Anta By Election Result: मंत्री होटलों में रहे, कार्यकर्ता 'मुंह दिखाई' में व्यस्त! अंता में BJP की हार का सबसे बड़ा कारण, पढ़िए इनसाइड स्टोरी

Pramod Jain Bhaya Won Anta By Election: प्रमोद भाया के सामने बीजेपी की रणनीति कारगर नहीं रही. सियासी जानकार अंता उपचुनाव में हार के पीछे कई खामियां बता रहे हैं.

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BJP candidate Morpal Suman defeat in Anta Bypoll result 2025: भारतीय जनता पार्टी ने अंता के उपचुनाव में कोशिश तो की, लेकिन वह कोशिश बेहतर नतीजे के रूप में सिरे नहीं चढ़ पाई. पार्टी ने लगातार जनसंपर्क किया, मजबूत रणनीति बनाने की कोशिश की, दो रोड शो भी किए और लेकिन कई खामियां भी रख दी. पार्टी की रणनीति पर खामियां भारी पड़ी और इन खामियों का नतीजा यह रहा कि सत्ताधारी पार्टी अंत के उपचुनाव में दूसरे नंबर के लिए संघर्ष करती दिखी. भारतीय जनता पार्टी ने अंता के उपचुनाव में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के दो रोड शो कराए. हालांकि पहले मुख्यमंत्री का एक ही रोड शो करना प्रस्तावित था, लेकिन पहले रोड शो को मिले रिस्पांस के बाद चुनाव उठा तो पार्टी में भी उत्साह आया. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने सीएम भजनलाल शर्मा से दूसरे रोड शो के लिए भी बात की. मुख्यमंत्री भी सीट जीतना चाहते थे, इसलिए उन्होंने तत्काल हामी भर दी. 

प्रमोद जैन भाया के गढ़ में ही हुआ पहला रोड शो

बीजेपी ने पहला रोड शो, प्रमोद जैन भाया के गढ़ मांगरोल में किया. दूसरा रोड शो, अंता में चुनाव प्रचार के आखिरी दिन हुआ. पहले रोड शो में गाड़ी पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे दोनों ने मोरपाल सुमन के हाथ थाम लिए, लेकिन जनता ने सुमन का साथ नहीं दिया. दूसरे रोड शो में बीजेपी के प्रदेश के अध्यक्ष मदन राठौड़ भी मुख्यमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री के साथ मोरपाल के रथ पर सवार थे. इससे पहले मदन राठौड़ ने चुनावी दौरा भी किया. अलग-अलग जगह जनसंपर्क भी किया और कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर फील्ड में जाने के निर्देश दिए.

रणनीतिकार कितने कारगर रहे?

बीजेपी ने चुनाव में रणनीति की जिम्मेदारी पांच बार के सांसद दुष्यंत सिंह के साथ अनुभवी नेता और संसदीय कार्य मंत्री जोगाराम पटेल को जिम्मेदारी सौंपी. इनके सहयोग के लिए स्थानीय नेता गणेश माहुर को जिम्मा सौंपा गया. जोगाराम पटेल अनुभवी हैं, तो दुष्यंत सिंह भी बारां–झालावाड़ से पांचवीं बार के सांसद हैं. इसके साथ ही मंत्रियों की भी ड्यूटी अंता चुनाव में लगाई गई थी.

पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी 35 साल से ज्यादा समय से बारां और झालावाड़ जिले की जनता से जुड़ी हुई है. उन्होंने भी लगातार संपर्क किया, चुनावी रणनीति की मॉनिटरिंग की. बीजेपी की भरोसेमंद चुनाव टीम इस अभियान में सक्रिय थी, लेकिन अनुभवी टीम भी बेहतर चुनाव नतीजे की शक्ल में अपनी रणनीति को नहीं ढाल पाई.

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मंत्री होटल में, मोरपाल जनसंपर्क में, कार्यकर्ता फील्ड में  

अभियान में लगाए अधिकांश मंत्री ऐसे थे, जो हर शाम कोटा आकर रुकते थे या फिर जिला मुख्यालय बारां में ठहरते थे. टीम में जिम्मेदार लोग सुबह से चुनाव रणनीति के क्रियान्वयन में लगते थे, लेकिन कुछ चेहरे ऐसे भी रहे, जो सुबह 11 बजे तक अंता विधानसभा क्षेत्र में ही नहीं पहुंचते थे. कई मंत्रियों के चुनाव संपर्क के जारी कार्यक्रमों में तो सुबह 11 से शाम 5 बजे तक के जनसंपर्क का जिक्र होता था. कार्यकर्ताओं को ऐसा लगता था, जैसे वह चुनाव में नहीं बल्कि ऑफिस टाइम के हिसाब से काम कर रहे हैं.

इन्हें सौंपी गई थी उपचुनाव की जिम्मेदारी

नेता और कार्यकर्ताओं में मुंह दिखाई की राम की होड़  

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे ने कार्यकर्ताओं को निर्देश दे रखे थे कि वह ज्यादा से ज्यादा समय फील्ड में रहें. निर्देश यह भी दिए गए कि गया था कि जनता के बीच जाकर पार्टी की रीति-नीति का जिक्र हो और सरकार की उपलब्धियों का प्रचार किया जाए. लेकिन इन सब के बावजूद कुछ नेताओं ने केवल 'मुंह दिखाई' की रस्म अदायगी ही की. चुनाव जीतने से ज्यादा स्थानीय नेताओं की कवायद प्रदेश नेतृत्व की नजर में आने की ही रही. 

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दूसरी तरफ, कांग्रेस ने जमीन पर मैन टू मैन मार्किंग और दिग्गज नेताओं के जरिए जनसंपर्क के जरिए प्रचार अभियान को गति दी. टीकाराम जूली जैसे दिग्गज नेताओं ने खुद ही छोटे-छोटे गांवों और ढाणियों में अकेले जाकर मतदाता से जनसंपर्क किया.

टिकट चयन और प्रचार रणनीति में भी दिखी खामियां

इस पूरे मामले में उम्मीदवार चयन पर भी सवाल उठ रहे हैं. इसका सबसे बड़ा असर हुआ कि अंता में टिकट के प्रबल दावेदार माने जाने वाले पूर्व मंत्री प्रभु लाल सैनी भी प्रचार में नहीं दिखे. सरकार के मंत्री मदन दिलावर अभी कोटा जिले की रामगंज मंडी सीट से विधायक हैं. पहले वे बारां जिले की बारां–अटरू विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं. अंता के जातिगत समीकरण के लिहाज से एससी समाज से आने वाले दिलावर की गैर-मौजूदगी के मायने निकाले जा रहे हैं. 

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वहीं, एसटी वर्ग के प्रभाव के चलते डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा और अन्य नेताओं को भी प्रचार में उतारा गया, लेकिन उसका असर नहीं दिखा. हीरालाल नागर की जमीन से दूरी और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की भी वीडियो के माध्यम से अपील नाकाफी रही. 

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