के निरंतर प्रयोग से भारत में कुपोषण की समस्या से निजात मिल सकती है. यह शुगर के रोगियों के लिए काफी फायदेमंद है.

किसानों के अनुसार किनोवा की फसल प्रति बीघा 4 से सात किवंटल तक हो जाती है. अरनोद के किसान भंवरलाल कुमावत ने बताया कि उन्होंने पांच बीघा में फसल पहली बार बोई है. इसकी कटाई चल रही है. फसल की थ्रेसिंग के बाद 6 किवंटल प्रति बीघा उपज आई है. 

किनोवा के किसान निराश क्यों

अब आप सोच रहे होंगे जिले मल्टीग्रेन अनाज किनोवा की कीमत इतनी अच्छी है, उपज इतनी अच्छी है, उसके किसान निराश क्यों है. किसानों की निराशा की वजह है पास में मंडी नहीं होगा. दरअसल किनोवा के खरीददार देश में सीमित है. दिल्ली और हैदराबाद में किनोवा के दो बड़े सेंटर है, जहां से इसे विदेशों में भेजा जाता है.

बात प्रतापगढ़ के किसानों की करें तो वो इसे मध्यप्रदेश के नीमच या चित्तौड़गढ़ के निंबोहड़ा मंडी में जाकर बेचते हैं. लेकिन इन मंडियों में किसानों को इंटरनेशनल मार्केंट की कीमत से काफी कम प्राइस मिलती है. किनोवा उपजाने वाले किसान ब्रजेश कुमार पाटीदार ने बताया कि हमे किनोवा साढ़े तीन से चार हजार रुपए प्रति क्विंटल की दर पर बेचना होता है. जबकि इसी की कीमत विदेशों में हजारों में है. किसानों ने मांग की है यदि उन्हें विदेशी मंडियों से लिंक कर दिया जाए तो वो भी अच्छी कमाई कर सकते हैं.

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