Bishnoi: बिश्नोई कौन हैं - गुरु जंभेश्वर के प्रकृतिपूजक समाज की पूरी कहानी

यह विडंबना है कि लॉरेंस बिश्नोई के गैंग की वजह से जिस समाज का नाम इन दिनों सुर्खियों में बना रहता है उस समाज का आधार अहिंसा है.

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Bishnoi : बिश्नोई - यह नाम इन दिनों अपराध की वजह से चर्चा में है. पिछले कुछ वर्षों से बिश्नोई गैंग का बड़ा नाम आ रहा है. दो साल पहले पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला (Sidhu Moose Wala) की हत्या के समय इस गैंग का नाम सुर्खियों में आया था, जब इस हत्या में कनाडा स्थित अपराधी गोल्डी बराड़ और जेल में बंद उसके साथी लॉरेंस बिश्नोई (Lawrence Bishnoi) का हाथ बताया गया. पिछले साल अप्रैल में मुंबई में अभिनेता सलमान ख़ान के घर के बाहर गोलीबारी के मामले में भी बिश्नोई गैंग का नाम आया था. पिछले साल अप्रैल में राजस्थान में श्री राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी (Sukhdev Singh Gogamedi) की हत्या के तार भी बिश्नोई गैंग से जुड़े थे.

मगर यह अपने आप में विडंबना है कि जिस समाज का नाम एक आपराधिक गैंग की हिंसा की वजह से चर्चा में है, उस की पहचान अहिंसा है, और अहिंसा में अपनी अटूट आस्था की वजह से बिश्नोई समाज ने इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया है. 

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बिश्नोई समाज को भी अपनी इस ऐतिहासिक पहचान की चिंता है, और इसलिए इस समाज ने लॉरेंस अपराधी के गैंग को बिश्नोई गैंग कहे जाने पर चिंता जताई है. इस समाज की ओर से आवाज़ उठती रही है कि इस गैंग को लॉरेंस गैंग कहा जाना चाहिए, ना कि बिश्नोई गैंग.

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बिश्नोई कौन हैं

बिश्नोई हिंदू हैं. उनका एक अलग पंथ है. वो खुद को बिश्नोई कहते हैं. वो ऐसा क्यों कहते हैं इसका भी एक इतिहास है, जो जुड़ा है इस पंथ के प्रवर्तक गुरु जंभेश्वर जी महाराज से.

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गुरु जंभेश्वर कौन थे

गुरु जंभेश्वर जी महाराज एक संत और दार्शनिक थे. आज से 573 साल पहले, वर्ष 1451 में, राजस्थान के नागौर ज़िले के पीपासर गांव में उनका जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम लोहाट जी पंवार और माता का नाम हंसा देवी था.

गुरु जंभेश्वर धार्मिक प्रवृत्ति के थे. गुरु जंभेश्वर भगवान के बारे में बताया जाता है कि वह लगभग 7 साल तक मौन रहे. इसलिए इन्हें बचपन में गूंगा नाम से भी पुकारा जाता था. वह जब सिर्फ़ सात साल के थे तब लोगों को उनकी चमत्कारी शक्तियों का अंदाज़ हुआ.

गुरु जंभेश्वर जी महाराज एक संत और दार्शनिक थे. आज से 573 साल पहले, वर्ष 1451 में, राजस्थान के नागौर ज़िले के पीपासर गांव में उनका जन्म हुआ था.

वह छोटे थे जब वह एक ऐसे ब्राह्मण से मिले जो बोल नहीं सकता था, और तब उन्होंने उससे कहा - गुरु चीन्हो, गुरु चीन्ह पुरोहित. यह सुन कर वह ब्राह्मण बोलने लगा. गुरु ने उस दिन जो कहा उसे उनका पहला शबद कहा गया. 

तब गांव के लोग उन्हें जंभाजी कहते थे. ऐसा कहा जाता है कि उनके अंदर प्रकृति को लेकर एक विशेष प्रेम था. इसके पीछे दो तरह के कारण बताए जाते हैं.

पहला ये कि उस दौर में उस क्षेत्र में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच राजनीतिक प्रभुत्व के लिए संघर्ष हो रहा था, और ऐसे में जंभाजी चाहते थे कि लोगों का ध्यान ऐसी बातों पर लगाया जाए जिससे उनमें नैतिकता की भावना मज़बूत हो. दूसरा कारण यह भी बताया जाता है कि तब उस क्षेत्र में लंबा सूखा पड़ा था और इसकी वजह से उनके मन में प्रकृति को बचाने का भाव आया.

Photo Credit: Manishbishnoi21

गुरु जंभेश्वर के 29 नियम

गुरु जंभेश्वर ने वर्ष 1485 में 34 साल की उम्र में एक अलग पंथ की शुरुआत की. इस पंथ में उन्होंने 29 नियम बनाए. इनमें से आठ प्रकृति और पशुओं के संरक्षण के बारे में हैं. जैसे, इनमें शिकार करने और पेड़ों को काटने पर रोक है.

सात नियम सामाजिक व्यवहार के बारे में हैं. दस नियम ख़ुद को साफ़-सुथरा रखने और स्वास्थ्य के बारे में है. और तीन नियम भगवान विष्णु की पूजा के बारे में हैं.

गुरु जंभेश्वर ने वर्ष 1485 में 34 साल की उम्र में एक अलग पंथ की शुरुआत की. इस पंथ में उन्होंने 29 नियम बनाए. इनमें से आठ प्रकृति और पशुओं के संरक्षण के बारे में हैं.

इन्हीं 29 नियमों से बिश्नोई समाज का नाम आया. तब 29 को उनतीस की जगह बिश (बीस) और नोई (नौ) कहा जाता था.

अगले 51 सालों तक गुरु जंभेश्वर ने अपनी इसी सोच और पंथ का प्रसार किया. वर्ष 1536 में 85 वर्ष की आयु में गुरु जंभेश्वर जी महाराज ने बीकानेर के लालासर साथरी में निर्वाण प्राप्त किया. बीकानेर के मुकाम गांव में गुरु जंभेश्वर की समाधि है.

बिश्नोई पंथ का प्रसार

गुरु जंभेश्वर के सीधे-सादे संदेशों ने आम लोगों को गहराई से छुआ और बड़ी संख्या में लोग उनके पंथ को अपनाने लगे. खास तौर से पश्चिमी राजस्थान के थार से लगे इलाक़ों में उनके मंदिर बनने लगे. 

राजस्थान के अलावा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा में भी बिश्नोई समाज के लोग बसे हैं, हालांकि वहां उनकी संख्या राजस्थान की तुलना में कम है.

बिश्नोई समाज के लोगों की सबसे बड़ी पहचान यह बनी कि वो पेड़ों और पशुओं के सबसे बड़े रक्षक हैं, और इनके लिए अपने प्राणों का भी बलिदान कर सकते हैं.

Photo Credit: rajasthan_tourism

खेजड़ी पेड़ का महत्व और कुर्बानियां

बिश्नोई लोग राजस्थान के खेजड़ी पेड़ को बहुत पवित्र मानते हैं, कुछ ऐसे ही जैसे भारत के कई हिस्सों में पीपल और बरगद को माना जाता है. बिश्नोई समाज के खेजड़ी वृक्षों को बचाने की कई कहानियां सुनाई जाती हैं. 

एक कहानी वर्ष 1604 में रामसरी गांव में कर्मा और गोरा नाम की दो बिश्नोई महिलाओं की है. उनके बारे में कहा जाता है कि इन दोनों ने खेजड़ी पेड़ों को कटने से बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.

ऐसी ही एक कहानी वर्ष 1643 के समय की है, जब बुचोजी नाम के एक बिश्नोई ग्रामीण ने होलिका दहन के लिए खेजड़ी पेड़ों को काटे जाने का विरोध करते हुए जान दे दी थी.

खेजड़ली गांव में 363 लोगों का बलिदान

मगर बिश्नोई इतिहास में सबसे ज़्यादा चर्चित घटना खेजरली गांव की है जो वर्ष 1730 में हुई, आज से 294 साल पहले. तब जोधपुर के महाराजा अभय सिंह नया महल बनवा रहे थे. उन्हें इसके लिए लकड़ी की ज़रूरत थी. राजा के सैनिक और कर्मचारी इसके लिए खेजड़ी वृक्ष काटने आए. मगर तब गांव की एक बिश्नोई महिला अमृता देवी के नेतृत्व में खेजड़ली पेड़ों को बचाने के लिए एक बड़ा आंदोलन शुरू हुआ.

गांव के लोग खेजड़ली पेड़ों से लिपट गए. मगर महाराजा के सैनिक नहीं रुके. उन्होंने कुल्हाड़ियां चला दीं. और 13 सितंबर 1730 को बिश्नोई समाज के 363 बिश्नोई लोगों ने पेड़ों को बचाते हुए प्राण न्योछावर कर दिए. लोगों की चीख-पुकार सुन कर महाराजा अभय सिंह खेजड़ली पहुंचे और पेड़ों की कटाई रुकवाने के साथ वचन दिया कि पूरे मारवाड़ में कोई भी खेजड़ी पेड़ नहीं काटा जाएगा.

खेजड़ी पेड़ के बारे में माना जाता है कि यह मुश्किल मौसम में भी उपजता है और इसकी वजह से रेगिस्तान में हरियाली के रहने में मदद मिलती है.

बिश्नोई गांव खेजड़ी वृक्षों में घिरे होते हैं और इनकी वजह से रेगिस्तान नखलिस्तान बन जाता है. खेजड़ी पर लगने वाले फल को सांगरी कहते हैं जिसकी सब्जी बनाई जाती है. इसकी पत्तियां बकरियां  खाती हैं. 

काला हिरण

बिश्नोई गांवों में खेजड़ी के पेड़ों के साथ हिरण भी नज़र आते हैं. बिश्नोई समुदाय हिरणों को भी खेजड़ी की ही तरह पूजनीय मानता है.

बिश्नोई समाज के लोगों में ऐसी मान्यता है कि वो अगले जन्म में हिरण का रूप लेंगे. बिश्नोई समाज में यह भी माना जाता है कि गुरु जंभेश्वर ने अपने अनुयायियों से कहा था कि वह काले हिरण को उन्हीं का स्वरूप मान कर पूजा करें.

यही वजह है कि काले हिरणों के शिकार पर बिश्नोई समाज सख़्त नाराज़ हो जाता है और अभिनेता सलमान ख़ान को लॉरेंस बिश्नोई ने इसी वजह से निशाना बनाया हुआ है.

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