Bach Baras 2024: बछ बारस का त्योहार आज, राजस्थान में अलसुबह माताओं ने की गाय व बछड़े की पूजा, जानें पर्व का महत्व

Bach Baras Celebration in Jaisalmer: राजस्थान के जैसलमेर में शुक्रवार सुबह 5 बजे से बछ बारस के त्योहार की धूम देखने को मिली. यह त्योहार महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए मनाती हैं.

Advertisement
Read Time: 3 mins

Bach Baras Kya Hai: पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर (Jaisalmer) में आज भी परंपराओं का निर्वहन होता है. विभिन्न दंत कथाओं पर आधारित त्योहार पूरे विधि-विधान से मनाए जाते हैं. उन्ही में से एक खास त्योहार बछ बारस (Bachh Baras 2024) का है. यह त्योहार माताओं द्वारा अपने पुत्र के लंबी उम्र व स्वस्थ जीवन के लिए मनाया जाता है. परंपराओं के अनुसार, आज के दिन उस गाय की पूजा की जाती है, जिस गाय को बेटा यानी बछड़ा हो. 

आज दूध से बनी प्रोडेक्ट का सेवन नहीं

आज जैसलमेर शहर सहित जिले भर में बछ बारस के त्योहार को धूमधाम से मनाया जा रहा है. अल सुबह महिलाओं ने गाय व बछड़े की पूजा की. विधिवत पूजा करने के बाद अब दिन भर महिलाएं पर्व के रिवाज के अनुसार खान पान करेंगी. बुजुर्गों के अनुसार, बछ बारस की पूजा केवल बेटों की माताएं ही करती हैं. इस दिन महिलाएं गाय के दूध से बनी किसी भी प्रोडेक्ट का सेवन नहीं करती हैं. साथ ही लोहे से काटा गया व गेहूं का उपयोग भी नहीं करती हैं. महिलाएं बाजरे की रोटी खाती हैं. भैंस या बकरी के दूध का तथा अंकुरित धान का उपयोग करती हैं. 

Advertisement

पूजन के बाद कथा सुनती हैं महिलाएं

इस पर्व की शुरुआत सैकड़ों वर्षो पहले हुई. पूजा करने आई माता समता व्यास ने बताया कि पहले गेहूं के खींच को गेहूंला कहते थे और गाय के बछड़े को गउला कहा जाता था. इसका उचारण एक समान था. एक महिला ने एक नई विवाहित बालिका कों गेहूला देगची (खाना बनाने का पात्र) में चढ़ाने को बोला, लेकिन नादान बालिका ने भूलवश गर्म पानी के बर्तन में गाय के बछड़े यानी गउला को डाल दिया. जब सास ने यह देखा तो हैरान रह गई. तभी भगवान ने उस बछड़े की रक्षा कर उसे बचाया. तभी से बेटे की मां अपने पुत्र की रक्षा के लिए गाय व उसके बछड़े को पूजती है. ऐसी कई कथाएं इस त्योहार से जोड़कर कही जाती हैं. पूजन के बाद महिलाए एक साथ बैठकर कथा सुनती हैं. कहते हैं कि नवविवाहित जोड़े या गर्भ धारण कर चुकी महिलाएं भी यह पूजन कर सकती हैं, ताकि उन्हें पुत्र प्राप्ति हो.

Advertisement

ये भी पढ़ें:- राजस्थान के इस महल में बिना बिजली-मोटर चलते हैं 2000 रंगीन फव्वारे