पितृ पक्ष की शुरुआत: पूर्वजों के लिए तर्पण, श्राद्ध अनुष्ठान शुरू, जानें क्या है इसकी मान्यता

भाद्रपद पूर्णिमा के साथ देशभर में पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई, जो 2 अक्टूबर तक चलेगा. तीर्थराज मचकुंड और विभिन्न नदियों पर श्रद्धालुओं ने अपने पूर्वजों को तर्पण और श्राद्ध किया.

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Pitru Paksha 2024: देश के कई हिस्सों में 11 बजकर 44 मिनट पर भाद्रपद की पूर्णिमा लगने पर पितृपक्ष की भी शुरुआत हो गई. ऐतिहासिक तीर्थराज मचकुंड एवं जिले की सभी पवित्र नदियों पर लोगों ने आस्था पूर्वक पितरों को तर्पण किया है. 2 अक्टूबर तक पितृ पक्ष चलेगा,  तब तक लोगों के मांगलिक कार्यक्रम भी बंद रहेंगे. मान्यता के अनुसार, पितृ पक्ष में पूर्वजों को तर्पण, श्राद्ध और पिंड दान करने से उनका आशीर्वाद मिलता है, और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.

पूर्णिमा लगते ही पितृ पक्ष की शुरुआत

आचार्य राजेश शास्त्री ने बताया कि हिंदू संस्कृति में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व है, जो भाद्र मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से शुरू होता है और अश्विन मास की अमावस्या तक चलता है. उन्होंने बताया मंगलवार को 11:44 पर पूर्णिमा की शुरुआत हुई है. पूर्णिमा लगते ही पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई. उन्होंने बताया पितृपक्ष में विभिन्न तिथियों में पूर्वजों को प्रतिदिन जल तर्पण करते हुए गुजरे हुए पूर्वजों की पुण्यतिथि वाले दिन श्राद्ध करने का प्रावधान है.

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हिंदू संस्कृति में श्राद्ध पक्ष का विशेष महत्व

इसी को लेकर मंगलवार से शुरू हुए श्राद्ध पक्ष में जलाशयों और नदियों के किनारे परिवार के लोग पहुंचकर पूर्वजों को जल तर्पण कर रहे हैं. तीर्थराज मचकुंड पर जल तर्पण को लेकर हिंदू संस्कृति में श्राद्ध पक्ष का विशेष प्रावधान है. ऐसे में प्रत्येक हिंदू परिवार को अपने पूर्वजों का श्राद्ध करना चाहिए और उन्हें जल तर्पण अवश्य करना चाहिए. उन्होंने बताया कि यदि नदी किनारे तर्पण करने में परेशानी हो तो घर पर भी जल तर्पण किया जा सकता है.

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पिंडदान का महत्व

श्राद्ध पक्ष के दिन तीर्थराज मचकुंड के साथ विभिन्न जलाशयों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने तर्पण किया. आचार्य राजेश शास्त्री ने बताया पितृपक्ष के 16 दिनों की अवधि के दौरान सभी पूर्वज अपने परिजनों को आशीर्वाद देने के लिए पृथ्वी पर आते हैं. उन्हें प्रसन्न करने के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंड दान किया जाता है. इन अनुष्ठानों को करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे किसी व्यक्ति के पूर्वजों को उनके इष्ट लोकों को पार करने में मदद मिलती है. वहीं जो लोग अपने पूर्वजों का पिंडदान नहीं करते हैं, उन्हें पितृ ऋण और पितृदोष सहना पड़ता है.

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पात्र को भोजन कराकर दक्षिणा अवश्य दें

आचार्य राजेश शास्त्री ने बताया पितृ पक्ष में पूर्वज का जिस तिथि में निधन होता है, उसी दिन श्राद्ध किया जाता. श्रद्धा के समय पकवान और व्यंजन बनाकर पात्र या ब्राह्मण को भोजन अवश्य कराना चाहिए. भोजन कराने के बाद शास्त्रों में दक्षिण का भी प्रावधान बताया गया है. ऐसा करने से पितरों को दैहिक, दैविक और भौतिक तीनों संतापों से मुक्ति मिलती है.

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