Rajasthan Politics: राजस्थान विधानसभा की सात सीटों के उपचुनाव में चुनावी बिसात बिछ चुकी है. सभी सातों सीटों पर मुक़ाबले की तस्वीर लगभग साफ़ हो गई है. राजस्थान के इस उपचुनाव में भजनलाल सरकार के 10 महीनों के कामकाज पर भी जनता का फीडबैक तो होगा ही साथ ही राजस्थान के कई बड़े दिग्गज नेताओं की साख और प्रतिष्ठा भी इस चुनाव में दांव पर लगी हुई है. पिछले सालों में उपचुनाव में बीजेपी को मिल रही हार के ट्रेंड को बदलने का भी दारोमदार CM के कंधों पर है तो कई क्षेत्रीय दलों का राजनीतिक भविष्य भी ये चुनाव परिणाम तय करेंगे.
राजस्थान में विधानसभा की सात सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. लेकिन ये सात सीटों के उपचुनाव राजस्थान बीजेपी-कांग्रेस और स्थानीय नेताओं के लिए किसी बड़ी अग्निपरीक्षा से कम नहीं है. कांग्रेस के लिए इस चुनाव में लोकसभा चुनाव के परिणामों को दोहराने का दबाव है तो वहीं बीजेपी पर पिछले कुछ सालों में उपचुनावों में मिली हार की सियासी ट्रेंड को बदलने की बड़ी चुनौती है.
भजनालाल और मदन राठौड़ के लिए सबसे बड़ी चुनौती
अगर बीजेपी की बात करें तो टिकट वितरण में सभी नेताओं से राय मशवरा किया गया है लेकिन पूरा दारोमदार मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ की जोड़ी पर है. दोनों ही नेताओं के सामने लोक सभा चुनाव के बाद यह सबसे बड़ी और मुश्किल चुनौती है. यही कारण है कि दोनों नेताओं ने बाग़ी नेताओं को मनाने से लेकर चुनाव प्रचार और चुनावी रणनीति का पूरा ज़िम्मा संभाल रखा है.
यही वजह है कि आज राजस्थान में सात सीटों पर चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा 10 महीनों के कामकाज पर जनता से वोट मांग रहे हैं.
सचिन पायलट और गहलोत से ज्यादा डोटासरा की जिम्मेदारी
कांग्रेस नेताओं की बात की जाए तो इस चुनाव के टिकट वितरण में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव सचिन पायलट ने ख़ुद को पीछे रखा है. टिकट वितरण में स्थानीय नेताओं के अलावा PCC चीफ़ की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. लिहाज़ा इस चुनाव के परिणाम प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का सियासी क़द भी तय करने वाले हैं. लोकसभा चुनाव में जीत का सेहरा पायलट और डोटासरा के सिर बंधा था. राजस्थान में डोटासरा को बतौर PCC चीफ़ क़रीब 5 साल का वक़्त हो गया है इस चुनाव के परिणाम से आने वाले दिनों में पार्टी में उनकी भूमिका भी तय होगी. इसके अलावा कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के लिए भी अलवर की रामगढ़ सीट को जिताना एक बड़ा चैलेंज है.
जबकि दौसा देवली उनियारा और झुंझुनू सीट पर सचिन पायलट बड़ा सियासी फ़ेक्टर रहने वाले हैं. सचिन पायलट अभी विदेश दौरे पर हैं. दौरे से लौटने के बाद भी राजस्थान की इन उपचुनावों में चुनाव प्रचार पर निकलेंगे. अशोक गहलोत राजस्थान में नामांकन सभाओं में शामिल हो गए हैं लेकिन उनके पास मुंबई की भी ज़िम्मेदारी है लिहाज़ा उनका अधिकांश समय मुंबई में बितने वाला है. कांग्रेस के स्थानीय नेताओं की बात करें तो दोनों सीट से शीश राम ओला के पोत्र अमित तोला चुनावी मैदान में हैं. उनके पिता बृजेन्द्र ओला पूर्व मंत्री रहे हैं वर्तमान में सांसद है लिहाज़ा उनकी पारंपरिक और पारिवारिक सीट से चुनाव परिणाम इस परिवार का भी क्षेत्र में दम ख़म तय करने वाले हैं.
राजस्थान में चुनावी सभाओं में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पूरा फ़ोकस केंद्र की 10 साल और राजस्थान की 10 महीने की सरकार की विफलताओं को गिनाने पर है.
आरएलपी और BAP के पास भी चुनौती
इसके अलावा खींवसर की सीट पर कनिका बेनीवाल को चुनावी मैदान में उतार दिया है. इस सीट पर हार जीत हनुमान बेनीवाल का राजस्थान में सियासी भविष्य तय करने वाली है. इसके अलावा आदिवासी बेल्ट में पिछले कुछ सालों में तेज़ी से उभरने वाली बाप पार्टी के लिए भी चौरासी सीट पर अपना कब्जा बनाए रखना बड़ी चुनौती से कम नहीं है. हालांकि हनुमान बेनीवाल का कहना है कि RLP इस चुनाव में दोनों पार्टियों को पटखनी देने में क़ामयाब रहेगी.
अगर देखा जाए तो राजस्थान में उपचुनाव में पिछले कुछ सालों में कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है. बीते 10 सालों में 16 सीटों पर विधानसभा के उपचुनाव हुए हैं जिसमें केवल भाजपा को केवल तीन सीटों पर ही जीत मिल पाई है.
बीजेपी के लिए इस बार इसी सियासी ट्रेंड को तोड़ना सबसे बड़ी चुनौती है. अगर इस बार ये ट्रेंड टूटता है तो भजनलाल शर्मा राजस्थान की सियासत में सबसे बड़े नेता के तौर पर स्थापित हो जाएंगे. कांग्रेस के पक्ष में चुनाव परिणाम आने पर भी कई बड़े नेताओं की भूमिकाएं बदलने वाली है.
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