EXCLUSIVE: बीकानेर राजधानी, राजस्थान के 13 जिलों को मिलाकर बनाया जाए अलग राज्य; जानें क्या है 'मरु प्रदेश' की परिकल्पना

मरुप्रदेश के समर्थकों का कहना है, राजस्थान की भौगोलिक और सांस्कृतिक इकाईयों में असमानता, आर्थिक विकास और राजनैतिक विमूढ़ता का सबसे ज्यादा नुकसान इस इलाके को उठाना पड़ा है. राजस्थान के इस 61.11% भूभाग के निवासियों के साथ विकास की प्रक्रिया में कभी न्याय नहीं हो पाया.

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पश्चिमी राजस्थान में ऊंट के साथ युवक

राजस्थान के पश्चिमी और मध्य भाग को अलग कर मरु प्रदेश बनाए जाने की मांग बहुत पुरानी है. राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है और जहां इसके कुछ हिस्से काफ़ी विकसित हैं, वहीं एक बड़ा हिस्सा अभी भी विकास की बाट जो रहा है. इस हिस्से का भी एक बड़ा भाग पश्चिमी राजस्थान और उससे लगते ज़िलों का है. जहां विकास के नाम पर अभी तक अधिक कुछ हो नहीं पाया है.  इस भाग में तक़रीबन दस ज़िले ऐसे हैं जहां विकास अभी एक दूर की कोड़ी है.

इस क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर और आज़ादी के बाद शुरुआत में ही सम्भागीय मुख्यालय बन चुका बीकानेर भी शामिल है. मरु प्रदेश की मांग वैसे तो कई संगठन करते रहे हैं. लेकिन 'मरु प्रदेश निर्माण मोर्चा' इस मांग के लिए कई सालों से सक्रिय है. मरु प्रदेश निर्माण मोर्चे के अध्यक्ष जयवीर गोदारा ने मरु प्रदेश की ज़रूरत और बीकानेर को उसकी राजधानी बनाए जाने समेत उससे जुड़े कई मुद्दों पर NDTV से ख़ास बातें साझा कीं.

जयवीर गोदारा का कहना है कि देश का विकास छोटे राज्यों से हो सकता है. राज्य जब तक बड़ा रहा है, तब तक विकास से महरूम रहा है. वे उत्तराखंड की मिसाल देते हुए कहते हैं कि जब तक उत्तराखंड यूपी के साथ था तो विकास की डगर वहां तक नहीं पहुंच पाई थी. मगर जैसे ही अलग राज्य बना तो विकास की राह में यह राज्य उत्तरप्रदेश से आगे निकल गया. 

मरुप्रदेश निर्माण की परिकल्पना में इसी भू-भाग में 13 जिले-श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चुरु, बीकानेर, झुंझुनू, सीकर, नागौर, बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, पाली, जालौर और सिरोही शामिल हैं. 

वे कहते हैं, ''आज़ादी से पहले जहां मरु प्रदेश का इलाक़ा विकास की दौड़ में शामिल था, वहीं आज़ादी के बाद सभी पार्टियों की सरकारों ने इसके प्रति बेरुख़ी दिखाई. जबकि प्राकृतिक संसाधनों के ऐतबार से ये एरिया ख़ूब मालामाल है. खनिज के हिसाब से देखें तो इस क्षेत्र में कोयला, जिप्सम, क्ले और मार्बल निकल रहा है. वहीं अब तेल और गैस के भंडार भी यहां मिले हैं. सरकारों ने यहां से रेवेन्यू तो भरपूर लिया है, लेकिन विकास को हमेशा अनदेखा किया है. इसके समर्थन में वे आंकड़े भी बताते हैं. 

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लंबा इतिहास, पुरानी मांग 

ग़ौरतलब है, जब राजस्थान बन रहा था, तब बीकानेर और जोधपुर स्टेट ने राजस्थान में विलय का पुरजोर विरोध किया था. इसके विरोध में तत्कालिन जोधपुर महाराजा हनुवंत सिंह पहली लोकसभा में काली पगड़ी पहनकर गए थे. फिर साल 1953 में प्रताप सिंह, पूर्व मंत्री, बीकानेर स्टेट ने मरुप्रदेश बनाने के लिए बीकानेर बन्द किया था. 1956 में जब नए राज्य बने तो उस वक़्त भी अनेकों बार ज्ञापन दिए गए.

  • मरुप्रदेश का क्षेत्रफल- 2,13,883 वर्ग किमी.
  • मरुप्रदेश की जनसंख्या- 2,85,65,500
  • मरुप्रदेश की साक्षरता दर 63.80%
  • मरुप्रदेश में गरीब 68.85 लाख
  • मरुप्रदेश में शिक्षित बेरोजगार 10 लाख
  • मरुप्रदेश की प्रति व्यक्ति आय ₹ 252

पूर्व सांसद स्वामी केशवानंद ने भी मरुभूमि सेवा पुस्तक में लिखा था कि इस मरुभूमि का विकास तभी होगा तब यह खुद अलग राज्य मरुप्रदेश बनेगा. स्व.गुमानमल लोढा ने भी जोधपुर में आंदोलन चलाया. उसके बाद उन्हें जस्टिस बना दिया और बाद में वे पाली के सांसद बने थे.

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मरु प्रदेश के समर्थकों का कहना है कि अलग प्रदेश की मांग तब उठती है जब उस क्षेत्र का सर्वांगीण विकास ठीक प्रकार से ना हुआ हो. उस क्षेत्र की भाषा, रीतिरिवाज, पहनावे, संस्कृति और भौगोलिक परिस्थितिया भिन्न हो. इस हिसाब से मरु प्रदेश का इलाक़ा बाक़ी राजस्थान से अलग है.

राजस्थान का 61.11% भूभाग

मरुप्रदेश के समर्थकों का कहना है, राजस्थान की भौगोलिक और सांस्कृतिक इकाईयों में असमानता, आर्थिक विकास और राजनैतिक विमूढ़ता का सबसे ज्यादा नुकसान इस इलाके को उठाना पड़ा है. राजस्थान के इस 61.11% भूभाग के निवासियों के साथ विकास की प्रक्रिया में कभी न्याय नहीं हो पाया. बंजर मरुस्थल कहकर इस क्षेत्र का सदैव उपहास और  उपेक्षा की गई. 60 वर्षों से अधिक इतिहास में राजनीतिज्ञों की नीतियों और उपेक्षाओं से इसके निवासियों को अपने अस्तित्व को अलग लेकर अपनी बंजर मरुस्थल मारवाड़ यानी मरुप्रदेश बनाने की मजबूरन राह पकड़नी पड़ेगी.

मरुप्रदेश के समर्थन में निकाली गई एक रैली की तस्वीर

बाड़मेर से अमृत नाहटा, लेखक दिलसुख राय चौधरी सीकर, जोधपुर चंद्रप्रकाश देवड़ा, पूर्व विदेश मंत्री भारत सरकार जसवंत सिंह ने भी इसकी मांग उठाई. राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत ने भी 2000-01 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जब 3 नए राज्य बनाये तब उनको भी पत्र लिखकर मरु प्रदेश की मांग की थी.

मरु प्रदेश निर्माण मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष जयवीर गोदारा मरु प्रदेश के लिए लगातार आन्दोलन चला रहे हैं. वे इसके लिए ऊँटों पर मरु प्रदेश निर्माण यात्रा भी निकाल चुके हैं.

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13 जिलों का प्रदेश

मरु प्रदेश निर्माण मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष जयवीर गोदारा कहते हैं, राजस्थान दुनियां के 110 देशों से बड़ा राज्य है और देश में मरुस्थलीय जिलों वाला एकमात्र राज्य है. मरुस्थलीय गांवों और शहरों की समस्या सिर्फ स्थानीय नेता ही समझ पाएंगें.

पूर्वी और पश्चिमी राजस्थान प्राकृतिक और भौगोलिक रुप से तो अलग है ही, वहीं भाषा, वेशभूषा, खानपान और रीति-रिवाज से भी अलग है.

देश के सबसे बड़े अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर वाला इलाक़ा होने के कारण भी देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए बॉर्डर पर मज़बूत राज्य की जरुरत है. जितना छोटा राज्य होगा उतना विकास होगा. बड़े राज्य होने के कारण प्रशासनिक ढांचा कमज़ोर होने से स्थानीय खनिजो का अवैध दोहन हो रहा है और रोजगार के लिए पलायन हो रहा है.

थार रेगिस्तान, बंजर जमीन 

मरु प्रदेश में समर्थकों का मानना है कि देश का सबसे बड़ा भूभाग राजस्थान जो दुनिया के 110 देशों से भी क्षेत्रफल में बड़ा है. जिसको बीचो-बीच से अरावली पर्वतश्रेणी ने दो भागों में विभाजित किया है. जिसका उत्तरी पश्चिमी रेगिस्तानी थार का मरुस्थल ही मरुप्रदेश के नाम से जाना जाता है. मरुप्रदेश दुनियां का 9वां सबसे गर्म स्थान जहां साल भर तेज़ धूलभरी आंधियां चलती हैं, बंजर ज़मीन, कंटीली झाड़ियां, विपदाओं भरा जीवन, पानी की अनुउपलब्धता, पशुपालन पर आधारित अर्थव्यवस्था और रोज़गार की तलाश में भटकते नागरिक किसी भी सरकार को नज़र नहीं आते.

वहीं मरु प्रदेश निर्माण की मांग पर लम्बे समय से आन्दोलन चला रही मरु सेना के अध्यक्ष और युवा नेता जयन्त मूंड का कहना है देश में जितने छोटे और अलग राज्यों का आन्दोलन चल रहा है, उनमें मरुप्रदेश की मांग 100% जायज है. हम राज्य पुनर्गठन आयोग की सभी मापदंडों पर भी खरे हैं. 

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