'एक देश, एक चुनाव' पर अर्जुनराम मेघवाल ने विपक्ष को घेरा, 1952 से लेकर 1967 चुनाव का दिया उदाहरण

विपक्ष के रवैये पर आगे सवाल उठाते हुए मेघवाल ने कहा कि अब, जब प्रधानमंत्री मोदी सुधार ला रहे हैं, तो इसे चुनाव सुधार क्यों नहीं माना जाना चाहिए?

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फाइल फोटो

Rajasthan News: केंद्रीय कानून एवं न्याय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने शनिवार को राजस्थान में ‘एक देश, एक चुनाव' को लेकर बड़ा बयान दिया. उन्होंने यहां पर एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी के नए एकडमिक सेशन के उद्घाटन के मौके पर क देश, एक चुनाव पर कहा कि  केंद्र सरकार इस व्यवस्था को लागू करने के लिए कृत संकल्पित है. विपक्ष के रुख पर सवाल उठाते हुए कहा मेघवाल ने कहा कि जब 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे, तो क्या यह संघीय ढांचे पर हमला नहीं था? तब चुनाव बिना किसी समस्या के सुचारू रूप से संपन्न हुए थे.

'चुनाव सुधार को क्या नहीं माना जाना चाहिए'

विपक्ष के रवैये पर आगे सवाल उठाते हुए मेघवाल ने कहा कि अब, जब प्रधानमंत्री मोदी सुधार ला रहे हैं, तो इसे चुनाव सुधार क्यों नहीं माना जाना चाहिए? उन्होंने कहा कि इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया, जो अभी संयुक्त संसदीय समिति के पास विचाराधीन है और इस पर विभिन्न सामाजिक संगठनों से विचार-विमर्श किया जा रहा है.

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 ‘एक देश, एक चुनाव' को निर्वाचन आयोग, हमारी समितियों, नीति आयोग के समूह और फिर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी उच्च स्तरीय समिति ने अपनी सहमति दी है और केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भी इसे मंजूरी दे दी है. भारत का लोकतांत्रिक ढांचा इसकी चुनावी प्रक्रिया की जीवंतता पर पनपता है, जिससे नागरिक हर स्तर पर शासन को सक्रिय रूप से आकार दे पाते हैं.

आजाद के बाद से अब तक 400 से अधिक चुनाव हुए

आजादी के बाद से अब तक लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के 400 से अधिक चुनावों ने भारत के चुनाव आयोग की निष्पक्षता और पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया है. हालांकि, चुनावों की खंडित और लगातार प्रकृति ने अधिक कुशल प्रणाली की आवश्यकता पर चर्चा को जन्म दिया है. इससे "एक राष्ट्र, एक चुनाव" की अवधारणा में रुचि फिर से जागृत हुई है.

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