खादी को समर्पित खानदान, माता-पिता के बाद 5 बहनों ने भी पकड़ी गांधी दर्शन की राह

माता-पिता के तमाम प्रयासों के बाद भी डॉ. वीरबाला, भारती और कृष्णा ने विवाह करने से इंकार कर दिया और अपना पूरा जीवन खादी और गांधी दर्शन के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित कर दिया.

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Rajasthan News: खादी का नाम आते ही हमारे सामने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर उभरकर सामने आती है. गांधी ने रोजगार के लिए खादी का महत्व समझा और इसे अपने जीवन का एक प्रमुख अंग बना दिया. गांधी के जीवन दर्शन से प्रभावित होकर बांसवाड़ में आज भी एक परिवार ऐसा है, जो पूरी तरह खादी में रमा हुआ है. इस परिवार ने अपने जीवन का आधार खादी को ही बना लिया है. बचपन से ही माता-पिता का खादी के प्रति प्रेम देख बड़ी हुईं बेटियों ने भी खादी को ही अपनाया. पांचों बहनों का खादी के लिए लगाव अब भी बना हुआ है. 

चारों बहनें खुद करती हैं अपना काम

इन बहनों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों के साथ-साथ अपने माता पिता के संस्कारों का भी असर रहा कि बड़े-बड़े पद पर रहने के बावजूद उम्र के अंतिम पड़ाव में भी चारों ही बहनें अपना काम खुद ही करती हैं. हम बात कर रहे हैं वागड़ अंचल के प्रमुख स्वतंत्रा सेनानी धूलजी भाई भावसार के परिवार की. धूलजी महात्मा गांधी के जीवन दर्शन से काफी प्रभावित रहे और अहमदाबाद चले गए. 

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विधवा महिला से किया विवाह 

गांधी के आदेश पर धूलजी भाई ने खादी का काम संभाला. खादी को आकर्षक बनाने में धूलजी भाई ने कोई कसर बाकी नहीं रखी. उसी का नतीजा रहा कि खादी को लेकर वह एक आदर्श बन गए. गांधी के आदर्शों से वे इतने प्रभावित थे कि साबरमती आश्रम में विजया देवी से विवाह कर लिया जबकि वे विधवा थी. धूलजी जी भाई का अधिकांश जीवन अहमदाबाद में ही बीता और उनका बांसवाड़ा आना जाना रहा.

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धूलजी भाई 1952 में रहे विधायक 

विजया देवी ने बांसवाड़ा में खादी के कारोबार को बढ़ाया. बेटी मृदुला, वीर बाला खादी की बुनाई कताई में उनका हाथ बटांती. बाद में भारती वसुंधरा और कृष्णा भी अपने माता-पिता के साथ खादी के काम में लग गई. 1945 में धूलजी भाई ने शांतिलाल भावसार, चंद्रशेखर शर्मा, और अपनी पत्नी विजय देवी के साथ बांसवाड़ा में सूत रंगाई और खादी का काम शुरू किया. आजादी के बाद जब विधानसभा चुनाव हुए तो धूलजी भाई 1952 में घाटोल विधानसभा से चुन लिए गए.

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तीन बहनों ने नहीं की शादी 

इसके बाद मृदुला और वसुंधरा का विवाह हुआ और वे जयपुर और अहमदाबाद चली गई. माता-पिता के तमाम प्रयासों के बाद भी डॉ. वीरबाला, भारती और कृष्णा ने विवाह करने से इंकार कर दिया और अपना पूरा जीवन खादी और गांधी दर्शन के प्रचार प्रसार के लिए समर्पित कर दिया. माता-पिता के निधन के बाद तीनों ही बहने अपने पैतृक मकान में रहने लगी. डॉ. वीरबाला का पिछले साल निधन हो गया. 

आज तक नहीं पहना सिला हुआ कपड़ा 

कृष्णा भावसार के अनुसार हम पांचों ही बहनों ने खादी में जन्म लिया. ऐसे में जरूरत की हर वस्तु में खादी को महत्व देना नहीं भूलती. यहां तक कि हमने आज तक कोई सिला हुआ कपड़ा तक नहीं पहना. सिलाई भी हम खुद अपने स्तर पर करते हैं. वहीं 76 वर्षीय भारती भावसार ने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में खादी के अलावा और कुछ नहीं देखा. गांधी दर्शन के अलावा खादी से संबंधित कोई भी कार्यक्रम हो हमें वहां पर आमंत्रित किया जाता है. हमारा पूरा मिशन खादी और गांधी दर्शन को लोगों तक पहुंचना है.

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