Rajasthan: कभी कांग्रेस का गढ़ रही इस सीट पर कांग्रेस नहीं उतारेगी उम्मीदवार! BAP से गठबंधन के आसार

Banswara-Dungarpur Lok Sabha constituency: कांग्रेस जिलाध्यक्ष रमेशचंद्र पंड्या ने कहा जिला स्तर से आलाकमान के सामने अपनी बात रख चुके हैं. यह सही है कि प्रत्याशी की घोषणा देरी से होने पर प्रचार अभियान में पिछड़ सकते हैं, लेकिन निर्णय एआईसीसी या पीसीसी को करना है. हम भी इंतजार में हैं.

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Lok Sabha Election 2024: बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस पार्टी के लिए गले की फांस बन गया है. आजादी के बाद यह पहली बार होगा कि चुनावी मैदान में कांग्रेस पार्टी का कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं होगा और वह भारत आदिवासी पार्टी के लिए यह सीट छोड़ देगी. स्थानीय नेता भले ही इसके लिए इच्छुक नहीं हैं, लेकिन जिस तरह नागौर और सीकर जिले में गठबंधन हुआ है उससे लगता है कि यहां भी कांग्रेस यहां से प्रत्याशी की घोषणा नहीं करेगी.

लोकसभा चुनाव 2024 में आदिवासी बहुल बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर हाल ही में कांग्रेस छोड़ कांग्रेस बीजेपी में शामिल हुए भाजपा प्रत्याशी महेंद्रजीत सिंह मालवीया और भारत आदिवासी पार्टी के प्रत्याशी राजकुमार रोत में सीधा मुकाबला देखने को मिल सकता है.

मेवाड़-वागड़ के कांग्रेस नेता नहीं चाहते गठबंधन  

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को लिखे पत्र में एआईसीसी सदस्य दिनेश खोड़निया, बांसवाडा विधायक अर्जुन सिंह बामनिया, घाटोल विधायक नानालाल निनामा, कुशलगढ़ विधायक रमिला खड़िया, खेरवाड़ा विधायक दयाराम परमार, बांसवाड़ा कांग्रेस जिला अध्यक्ष रमेश चंद्र पंड्या, डूंगरपुर कांग्रेस जिला अध्यक्ष बल्लभराम पाटीदार सहित अन्य नेताओं ने कांग्रेस आलाकमान से कहा है कि भविष्य की संभावना को देखते हुए लोकसभा चुनाव के लिए भारत आदिवासी पार्टी से किसी भी तरह का गठबंधन नहीं किया जाना चाहिए.

न्याय यात्रा से एकजुटता प्रदर्शन

इससे पहले 7 मार्च को कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्तर के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बांसवाड़ा आगमन पर चुनावी रंग दिखाने के लिए भीड़ जुटाई गई. यहां कॉलेज मैदान में हुई आमसभा में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे, प्रदेशाध्यक्ष गोविंदसिंह डोटासरा, राजस्थान के प्रभारी एसएस रंधावा सहित कई बड़े नेताओं के संबोधित कर एकजुटता बताई. कयास भले ही चल रहे, लेकिन हकीकत में वागड़ में कांग्रेस अब तक एक अदद मजबूत प्रत्याशी नहीं तलाश पाई है. ऐसे में कांग्रेस की चुनौती दिनों दिन बढ़ती प्रतीत हो रही है.

कांग्रेस जिलाध्यक्ष रमेशचंद्र पंड्या ने कहा जिला स्तर से आलाकमान के सामने अपनी बात रख चुके हैं. यह सही है कि प्रत्याशी की घोषणा देरी से होने पर प्रचार अभियान में पिछड़ सकते हैं, लेकिन निर्णय एआईसीसी या पीसीसी को करना है. हम भी इंतजार में हैं.

कभी कांग्रेस का गढ़, अब गठबंधन का आसरा

बांसवाड़ा संसदीय क्षेत्र शुरू से कांग्रेस का गढ़ रहा है. यहां 2019 तक हुए 16 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 11 बार जीती है. 1952 से 1971 तक के लगातार 5 चुनावों में कांग्रेस यहां से जीती.1977 में जनता पार्टी के खाते में यह सीट जाने के बाद 1980, 1984 में दोबारा यहां कांग्रेस का परचम लहराया. 1989 में दोबारा यहां जनता दल की वापसी हुई.

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1991 से 1999 तक लगातार चार चुनावों में यहां से कांग्रेस जीती और 2004 में बीजेपी की जीत के बाद 2009 में कांग्रेस के ताराचंद भगौरा यहां से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे, लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव और 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस के गढ़ होने का मिथक टूट गया.

बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली 8 विधानसभा सीटें हैं. दक्षिण राजस्थान का आदिवासी बहुल बांसवाड़ा संसदीय क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है जिसमें डूंगरपुर जिले की तीन विधानसभाएं भी लगती हैं.

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