रणथंभौर टाईगर रिजर्व में दिखा ये अजीब सा दिखने वाला जंगली जीव, इसे कितना जानते हैं आप?

Endangered Species: रणथंभौर में देखा गया यह दुर्लभ प्रजाति का वन्यजीव एक शिकारी जंगली बिल्ली है, जिसे कैरेकल यानी सियागोश के नाम से जाना जाता है. इसके शिकार करने का तरीके बेहद अनोखा है.

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कैरेकल यानी सियागोश एक शिकारी जंगली बिल्ली

Ranthambore Tiger Reserve: बाघों को लेकर विश्व पटल पर अपनी खास पहचान रखने वाले राजस्थान के सबसे बड़े टाईगर रिजर्व रणथंभौर में बाघों के अलावा एक और ऐसा शिकारी वन्यजीव पाया गया है, जो शिकार करने के मामले में किसी भी तरह बाघों से कम नहीं माना जाता है. यह दुर्लभ वन्यजीव कोई और नहीं बल्कि एक जंगली बिल्ली है, जिसे कैरेकल के नाम से जाना जाता है.कैरेकल को हिन्दी में सियागोश भी कहते है. यह दुनिया के सबसे दुर्लभ जंगली वन्यजीवों में शामिल है और विलुप्त होने की कगार पर है. रणथंभौर और उसके आसपास के इलाके में कैरेकल की संख्या तकरीबन 30 से 35 बताई जाती है.

कैरेकल यानी सियागोश एक शिकारी जंगली बिल्ली है, यह सवाई माधोपुर के रणथम्भौर, करौली और धौलपुर के आस-पास के कुछ इलाकों में भी पाया जाता है. राजस्थान के रणथंभौर, धौलपुर और करौली के अलावा यह दुर्लभ वन्यजीव देश के गुजरात के कच्छ और मध्यप्रदेश के कुछ इलाके में भी पाया जाता है. रणथम्भौर में कैरेकल यानी सियागोश कि संख्या तकरीबन 30 से 35 है. कैरेकल यानी सियागोश मध्यम आकार की एक शिकारी जंगली बिल्ली है. इसकी ऊंची छलांग लगाने की क्षमता काफी अधिक होती है.

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इसे ढ़ूंढ़ने के लिए 2020 में चला विशेष अभियान

रणथम्भौर में दुर्लभ वन्यजीव सियागोश को ढूंढने के लिए साल 2020 में एक विशेष अभियान चलाया गया था. साल 2020 में रणथंभौर के वनाधिकारियों द्वारा कई महीने तक विशेष अभियान चलाकर सियागोश यानी कैरेकल को खोजा था. इसके लिए वन विभाग द्वारा रणथम्भौर के जंगलो में करीब 215 जगहों पर फोटो ट्रैप कैमरे लगाए गए थे. उस वक्त वन विभाग ने रणथम्भौर में करीब 35 सियागोश यानी कैरेकल होने की पुष्टि की थी.

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रणथंभौर में कैरेकल होने की पुष्टि होने के बाद वन विभाग द्वारा कैरेकल के संरक्षण को लेकर एक प्रोजेक्ट भी बनाया था. उच्च अधिकारियों से अनुमति नहीं मिलने के कारण रणथंभौर में इसका काम शुरू नहीं हो सका और कैरेकल संरक्षण का मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

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तुर्की और फारसी भाषा से लिया गया इसका नाम

रणथंभौर की टाईगर वाच संस्था के धर्मेंद्र खांडल के मुताबिक इसका कैरेकल नाम तुर्की भाषा के शब्द कराकुलक से निकला है, जिसका मतलब काले कान वाला प्राणी होता है. भारत में कैरेकल को इसके फारसी भाषा के नाम सियागोश से जाना जाता है, जो भी सीधे इसके लम्बे काले कानों की ओर इशारा करता है. वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. धर्मेन्द्र खांडल के मुताबिक कैरेकल दुनिया के 60 देशों में पाए जाते हैं.

इजरायल और अफ्रीका में बहुतायत में पाया जाता है. कैरेकल भारत के कुछ ही राज्यों में पाए जाते हैं, कैरेकल भारत में पिछले 20 सालों में 3 राज्य राजस्थान, ‌मध्यप्रदेश और गुजरात में ही देखे गए हैं. इसकी लंबाई 31 इंच होती है और वजन 8 से 9 किलो होता है. कैरेकल बहुत‌ शर्मिला और एक्टिव प्रजाति का वन्यजीव है.

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